मन पाखी की उड़ान
तुम्हीं तक मन मीता
जी का सम्बल तुम एक
भरते प्रेम घट रीता !
नित निहारें नैन चकोर
ना नज़र में कोई दूजा
हो तरल बह जाऊं आज
सुन मीठे बैन प्रीता !
बाहर पतझड़ लाख
चिर बसंत तुम मनके
सदा गाऊँ तुम्हारे गीत
भर - भर भाव पुनीता !
बिन देखे रूह बेचैन
हर दिन राह निहारे
लगे बरस - पल एक
साथी !जो तुम बिन बीता !
निर्मम वक़्त की धार
ना जाने किधर मुड़ जाए
तजो ,गूढ़ -ज्ञान व्यापार
पढो !आ प्रेम की गीता ! !
चित्र - गूगल से साभार
शब्द नगरी पर भी पढ़े ---- लिंक --
https://shabd.in/kavita/117097/man-pakhi-ki-udaan-prem-kavita
वाह क्या बात है,
जवाब देंहटाएंअति सुंदर मनमोहक,समर्पित भावों से गूँथी सरस रचना दी।
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न मोहे इस जग की माया
रिस रही नित दिन सुंदर काया
निष्ठुर जीवन पथ है साथी
प्रेम तुम्हारा घूँट-घूँट मन पीता
--–-
खूब लिखिए दी आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहती है।
सस्नेह।
सादर शुभकामनाएं।
प्रिय श्वेता , तुम्हारी स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया से मन को अपार हर्ष हुआ |तुम्हारी काव्यात्मक टिप्पणी रचना के अधूरे भावों को पूरा कर रही है | आजकल बहुत कम लिख पा रही हूँ पर कुछ दिन बाद नियमित होने की आशा है | कोटि आभार तुम्हारे इस अतुलनीय स्नेह के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर बिम्ब प्रतीकों सजा उत्कृष्ट प्रेम गीत।हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और सुस्वागतम तुषार जी |
हटाएंअक्षर-अक्षर प्रेम में भीगा हुआ है रेणु जी आपके इस गीत का । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और सुस्वागतम जितेन्द्र जी |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 12 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
हार्दिक आभार और शुक्रिया प्रिय श्वेता |
हटाएंवाह . क्या खूब प्रेम भाव से सराबोर रचना है .
जवाब देंहटाएंबसी हो मन में
जब प्रीत ही प्रीत
इस संसार से तब
केवल जीत ही जीत .
आदरणीय दीदी . ब्लॉग पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति और इस अत्यंत सुंदर काव्यात्मक प्रतिक्रिया से मन बाग़- बाग़ है | हार्दिक आभार और सुस्वागतम |
हटाएंप्रेमभाव में डूबी आपकी ये रचना आपका स्वभाव और आपके निश्छल प्रेम की घोतक है। एक ऐसा प्रेम जो अपार है।
जवाब देंहटाएंपंक्तियों ने पाठक को ढील नहीं दी है जबकि जकड़े रखा है। दिलो दिमाग प्रफुल्लित कर देने वाली रचना रच डाली है आपने
हार्दिक आभार और सुस्वागतम प्रिय रोहित |
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सरस भाव पूर्ण सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और सुस्वागतम आदरणीय आलोक जी |
हटाएंनिर्मम वक़्त की धार
जवाब देंहटाएंना जाने किधर मुड़ जाए
तजो गूढ़ -ज्ञान व्यापार
पढो !आ प्रेम की गीता ! !
क्या बात है सखी !! प्रेम गीता का पाठ यदि सब पढ़ ले तो जग स्वर्ग हो जाए...लाज़बाब सृजन,सही कहा श्वेता जी ने तुम्हारी रचनाओं का इंतज़ार रहता है...ढेर सारा स्नेह तुम्हे
प्रिय कामिनी , रचना के मर्म को छूती तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी | ये तुम्हारा स्नेह है बस |
हटाएंवाह! सुंदर श्रृंगार गीत, उद्धव जी को गोपियों का कृष्ण पर अनुराग जैसा छलक रहा है आपकी रचना में रेणु बहन।
जवाब देंहटाएंसुंदर मुग्ध करता सृजन।
आपकी प्रतिक्रिया से मन मुदित हुआ कुसुम बहन | ब्लॉग पर आपकी निरंतर उपस्थिति के लिए
हटाएंहार्दिक आभार और सुस्वागतम |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१३-०३-२०२१) को 'क्या भूलूँ - क्या याद करूँ'(चर्चा अंक- ४००४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
हार्दिक आभार और शुक्रिया अनीता जी |
हटाएंलाजवाब पंक्तियाँ !सुन्दर भावों से सजी शानदार कविता! बधाई!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और सुस्वागतम प्रिय संजय |
हटाएंनिर्मम वक़्त की धार
जवाब देंहटाएंना जाने किधर मुड़ जाए
तजो गूढ़ -ज्ञान व्यापार
पढो !आ प्रेम की गीता ! ! वाह! अद्भुत प्रेम गीत! मानों गोपिका की उद्धव को ललकार की प्रतिध्वनि गुंजित हो रही हो!!! बधाई और आभार इस रूहानी ज़ज्बात का!!!
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया और ब्लॉग पर आगमन के लिए हार्दिक आभार और शुक्रिया आदरणीय विश्वमोहन जी |
हटाएंप्रेमपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और सुस्वागतम अरुण जी |
हटाएंनित निहारें नैन चकोर
जवाब देंहटाएंना नज़र में कोई दूजा
हो तरल बह जाऊं आज
सुन मीठे बैन प्रीता !
बाहर पतझड़ लाख
चिर बसंत तुम मनके
सदा गाऊँ तुम्हारे गीत
भर - भर भाव पुनीता !वाकई जब प्रेम की फुहारें पड़ रही हो तो कोई पतझड़ कोई आंधी प्रेम डगर में बाधा नहीं डालती.. प्रेमपूर्ण भावनाओं से आह्लादित सुंदर कृति..
रचना के भाव को छूती आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए कोटि आभार जिज्ञासा जी | ये स्नेह बना रहे |
हटाएंआदरणीया मैम, अत्यंत सुंदर प्रेम कविता। मैं ने आज तक आपकी जितनी प्रेम कविताएँ पढ़ी हैं, सभी बहुत सुंदर होतीं हैं और सभी में पता नहीं क्यों कृष्ण भगवान की झलक सहज दिख जाती है।
जवाब देंहटाएंइस कविता की आखिरी पंक्ति कबीरदास जी जे दोहे का स्मरण करा देती है:-
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय,
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
अत्यंत अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
प्रिय अनंता , रचना की समीक्षा की अद्भुत कला है तुममें | हार्दिक आभार और प्यार इस स्नेहिल व भावपूर्ण प्रतिकिया के लिए |
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन - -
जवाब देंहटाएंहार्दिक आबार और अभिनंदन शांतनु जी🙏🙏
हटाएंनिर्मम वक़्त की धार
जवाब देंहटाएंना जाने किधर मुड़ जाए
तजो ,गूढ़ -ज्ञान व्यापार
पढो !आ प्रेम की गीता ! !
वाह!!!!
कमाल का गीत लिखा है प्रेम पर आपने रेणु जी !
वाकई आपके गीतों की बात ही अलग है
सही कहा आपने सखी कि मेरा ब्लॉग पठन सूची में नहीं दिखता ...मैनेज नहीं कर पा रही हूँ मैं ब्लॉग को...आपकी रचनाएं भी नहीं दिख रही मुझे पठनसूची में...। एक दो fbसे आपकी पुरानी रचनाओं के साथ इधर आयी तो जाना कि आजकल आप व्यस्तता के चलते लिख नहीं पा रही ...मेरे साथ भी यही है कभी नियमित नहीं रह पाती...इसलिए आपकी उलझन भी समझती हूँ...इतनी व्यस्तता के वावजूद आप मेरे ब्लॉग पर आये मेरा उत्साहवर्धन किया,इसके लिए तहेदिल से धन्यवाद आपका।
सस्नेह आभार एवं बहुत बहुत शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा जी, आपके स्नेहिल स्पर्श के बिना मेरे ब्लॉग की हर रचना अधूरी- सी है। आपकी आत्मीयता और रचना के मर्म को छूने की कला बहुत विशेष है। आपके ब्लॉग को अपने दोनों ईमेल से फॉलो करती हूँ। हार्दिक आभार आपका। ये स्नेह यूँ ही बना रहे 🌹🌹🙏❤❤
हटाएंप्रिय रेणु जी, आपकी इस कविता ने मन मोह लिया। पूरी कविता बढ़िया है... लेकिन
जवाब देंहटाएंबाहर पतझड़ लाख
चिर बसंत तुम मनके
सदा गाऊँ तुम्हारे गीत
भर - भर भाव पुनीता !
इन पंक्तियों के भाव बहुत ही सुंदर हैं।
इस ख़ूबसूरत कविता के लिए मेरी बधाई
एवं
अनंत शुभकामनाएं 🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
प्रिय वर्षा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से अपार हर्ष हुआ। आपके उत्साहवर्धन करते अनमोल शब्दों के लिए हार्दिक आभार 🌹🌹🙏❤❤
हटाएंबहुत ही प्यारी सी रचना है,भाव तो कमाल के है , मधुर प्रेम गीत के लिए आपको ढेरों बधाई हो
हटाएंप्रिय ज्योति जी, ब्लॉग पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। आपके ब्लॉग भ्रमन से मन आह्लादित है। रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए कोटि आभार 🌹🌹🙏❤❤।
हटाएंरेणु दी, प्रेम से ओतप्रोत,विभिन्न सुंदर प्रतिकों से सजी बहुत ही सुंदर रचना के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी, ब्लॉग पर सदैव आपका हार्दिक अभिनंदन है। रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहित करती है। हार्दिक आपका आपका।
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 22 मार्च 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार और अभिनंदन दीदी 🌹🌹🙏🙏❤❤
हटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपके आगमन और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय प्रीति जी च🌹🌹🙏❤❤
हटाएंप्रेम की गीता में डुबकी लग गई ...सारे शब्द खो गये ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय अमृता जी🌹🌹🙏❤❤
हटाएंप्रेम की नई नई प्रतिमाएं बुन दीं आपने ... नए बिम्ब, अनोखे बिम्ब
जवाब देंहटाएंपीढ़ी के बदलाव से बदलते प्रेम की मंज़र को बाखूबी लिखा है आपने ... लाजवाब ...
ब्लॉग पर आपके आगमन और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार दिगम्बर जी🙏🙏
हटाएंबाहर पतझड़ लाख
जवाब देंहटाएंचिर बसंत तुम मनके
सदा गाऊँ तुम्हारे गीत
भर - भर भाव पुनीता !
सच, यदि जीवन में प्रेम ना हो तो जीवन सूना ही है। पर इस प्रेम की अभिव्यक्ति इतने सुंदर काव्यात्मक शब्दों में कर पाना भी हर किसी के लिए संभव नहीं। अंतिम पंक्तियाँ भी बहुत पसंद आईं मानो कह रही हों -
"ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय"
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन प्रिय मीना |
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