मेरी प्रिय मित्र मंडली

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

प्रेम

 

प्रेम तू सबसे न्यारा .
कहाँ तुझसा कोई प्यारा!

शब्दातीत, कालातीत, 
ज्ञानातीत तू ही! 
इश्क मुर्शिद का तुझसे,
राधा की प्रीत तू ही !
चमक  रहा कब से क्षितिज पे 
बनकर ध्रुव तारा!

मीठा ना  तुझसा छ्न्द कोई.
ना  बाँध सके अनुबंध कोई!
उन्मुक्त गगन के पाखी-सा ,
सह सकता नहीं प्रतिबंध कोई 
 कोई रोके,रोक ना पाये 
 तोड़  निकले हर इक कारा!

आन मिले अनजान पथिक-सा  
साथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
विरह के आनंद  में बह जाता   
बन कर अंसुवन धारा  !


चित्र -पाँच लिंक से साभार  


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