मेरी प्रिय मित्र मंडली

बुधवार, 22 नवंबर 2017

तुम्हारी आँखों से ----- कविता --


तुम्हारी  आँखों से  --

तुम्हारी आँखों से छलक रही है 
किसी की चाहत अनायास  ,
जो भरी हैं पूनम जैसे उजास से  ;
और हर पल चमकती हैं  
अँधेरे में जलते दो दीपों की मानिंद  
जो बह रही है  
तुम्हारी बेलौस   हँसी , के जरिये 
किसी निर्मल और निर्बाध निर्झर सी ! ! 

किसी के सर्वस्व समर्पण ने , 
महका दिया है 
तुम्हारे अंग - प्रत्यंग को ,
तभी तो तुम्हारी देह  
नज़र आती है हरदम 
किसी खिले फूल सी ---- ! ! 

ये चाहत सम्भाल रही है  तुम्हें ,
जीवन के हर मोड़ पर  
अपनी सीमाओं में बंधी तुम ,
भटकने -बहकने से दूर
बही जा रही हो  
सदानीरा नदिया सी 
मचलती और हुलसती-- 
गंतव्य की और ----- ! !

ये चाहत फ़ैल रही है -
यत्र - तत्र - सर्वत्र ---
सुवासित चंचल पवन की तरह ----
बन्धनों से मुक्त हो ----!! 

सच तो ये है  
कि तुम्हारे भीतर  समा चुका है
किसी और का अस्तित्व -- ;
और दो आत्माएं  
 हो  चुकी हैं एकाकार  !! 

 स्वरचित -- रेणु  --
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G प्लस से साभार----- अनमोल टिप्पणी -- 
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कल्पना का सागर लहरा दिया आप ने आदरणीया, बहुत सुंदर वाह वाह तुम्हारी आँखों से !!!!!!!
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