चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा
भला ! कैसे पहुँच पाऊँगी मैं ?
पर ''इक रोज मिलूंगी तुमसे ''
कह जी को बहलाऊंगी मैं !
मौन साधना तुम मेरी ,
मनमीत ! तुमसा कहाँ कोई प्यारा ?
मन -क्षितिज पर स्थिर हुआ
तुम्हारी प्रीत का झिलमिल तारा ;
इक पल भी तुम्हें भूल भला
कैसे सहज जी पाऊँगी मैं ?
जगती आँखों के सपने तुम संग
देखूं !कहाँ अधिकार मेरा ?
फिर भी पग -पग संग आयेगा
करुणा का ये उपहार मेरा ,
ले ख्वाब तुम्हारे आँखों में -
हर रात यूँ ही सो जाऊंगी मैं -
एकांत भिगोते नयन - निर्झर
सुनो ! मनमीत तुम्हारे हैं ,
मेरे पास कहाँ कुछ था
सब गीत तुम्हारे हैं .
इस दिव्य , अपरिभाषित प्यार को
रच गीतों में अमर कर जाऊंगी मैं !!
तुम ! वाणी रूप और शब्द रूप ,
स्नेही मन- सखा मेरे ;
बाँधे रखते स्नेह - डोर में
तुम्हारे सम्मोहन के घेरे ;
थाम इन्हें जीवन-पार कहीं
आ !तुममें मिल जाऊंगी मैं
चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा -
भला ! कैसे पहुँच पाऊँगी मैं ?
स्वरचित --रेणु चित्र --- गूगल से साभार |
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ले ख्वाब तुम्हारे आँखों में -
हर रात यूँ ही सो जाऊंगी मैं -
एकांत भिगोते नयन - निर्झर
सुनो ! मनमीत तुम्हारे हैं ,
मेरे पास कहाँ कुछ था
सब गीत तुम्हारे हैं .
इस दिव्य , अपरिभाषित प्यार को
रच गीतों में अमर कर जाऊंगी मैं !!
तुम ! वाणी रूप और शब्द रूप ,
स्नेही मन- सखा मेरे ;
बाँधे रखते स्नेह - डोर में
तुम्हारे सम्मोहन के घेरे ;
थाम इन्हें जीवन-पार कहीं
आ !तुममें मिल जाऊंगी मैं
चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा -
भला ! कैसे पहुँच पाऊँगी मैं ?
स्वरचित --रेणु चित्र --- गूगल से साभार |
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