मेरी प्रिय मित्र मंडली

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

पेड़ ने पूछा चिड़िया से- कविता

 

पेड़ ने पूछा चिड़िया से  .
तेरी ‘ चहक’ का फल कहाँ लगता है ?
जिसको चख सृष्टि के कण - कण में  
आनंद  चहुँ ओर विचरता है ! 

जो फूल में गंध बन कर बसता,
करुणा से तार मन के कसता ! 
जो अनहद नाद-सा गुँजित हो  
जड़ - प्रकृति में चेतन भरता ! 
वही साँसों में अमृत सा घुल  
प्राणों में शक्ति भरता है !

यही कलरव सुन कर के  
गोरी का अंतर्मन पुलक जाता ! 
कोई श्याम सखा चुपके से 
कोरे मन में रंग भर  जाता ! 
इससे   निःसृत रस चाँद रात में
रास प्रेम का रचता है । 

माधुर्य का पर्याय बन   
तू चहके मीठी पाग भरी ! 
कण - कण में स्पंदन भर देती  
जब तू  गूँजे आह्लाद भरी ! 
पात -पात बौराता अवनि पे 
नवजीवन का सृजन करता है ! ! 

चिड़िया बोली-
'' जीवनपथ की मैं  अनंत यायावर ! 
तृप्ति - अमृत घट लाती भर-भर, 
अम्बर की विहंगमता  नापूँ नन्हे पंखों से, 
छूती विश्व का परम शिख्रर ! 
काल के माथे पर लिखा  
ये कलरव अजर-अमर है
कविता , वाणी , वीणा में जो
 नित नए स्वर रचता है ! 

मन बैरागी , आत्मगर्वा 
और आत्माभिमानी कहाऊँ ! 
नन्हे पाखी को सौंप गगन को 
 मैं कर्तव्य  निभाऊँ ! 
आजन्म मुक्त और निर्बंध मैं  
मन चाहे जिधर  उड़  जाऊँ ! 
सुन पेड़ सखा ! मेरी ' चहक' का फल 
 स्वछंद प्राणों में पलता है ,
मुक्त कंठ से हो निसृत जो  
सृष्टि में नव -कौतूहल गढ़ता है n   

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