नील गगन में उड़ने वाले
ओ ! नटखट आवारा बादल ,
मुक्त हवा संग मस्त हो तुम
किसकी धुन में पड़े निकल ?
उजले दिन काली रातों में
अनवरत घूमते रहते हो ,
उमड़ - घुमड़ कहते जाने क्या
और किसको ढूंढते रहते हो ?
बरस पड़ते किसकी याद में जाने -
सहसा नयन तरल !!
तुम्हारी अंतहीन खोज में
क्या तुम्हें मिला साथी कोई ?
या फिर नाम तुम्हारे आई
प्यार भरी पाती कोई ?
क्या ठहर कभी मुस्काये हो
या रहते सदा यूँ ही विकल !!
जब पुकारे संतप्त धरा
बन फुहार आ जाते हो
धन - धान्य को समृद्ध करते
सावन को जब संग लाते हो ,
सुरमई घटा देख नाचे मोरा
पंचम सुर में गाती कोकिल !!
मेघ तुम जग के पोषक
तुमसे सृष्टि पर सब वैभव ,
तुमसे मानवता हरी - भरी
और जीवन बन जाता उत्सव ;
धरती का तपता दामन
तुम्हारे स्पर्श से होता शीतल !!
मन भी तो उन्मुक्त बादल की तरह है ... कहाँ उड़ता है कहाँ रुकता है ...
जवाब देंहटाएंये मेघ कहीं ख़ुशहाली लाते हैं तो कहीं बर्बादी का सबब भी बनते हैं ..
पर सच में इनके आगमन से दल झूम झूम जाता है ...
सुंदर रचना ...
सादर आभार आदरणीय दिगम्बर जी |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-08-2018) को "रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं" (चर्चा अंक-3053) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय सर -- आपके सहयोग की आभारी हूँ |
हटाएंआहा बहुत सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता
आदरणीय लोकेश जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा आप ने
जवाब देंहटाएंमन को भा गई आप की रचना
प्रिय नीतू -- सस्नेह आभार |
हटाएंवाह्हह्हह...दी बेहद भावपूर्ण और सुंदर कविता...बादल से यह मासूम संवाद...मन छू गया..👌👌👌
जवाब देंहटाएंतुम्हारी अंतहीन खोज में -
क्या तुम्हे मिला साथी कोई ?
या फिर नाम तुम्हारे आई
प्यार भरी पाती कोई ?
क्या ठहर कभी मुस्काये हो
या रहते सदा यूँ ही विकल !!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ है दी।
प्रिय श्वेता -- आपको रचना पसंद आई मुझे बहुत ख़ुशी हुई सस्नेह आभार आपका |
हटाएंप्रिय श्वेता -- आपको रचना पसंद आई मुझे बहुत ख़ुशी हुई सस्नेह आभार आपका |
हटाएंवाह बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंउजले दिन काली रातों में -
अनवरत घूमते रहते हो ,
उमड़ - घुमड़ कहते जाने क्या -
और किसको ढूंढते रहते हो ?
बरस पड़ते किसकी याद में जाने -
सहसा नयन तरल !!
प्रिय अनुराधा जी -- सस्नेह आभार आपके निरंतर प्रोत्साहन के लिए |
हटाएंप्रिय अमित- आपकी सारगर्भित टिप्पणी हमेशा आहलादित करती है | सस्नेह आभार आपका |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय ओंकार जी - स्वागत है आपका | रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंतुम्हारी अंतहीन खोज में -
क्या तुम्हे मिला साथी कोई ?
या फिर नाम तुम्हारे आई
प्यार भरी पाती कोई ?
क्या ठहर कभी मुस्काये हो
या रहते सदा यूँ ही विकल !!
बहुत ही हृदयस्पर्शी
इस बादल जैसे हम जैसे अनेक इंसान भी हैंं रेणु दी। प्रकृति के माध्यम से मन को छूने वाला है संदेश।
प्रिय शशि भाई -- आपके स्नेहासिक्त शब्द मन को छू जाते हैं | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- सादर आभार |
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०६ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
प्रिय ध्रुव --- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना।।
जवाब देंहटाएंक्या ठहर कभी मुस्कुराये हो।।।
गहराइयों को छूती हुई।।
सस्नेह आभार प्रिय सलमान |
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार पम्मी जी |
हटाएंमेघ तुम जग के पोषक
जवाब देंहटाएंतुमसे सृष्टि पर सब वैभव ,
तुमसे मानवता हरी - भरी
और जीवन बन जाता उत्सव ;
धरती का तपता दामन
तुम्हारे स्पर्श से होता शीतल !!... बादलों के प्रति सुंदर सप्तरंगी भाव प्रकट करती सुंदर रचना,मित्र सरीखा सरस संवाद मन मोह गया,बहुत शुभकामनाएँ प्रिय सखी।
सस्नेह आभार प्रिय जिज्ञासा जी |
हटाएंमेघ तुम जग के पोषक
जवाब देंहटाएंतुमसे सृष्टि पर सब वैभव ,
तुमसे मानवता हरी - भरी
और जीवन बन जाता उत्सव ;
धरती का तपता दामन
तुम्हारे स्पर्श से होता शीतल !!
वाह!!!
बादलों का मानवीकरण!!!
इन आवारा बादलों से गुप्तगू बहुत ही मनभावन ...
लाजवाब सृजन।
सस्नेह आभार प्रिय सुधा जी |
हटाएंउजले दिन काली रातों में
जवाब देंहटाएंअनवरत घूमते रहते हो ,
उमड़ - घुमड़ कहते जाने क्या
और किसको ढूंढते रहते हो ?
बरस पड़ते किसकी याद में जाने -
सहसा नयन तरल !!
बहुत सुंदर संवाद है बादल से, प्रिय रेणु बहन। आपकी बहुत सुंदर रचनाओं में से एक है यह।
सस्नेह आभार प्रिय मीना |
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबादलों संग संवाद बहुत मनभावन लगा ।
जवाब देंहटाएंतुम्हारी अंतहीन खोज में
क्या तुम्हें मिला साथी कोई ?
या फिर नाम तुम्हारे आई
प्यार भरी पाती कोई ?
क्या ठहर कभी मुस्काये हो
या रहते सदा यूँ ही विकल !!
सोचा था कि बादल कल बरस ही जायेंगे हमारे इलाके में भी पर कहाँ ,बस विकल से घूमते निकल गए । आज आये थोड़ा रहम कर गए ।
सुंदर रचना के लिए शुभकामनाएँ
सस्नेह आभार प्रिय दीदी | आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने रचना की शोभा बढ़ा दी |और हमारे यहाँ तो आ गया मौनसून| आने वाले एक -दो दिन में बादल बरसने की संभावना है | साद्र्र और सस्नेह|
हटाएंगेय, प्रेय, काम्य ... अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय अमृता जी |
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