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सोमवार, 29 मार्च 2021

कहो !कैसा था वो अबीर सखा ! - प्रेम गीत



 पड़ ना सका जिसका रंग फीका 
कहो !कैसा था वो अबीर सखा ? 
प्राण  रज कर गया चटकीली 
बो कर प्रेम की पीर सखा !

उस फागुन की हँसी- ठिठौली मे
मंद-मंद  प्यार की बोली में,
खोए नैना, ना नयन लगे,
प्रीत की आँख मिचौली में .
रोम -रोम बसे तुम ही
कैसी पग बाँधी जंजीर सखा ?

मिले जब से लगन लगी ऐसी
तुम पर ही टिकी मन की आँखें
बस तुम ही तुम कोई और  कहाँ ?
जो आकर के भीतर  झाँके ,
गाए तेरे प्यार का  फ़गुवा
मनुवा हुआ   फ़कीर सखा!

मन मधुबन में कान्हा बनकर 
 हुए  शामिल  आत्म - परिचय में ,
जब से मिल गाया प्रीत -राग 
सजे  नवछ्न्द नित नई लय में
महका कण -कण मन प्रांतर का
बही प्रेमिल -गंध समीर सखा!

क्यों मोह रहे विश्व-वैभव का 
जग में अब विशेष रहा क्या ?
नहीं कामना भीतर कोई 
पा तुम्हें पाना शेष रहा क्या ?
मैं अकिंचन हुई बडभागी 
 क्यों रहूँ विकल अधीर सखा !


73 टिप्‍पणियां:

  1. आहा दी कितनी मनमोहक रचना हैं।
    अलौकिक प्रीत की सुगंध अंतस को भीगा रही।
    खासकर ये पंक्तियाँ तो जबरदस्त हैं

    तुम संग लगन लगी बहकी साँसे
    तुम पर ही टिकी मन की आँखें,
    बस तुम ही तुम ,कोई और कहाँ?
    जो आकर के भीतर झांके
    गाये तेरे प्यार का फगुवा ,
    मनुवा हुआ कबीर सखा !
    ----
    बहुत बहुत सुंदर रचना प्रिय दी।
    स्नेहिल शुभकामनाएं।
    सादर।

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    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता , तुम्हारी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से मन को अपार संतोष हुआ | कुछ पुरानी रचनाएँ पड़ी हैं वो धीरे -धीरे डाल रही हूँ यहाँ | हार्दिक आभार और प्यार |

      हटाएं
  2. लग रहा कि तुम तो इस अलौकिक प्रेम में डूब गयी हो ... अब कुछ और पाने की ख्वाहिश नहीं ...

    न -मधुबन में कान्हा बनकर
    हुए सम्मिलित आत्म -परिचय में ,
    जब से मिल गाया प्रीत -राग
    सजे नवछंद ,नित नई लय में ,

    कन्हा बन जो मन में पैबस्त हो गया अब उसके अलावा कोई राग सुनाई भी कैसे दे ?
    कबीर जैसा मन हर ओर लाली मेरे लाल जैसा महसूस कर रहा ...
    हंसी ठिठोली में पैरों में नहीं मन में ही जंजीर बाँध दी है ..
    पूरी रचना प्रेम पगी ....

    सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    एक गुज़ारिश ..... शब्दों को रेखांकित करने से उनकी अपनी विशेषता कम हो जाती है ...किसी विशेष बात के लिए रेखांकित किया गया हो तो अलग बात है ... लेकिन तुमको यदि रेखांकन किया ही पसंद है तो कोई बात नहीं ... पसंद अपनी अपनी :):)



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    1. प्रिय दीदी, आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया ने मेरी साधारण सी रचना को असाधारण बना दिया। निशब्द हूँ। कोटि आभार और नमन। और आपका सुझाव सर माथे 🙏🙏कल कंप्यूटर पर बैठकर सभी रचनाओं से रेखाएँ गायब करती हूँ। वैसे भी सिर्फ अच्छा लगने के लिए ही रेखांकित किया था। कोई विशेष कारण नहीं था। पुनः आभार और प्रणाम 🙏🙏🌹🌹❤🌹

      हटाएं
    2. प्रिय रेणु ,
      पिछली पोस्ट से रेखांकन हटाना आवश्यक नहीं । बस आगे जो भी पोस्ट करो उस पर ध्यान रहे । सस्नेह

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  3. उत्तर
    1. सादर आभार और प्रणाम आदरणीय आलोक जी🙏🙏 💐💐

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  4. बहुत सुन्दर ... प्रेम में पगी, होली के अनेक रँग समेटे
    जब प्रेम कान्हा को छू लेता है तो मोह वैसे ही कट जाता है ... अविरल प्रेम धार बहती है बस ... काव्य का मधुर झरना बह रहा हो जैसे ...

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    उत्तर
    1. सादर आभार दिगंबर जी। ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सदैव ही प्रोत्साहित करती है🙏🙏 💐💐

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  5. बहुत ही गहरी और मन से गूंथी गई रचना। रेणु जी खूब बधाई

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  6. क्यों मोह रहे विश्व- वैभव का
    जग में अब विशेष रहा क्या ?
    नहीं कामना भीतर कोई
    पा तुम्हें ,पाना शेष रहा क्या ?
    मैं अकिंचन हुई बडभागी
    क्यों रहूँ , विकल अधीर सखा !इस सुंदर, अलौकिक और दिव्य प्रेम की अनुभूति के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं, क्योंकि इस रचना का सृजन तभी आप कर सकते हैं,जब आप जीवन की अनंत गहराइयों तक आत्मसंतुष्टि को धारण करते हों,वह चाहे प्रीत हो,धन वैभव हो या भौतिक सुख हो, सुन्दर अभिव्यक्ति को नमन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  7. प्रिय जिज्ञासा जी, आप जैसी सुधि और प्रबुद्ध पाठिका का मेरी रचना पर सारगर्भित मनन मेरा सौभाग्य है। हार्दिक आभार आपकी मर्म को छूती इस भावपूर्ण प्रतिक्रिया का 🌹🌹🙏❤❤

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  8. प्रेम की पीर में केवल इंद्रधनुषी रंगों से क्षण-क्षण स्वयं को रंगना और कण-कण को उस प्रेमिल गंध से महकाते रहना साथ ही यह कहना कि क्यों रहूं विकल , किसी उस पार की झलक है । मनमोहक,मनचीता अति सुन्दर भाव ।
    और हाँ! विस्तृत फलक प्रदान करने का अंदाज बहुत भाया । हार्दिक आभार ।

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    1. प्रिय अमृता जी , आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन |

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  9. महका कण-कण मन प्रांतर का, बही प्रेमिल गंध समीर सखा । आपकी इस अभिव्यक्ति की सुगंधित समीर में इसे पढ़ने वाले भी बह गए हैं रेणु जी । होली की विलम्बित शुभकामनाओं के साथ अभिनंदन आपका ।

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    1. आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया और शुभकामनाओं के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन जीतेंद्र जी |

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  10. दो दिन बाद...
    दिल की बात...
    अहा..
    नहीं कामना भीतर कोई
    पा तुम्हें ,पाना शेष रहा क्या ?
    मैं अकिंचन हुई बडभागी
    क्यों रहूँ,विकल अधीर सखा !
    सुन्दर रचना..
    आभार

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    1. आदरणीय दीदी ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया दोनों ही मेरे लिए गर्व का विषय हैं | `हार्दिक आभार और अभिनन्दन आपका |

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  11. मन -मधुबन में कान्हा बनकर
    हुए सम्मिलित आत्म -परिचय में ,
    जब से मिल गाया प्रीत -राग
    सजे नवछंद ,नित नई लय में ,
    महका कण -कण मन प्रांतर का
    बही प्रेमिल गंध समीर सखा!
    प्रिय रेणु, अलौकिक प्रीत का यह राग मन को माधुर्य के रस से सराबोर कर गया। जब आप लिखती हैं तो ऐसा सुंदर लिखती हैं कि पिछले कई दिनों के अंतराल की कमी पूरी हो जाती है। पर मैं चाहूँगी कि आप नियमित लिखें। वैसे यह भी सच है कि लिखने का सोचकर लिखना कभी नहीं हो पाता। बहुत सारा स्नेह।

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    उत्तर
    1. प्रिय मीना, इस मनोबल बढाती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार | ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति आहलादित कर गयी | सस्नेह |

      हटाएं
  12. उस फागुन की हँसी ठिठौली में
    मंद- मंद प्यार की बोली में ,
    खोये नयन , ना नैन लगे ,
    प्रीत की आँख मिचौली में ,
    लौकिकता से शुरू प्रेम बड़े ठहराव और अनंत गहनता के साथ अन्त में अलौकिकता की ओर....
    क्यों मोह रहे विश्व- वैभव का
    जग में अब विशेष रहा क्या ?
    नहीं कामना भीतर कोई
    पा तुम्हें ,पाना शेष रहा क्या ?
    आपकी प्रेम कविताएं अलग ही परिपक्वता लिए अपने में खास होती हैं सखी!
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको इस मनभावन लाजवाब सृजन हेतु।


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    1. प्रिय सुधा जी , आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार और अभिनन्दन |

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  13. मन प्रांतर में प्रेमिल सुगंध के शाश्वत प्रवाह के सुभग और जीवन्त चित्रण ने गोपिकाओं के उस अलौकिक उद्गार की स्मृति उकेर दी, " उर में माखन चोर गड़े।" आपकी कविताओं में लैकिक धरातल पर अनुराग और अभिसार का अलौकिक विस्तार है जहां आत्म परमात्म में समाहित हो जाता है, अंतस आकाश में समा जाता है और प्रेम का सत्व तत्व अपने अनहद नाद में गूंजने लगता है। कविता के शब्द सौष्ठव और प्रांजलता से विनिमज्जित पाठक-मन रचनात्मकता की सरसता से संतृप्त हो जाता है। सरस्वती की यह सुता अपने सुरीली सुरों की सुरसरी यूँ ही प्रवाहित करती रहे, यही शुभकामना है। अत्यंत आभार और बधाई इस नि:शब्द करती र रूहानी रचना के लिए!!!

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    1. आदरणीय विश्वमोहन जी , आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभार नहीं अपितु मेरी शुभकामनाएं | आपके अनमोल उद्गारों से मेरी साधारण रचना असाधारण बन गयी |आपके आशीष से गर्व की अनुभूति और मनोबल को ऊर्जा मिली | सादर🙏🙏💐💐

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  14. मिले जबसे लगन लगी ऐसी
    तुम पर ही टिकी मन की आँखें,
    बस तुम ही तुम ,कोई और कहाँ?
    जो आकर के भीतर झांके
    गाये तेरे प्यार का फगुवा ,
    मनुवा हुआ कबीर सखा !

    ये वही तृप्ति है जिसे पा लेने के बाद और कुछ भी पा लेने की चाहत शेष नहीं रहती।
    तत्कालीन परिवेश में प्रेम के फीके पड़ते रंग को तुम्हारी कोमल भावनाओं ने रंगीन कर दिया है सखी ।
    आज ऐसा प्यार ढूँढना थोड़ा मुश्किल है,अगर मिल गया तो संभालना मुश्किल है।
    और जो ऐसे प्यार पा लिया वो धन्य हो गया,आलोकिक प्रेम में डूबी तुम्हारी ये कृति (जिसमे तुम माहिर हो )अंतर्मन को प्रेममय कर गया सखी

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    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी, तुम्हारी आत्मीयता से भरी प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार सखी ❤❤🙏🌹🌹

      हटाएं
  15. क्यों मोह रहे विश्व- वैभव का
    जग में अब विशेष रहा क्या ?
    नहीं कामना भीतर कोई
    पा तुम्हें ,पाना शेष रहा क्या ?
    मैं अकिंचन हुई बडभागी
    क्यों रहूँ , विकल अधीर सखा !
    बेहतरीन रचनाओं में से एक और शायद कहीं उपर। प्रेमालंकरण की दृष्टि से श्रेष्ठतम।
    बहुत बहुत शुभकामनायें आदरणीया रेणु जी।

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    1. सादर आभार और अभिनंदन आदरणीय पुरुषोत्तम जी। आपकी प्रतिक्रिया सदैव प्रेरक रही है🙏🙏 💐💐

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  16. बहुत सुंदर और अच्छी रचना
    बधाई

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  17. गहन भावों से सजी अप्रतिम कविता रेणु जी! बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर सृजन हेतु ।

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय मीना जी ❤❤🙏🌹🌹

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  18. पूरी रचना ही बेहद खूबसूरत है रेणु जी नव वर्ष मंगलमय हो, हार्दिक शुभकामनाएं आपको

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय ज्योति जी। आपको भी ढेरों शुभकामनाएँ 🌹🌹🙏❤❤

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  19. नहीं कामना भीतर कोई
    पा तुम्हें ,पाना शेष रहा क्या ?
    मैं अकिंचन हुई बडभागी
    क्यों रहूँ,विकल अधीर सखा

    बहुत ही प्यारी पंक्तियां

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    उत्तर
    1. सादर आभार और अभिनंदन प्रिय भारती जी🙏🙏 💕💕🌹

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  20. आदरणीया मैम, मैं आपकी यह कविता अनेकों बार पढ़ चुकी हूँ। हर बार उतना ही आनंद आता है । आपकी यह रचना एक बहुत ही सुंदर है और कृष्ण- गोपिका संवाद की याद दिला देती है।
    मैं अकिंचन हुई बडभागी
    क्यों रहूँ , विकल अधीर सखा ! मेरी प्रिय पंक्ति ।
    सच में भगवान जी हमारे सखा बन जाएँ तो व्याकुलता अपने आप दूर भाग जाती है। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए और आपको प्रणाम।

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    1. प्रिय अनन्ता, तुम्हारी प्रतिक्रिया सदैव निशब्द कर जाती है! सच है जग में भगवान जी से बढ़कर कोई सखा कभी भी नहीं हो सकता! तुमने बड़े सात्विक भाव से रचना को निहार कर अनमोल कर दिया! हार्दिक स्नेह के साथ आभार!
      सदैव खुश रहो ❤❤🌹🌹💐

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  21. बहुत ही सुन्दर रचना..पूर्णता को प्राप्त करते प्रेम की अप्रतिम रचना..

    शुभ दिवस..

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    1. सस्नेह आभार और अभिनंदन प्रिय अर्पिता जी�� ❤��❤❤

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  22. मिले जबसे लगन लगी ऐसी
    तुम पर ही टिकी मन की आँखें,
    बस तुम ही तुम ,कोई और कहाँ?
    जो आकर के भीतर झांके
    गाये तेरे प्यार का फगुवा ,
    मनुवा हुआ कबीर सखा !
    प्रेम की पूर्णता को व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, रेणु दी।

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    1. आपके स्नेह की आभारी हूं ज्योति जी 🙏💐💐🌷

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  23. खोये नयन , ना नैन लगे ,
    प्रीत की आँख मिचौली में


    बहुत ही सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक आभार मनोज जी 🙏💐💐

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    2. बहुत ही खूबसूरत और प्रेम से ओतप्रोत रचना

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    3. हार्दिक आभार प्रिय मनीषा |

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  24. बहुत बहुत सुंदर रेणु बहन,सखा जब आत्म आलोक हो तो फिर और क्बया चाहिए।
    बहुत सुंदर सृजन आपका गहराई तक उतरता।
    सस्नेह।

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    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार प्रिय कुसुम बहन 🙏🌷💐🌷

      हटाएं
  25. तुम संग लगन लगी बहकी साँसे
    तुम पर ही टिकी मन की आँखें,
    बस तुम ही तुम ,कोई और कहाँ?
    जो आकर के भीतर झांके
    गाये तेरे प्यार का फगुवा ,
    मनुवा हुआ कबीर सखा !
    बहुत ही मनमोहक रचना, रेणु दी।

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    उत्तर
    1. रेणु दी, यह रचना आज फिर से ई मेल सब्सक्रिप्शन द्वारा प्राप्त हुई। पढ़ कर कॉमेंट करने कब बाद स्क्रोल करते वक्त पता चला कि मैं ने पहले ही टिप्पणी कर दी थी। खैर।

      हटाएं
    2. प्रिय ज्योति जी, आपको असुविधा हुईं उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं। असल में मेरी एक तकनीकी गलती से यह रचना डिलीट हो गईं और इसकी वजगह दूसरी प्रकाशित हो गईं। मेरे लिए ये और भी दुखद था कि ये रचना मेरे पास कहीं भी लिखी हुईं नहीं थी और मुखड़े के अलावा मुझे कुछ भी याद नहीं था। तब मेरे स्नेही पाठकों की टिप्पणियों ने मेरी मदद की। और यहां से लेकर मैने रचना फिर से ब्लॉग पर डाली और पुनः प्रकाशित की जिसकी सूचना आपको मेल से मिली होगी। हार्दिक आभार आपके स्नेहिल उद्गारों का🙏🙏💐💐🌷

      हटाएं
  26. सुंदर प्रेम गीत। इस कठिन समय में सुकून देती।

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  27. क्यों मोह रहे विश्व वैभव का
    जग में अब विशेष रहा क्या ?
    नहीं कामना भीतर कोई
    पा तुम्हें पाना शेष रहा क्या ?
    मैं अकिंचन हुई बडभागी

    –निःशब्द हूँ

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार और अभिनन्दन आदरणीय दीदी | ब्लॉग पर आपका भ्रमण मेरे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है |

      हटाएं
  28. भक्तिभाव में डूबी सरस रचना

    जवाब देंहटाएं
  29. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (११-०७-२०२१) को
    "कुछ छंद ...चंद कविताएँ..."(चर्चा अंक- ४१२२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  30. फिर से एक बार तुम्हारी इस बेहद प्यारी रचना को पढ़ने का अवसर मिला सादर सादर सखी

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  31. कल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।

    आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभिनन्दम ! सुस्वागतम प्रिय दीदी |आभार पांच लिंक |

      हटाएं
  32. रेणु बहन आपका यह अभिराम सृजन मुझे पहले भी रस में भिगो गया था और आज भी भाव विभोर कर गया।
    अभिनव, अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुस्वागतम कुसुम बहन | रचना पर आपका दुबारा आना आहलादित कर गया |

      हटाएं
  33. प्रेम का रंग एक बार चढ़ जाए तो फीका नहीं पड़ता। इस जंजीर में बंध कर बेवजह की भटकन से मुक्ति मिल जाती है और बस सुधबुध खो कर उसी की छवि में मस्त रहना ही जीवन हो जाता है।
    मन को जब मधुबन कर लिया है तो फिर उसका कान्हा होना और आपकर आत्म परिचय में बस जाना निश्चित हो ही गया है। इस तरह पा लिए हो तो फिर क्या पाना शेष रहा।
    कमाल है कमाल
    आपकी रचना हमारा सौभाग्य।

    जवाब देंहटाएं

Yes

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