मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 29 सितंबर 2018

नेह - तूलिका -कविता




सुनो !   सखा,
 ले   नेह - तूलिका 
 रंग दो मन की कोरी चादर,
 हरे ,गुलाबी ,  लाल , सुनहरी 
 रंग इठलायें  जिस पर  खिलकर !

 सजे  सपने इन्द्रधनुष के   
 नीड- नयन     से मैं   निहारूं 
सतरंगी आभा पर इसकी 
 मैं तन -मन अपना     वारूँ,
बहें  नैन ,जल -कोष  सहेजे 
 मुस्काऊँ  ,नेह अनंत पलक  भर !!
  
 स्नेहिल सन्देश  तुम्हारे 
 नित शब्दों में  तुमसे मिल लूं,
 यादों के गलियारे  भटकूँ 
फिर से  बीता हर  पल  जी लूं  ;
डूबूं आकंठ उन  घड़ियों में 
 दुनिया की हर सुध  बिसराकर !

 अनंत मधु मिठास रचो तुम
आहत मन की आस रचो तुम,
रचो प्रीत- उत्सव कान्हा बन 
जीवन  का मधुमास रचो तुम ,
खिलो कंवल  बन   मानसरोवर  
सजो  अधर   चिर हास तुम  बनकर !!
चित्र -- पञ्च लिंकों से साभार --  
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धन्यवाद  शब्दनगरी ------- 

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शनिवार, 22 सितंबर 2018

तृष्णा मन की - कविता

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 मिले  जब  तुम अनायास  
 मन मुग्ध    हुआ  तुम्हें  पाकर  ;
 जाने थी कौन तृष्णा  मन की  
जो छलक गयी अश्रु बनकर   ? 

 हरेक     से मुंह मोड़ चला  
  मन तुम्हारी  ही   ओर चला,
 अनगिन    छवियों में उलझा  
  तकता   हो भावविभोर चला 
 जगी भीतर  अभिलाष  नई-
 चली ले उमंगों की नयी डगर  ! !

प्राण स्पंदन हुए कम्पित,
जब सुने स्वर तुम्हारे सुपरिचित ;
जाने ये भ्रम था या तुम  वो  ही थे 
 सदियों से  थे  जिसके   प्रतीक्षित;
 कर  गये शीतल, दिग्दिगंत   गूंजे  
 तुम्हारे ही    वंशी- स्वर मधुर !!



 डोरहीन   ये  बंधन  कैसा ?
यूँ अनुबंधहीन     विश्वास  कहाँ ?
  पास नही    पर  व्याप्त मुझमें
 ऐसा जीवन  -  उल्लास  कहाँ ?
 कोई गीत  कहाँ मैं  रच पाती ? 
तुम्हारी रचना ये शब्द प्रखर !
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धन्यवाद शब्दनगरी 

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शनिवार, 8 सितंबर 2018

तुम्हें समर्पित सब गीत मेरे--

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मीत कहूं,मितवा कहूं ,
क्या  कहूँ  तुम्हें   मनमीत मेरे ?
 नाम तुम्हारे ये शब्द  मेरे
 तुम्हें समर्पित सब गीत मेरे !!


 हर बात  कहूं  तुमसे मन की  

 कह अनंत सुख पाऊँ मैं ,
 निहारूं नित मन- दर्पण में  
 तुम्हें  स्व -सम्मुख   पाऊँ मैं;
सजाऊँ  ख्वाब नये  तुम संग -
 भूल, ये  गीत -अतीत मेरे  !!

सृष्टि में जो ये प्रणय का
अदृश्य  सा महाविस्तार है ,
जो युगों से है अपना 
 वही इसका दावेदार है ,
बंधने नियत थे तुम संग 
जन्मों के बंध पुनीत मेरे !!
  
अनुराग बन्ध में सिमटी मैं 
यूँ ही पल- पल जीना   चाहूँp ,
सपन- वपन कर डगर पे साथी 
संग तुम्हारे चलना  चाहूँ  ,
तुम्हारे प्यार  से हुए हैं जगमग 
ये नैनों के दीप मेरे  !!
 नाम तुम्हारे हर  शब्द  मेरे
 तुम्हें  समर्पित सब गीत मेरे !!

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 धन्यवाद शब्दनगरी --------

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विशेष रचना

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