
राह तुम्हारी तकते - तकते
बीते यूँ ही अनगिन पल साथी,
आस हुई मध्यम संग में
और नैना हुए सजल साथी !
बीते यूँ ही अनगिन पल साथी,
आस हुई मध्यम संग में
और नैना हुए सजल साथी !
दुनिया को बिसरा दिल ने
बस एक तुम्हें ही याद किया ,
हो चली दूभर जब तन्हाई
तुमसे मन ने संवाद किया ;
पल को भी मन की नम आँखों से
ना हो पाये तुम ओझल साथी ! !
बस एक तुम्हें ही याद किया ,
हो चली दूभर जब तन्हाई
तुमसे मन ने संवाद किया ;
पल को भी मन की नम आँखों से
ना हो पाये तुम ओझल साथी ! !
अप्राप्य से अनुराग ये मन का
क्यों हुआ ? कहाँ उत्तर इसका ?
इस राह की ना मंजिल कोई
फिर भी क्यों सुखद सफ़र इसका ?
प्रश्नों के भंवर में डूबे- उबरे
हुआ समय बड़ा बोझिल साथी !!
क्यों हुआ ? कहाँ उत्तर इसका ?
इस राह की ना मंजिल कोई
फिर भी क्यों सुखद सफ़र इसका ?
प्रश्नों के भंवर में डूबे- उबरे
हुआ समय बड़ा बोझिल साथी !!
था धूल सा निरर्थक ये जीवन
छू रूह से किया चन्दन तुमने ,
अंतस का धो सब ख़ार दिया
किया निष्कलुष और पावन तुमने ;
निर्मलता के तुम मूर्त रूप -
कोई तुम सा कहाँ सरल साथी !!!
छू रूह से किया चन्दन तुमने ,
अंतस का धो सब ख़ार दिया
किया निष्कलुष और पावन तुमने ;
निर्मलता के तुम मूर्त रूप -
कोई तुम सा कहाँ सरल साथी !!!
राह तुम्हारी तकते - तकते
यूँ ही बीते अनगिन पल साथी
आस हुई मध्यम संग में
ये नैना हुए सजल साथी !!.,
यूँ ही बीते अनगिन पल साथी
आस हुई मध्यम संग में
ये नैना हुए सजल साथी !!.,
चित्र--- गूगल से साभार !
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