मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

सुनो बादल !--- कविता


नील गगन में उड़ने वाले 
ओ ! नटखट आवारा बादल ,
मुक्त हवा संग मस्त हो तुम
किसकी धुन में पड़े निकल ?


उजले दिन काली रातों में 
अनवरत घूमते रहते हो ,
उमड़ - घुमड़ कहते जाने क्या 
और किसको ढूंढते रहते हो ?
बरस पड़ते किसकी याद में जाने -
 सहसा  नयन तरल !!


तुम्हारी अंतहीन खोज में 
क्या  तुम्हें  मिला साथी कोई ?
या फिर नाम तुम्हारे आई
प्यार भरी पाती कोई ?
क्या ठहर कभी मुस्काये हो
या रहते सदा यूँ ही विकल !!


जब पुकारे संतप्त धरा  
बन फुहार  आ जाते हो  
धन - धान्य को समृद्ध करते
सावन को जब  संग लाते हो ,
सुरमई घटा देख नाचे मोरा 
पंचम सुर में गाती कोकिल !!

मेघ तुम जग के पोषक
तुमसे सृष्टि पर सब वैभव ,
तुमसे मानवता हरी - भरी 
और जीवन बन जाता उत्सव ;
धरती का तपता दामन
तुम्हारे स्पर्श से होता शीतल !!
 

39 टिप्‍पणियां:

  1. मन भी तो उन्मुक्त बादल की तरह है ... कहाँ उड़ता है कहाँ रुकता है ...
    ये मेघ कहीं ख़ुशहाली लाते हैं तो कहीं बर्बादी का सबब भी बनते हैं ..
    पर सच में इनके आगमन से दल झूम झूम जाता है ...
    सुंदर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम्हारी अंतहीन खोज में -
    क्या तुम्हे मिला साथी कोई ?
    या फिर नाम तुम्हारे आई
    प्यार भरी पाती कोई ?
    क्या ठहर कभी मुस्काये हो
    या रहते सदा यूँ ही विकल !!...
    वाह वाह अति उत्तम, वाकई कमाल की रचना आदरणीया, सृष्टि के घटकों का मानवीकरण और उनसे संवाद का यह अंदाज़ हर मन भ ता है, बेहतरीन सृजन👌👌👌👏👏👏

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    1. प्रिय अमित- आपकी सारगर्भित टिप्पणी हमेशा आहलादित करती है | सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-08-2018) को "रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं" (चर्चा अंक-3053) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आहा बहुत सुंदर वर्णन
    बहुत सुंदर कविता

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  5. बहुत सुन्दर लिखा आप ने
    मन को भा गई आप की रचना

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  6. वाह्हह्हह...दी बेहद भावपूर्ण और सुंदर कविता...बादल से यह मासूम संवाद...मन छू गया..👌👌👌
    तुम्हारी अंतहीन खोज में -
    क्या तुम्हे मिला साथी कोई ?
    या फिर नाम तुम्हारे आई
    प्यार भरी पाती कोई ?
    क्या ठहर कभी मुस्काये हो
    या रहते सदा यूँ ही विकल !!

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ है दी।

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    1. प्रिय श्वेता -- आपको रचना पसंद आई मुझे बहुत ख़ुशी हुई सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
    2. प्रिय श्वेता -- आपको रचना पसंद आई मुझे बहुत ख़ुशी हुई सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
  7. वाह बेहतरीन रचना
    उजले दिन काली रातों में -
    अनवरत घूमते रहते हो ,
    उमड़ - घुमड़ कहते जाने क्या -
    और किसको ढूंढते रहते हो ?
    बरस पड़ते किसकी याद में जाने -
    सहसा नयन तरल !!

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    उत्तर
    1. प्रिय अनुराधा जी -- सस्नेह आभार आपके निरंतर प्रोत्साहन के लिए |

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  8. उत्तर
    1. आदरणीय ओंकार जी - स्वागत है आपका | रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार |

      हटाएं

  9. तुम्हारी अंतहीन खोज में -
    क्या तुम्हे मिला साथी कोई ?
    या फिर नाम तुम्हारे आई
    प्यार भरी पाती कोई ?
    क्या ठहर कभी मुस्काये हो
    या रहते सदा यूँ ही विकल !!

    बहुत ही हृदयस्पर्शी
    इस बादल जैसे हम जैसे अनेक इंसान भी हैंं रेणु दी। प्रकृति के माध्यम से मन को छूने वाला है संदेश।

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    1. प्रिय शशि भाई -- आपके स्नेहासिक्त शब्द मन को छू जाते हैं | सस्नेह आभार आपका |

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  10. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०६ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'



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  11. बहुत ही सुंदर रचना।।

    क्या ठहर कभी मुस्कुराये हो।।।
    गहराइयों को छूती हुई।।

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  12. मेघ तुम जग के पोषक
    तुमसे सृष्टि पर सब वैभव ,
    तुमसे मानवता हरी - भरी
    और जीवन बन जाता उत्सव ;
    धरती का तपता दामन
    तुम्हारे स्पर्श से होता शीतल !!... बादलों के प्रति सुंदर सप्तरंगी भाव प्रकट करती सुंदर रचना,मित्र सरीखा सरस संवाद मन मोह गया,बहुत शुभकामनाएँ प्रिय सखी।

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  13. मेघ तुम जग के पोषक
    तुमसे सृष्टि पर सब वैभव ,
    तुमसे मानवता हरी - भरी
    और जीवन बन जाता उत्सव ;
    धरती का तपता दामन
    तुम्हारे स्पर्श से होता शीतल !!
    वाह!!!
    बादलों का मानवीकरण!!!
    इन आवारा बादलों से गुप्तगू बहुत ही मनभावन ...
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  14. उजले दिन काली रातों में
    अनवरत घूमते रहते हो ,
    उमड़ - घुमड़ कहते जाने क्या
    और किसको ढूंढते रहते हो ?
    बरस पड़ते किसकी याद में जाने -
    सहसा नयन तरल !!
    बहुत सुंदर संवाद है बादल से, प्रिय रेणु बहन। आपकी बहुत सुंदर रचनाओं में से एक है यह।

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  15. बादलों संग संवाद बहुत मनभावन लगा ।

    तुम्हारी अंतहीन खोज में
    क्या तुम्हें मिला साथी कोई ?
    या फिर नाम तुम्हारे आई
    प्यार भरी पाती कोई ?
    क्या ठहर कभी मुस्काये हो
    या रहते सदा यूँ ही विकल !!

    सोचा था कि बादल कल बरस ही जायेंगे हमारे इलाके में भी पर कहाँ ,बस विकल से घूमते निकल गए । आज आये थोड़ा रहम कर गए ।
    सुंदर रचना के लिए शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय दीदी | आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने रचना की शोभा बढ़ा दी |और हमारे यहाँ तो आ गया मौनसून| आने वाले एक -दो दिन में बादल बरसने की संभावना है | साद्र्र और सस्नेह|

      हटाएं
  16. गेय, प्रेय, काम्य ... अति सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  17. सस्नेह आभार प्रिय अमृता जी |

    जवाब देंहटाएं

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