'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
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विशेष रचना
आज कविता सोई रहने दो !
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
बहुत खूबसूरत रचना रेणु जी,चाँद के रूप सौंदर्य और राधा श्याम के मधुर रास का का मनोहारी चित्रण अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंवाह्ह....अति सुंदर रचना रेणु जी।
आदरणीय श्वेता जी आभारी हूँ आपकी |
हटाएंगोरी के तरसे नयन पिया बिन -
जवाब देंहटाएंधीरज पाते तुझसे अपार ;
तुझमे छवि पाती श्याम - सखा की
खिल खिल जाता रे मन का कमल !!
ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!!!!!!!
चांद के मोहक रूप की अति सुंदर विवेचना की है आपने। बधाई।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपके प्रेरणा से भरे शब्द बहुत मनोबल बढाते हैं | आभारी हूँ आपकी |
हटाएंअति सुंदर रचना रेनू दी.आपने शरद पूर्णिमा के मनभावन रूप को शब्दों में कैद कर लिया. बहुत सुंदर. सादर
जवाब देंहटाएंप्रिय अपर्णा ----- आपका मेरे ब्लॉग पर आ मेरा उत्साहवर्धन करना - आपके अनन्य स्नेह का परिचायक है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआदरनीय लोकेश जी -- हार्दिक आभार आपका |
हटाएंSharad purnima ka sundar varnan
जवाब देंहटाएंआदरणीय अर्चना जी हार्दिक आभार आपका |
हटाएंकौन रे महा बड़भागी तुम सा -
जवाब देंहटाएंवाह शरद पूर्णिमा सी ही मनभावन रचना...
वाह!!!
आदरणीय सुधा जी ----- आपका मेरे ब्लॉग पर आने और रचना पसंद करने के लिए कोटिश आभार !!!!!!
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावाभियक्ति।
सुगढ़ ,सुन्दर ,उत्कृष्ट साहित्यिक कृति।
भाव-सौंदर्य का कल-कल बहता झरना। मनमोहक रचना।
बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीया रेणु जी।
आदरणीय रविन्द्र जी ---- आपके उत्साह से भरे प्रेरक शब्द मेरी रचना को सार्थक बनाते हैं | हार्दिक आभार आपका |
हटाएं"शरद पूर्णिमा पर विशेष भावपूर्ण कविता। सुन्दर शब्द शिल्प ।"
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/10/38.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
सादर आभार राकेश जी |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार १६ अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंआदरणीया रेणु जी आपकी रचना की समीक्षा भी बहुत सोच -समझ के करनी पड़ती है और मैं क्या कहूँ ! अत्यंत ही सुन्दर एवं उत्कृष्ठ कृति। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंआपसे एक और अनुरोध है। आप अनुसरणकर्ता का उपकरण लगायें जिससे हमें आपकी नई रचना की सूचना प्राप्त हो सके। आभार "एकलव्य"
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार १६ अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
प्रिय ध्रुव -----आप के स्नेह भरे शब्दों ने मेरी साधारण सी रचना को असाधारण सा बना दिया | आभारी हूँ आपके प्रयासों की | मैंने ब्लॉग में कुछ परिवर्तन किये हैं आशा है इनसे लाभ मिलेगा |कुछ कमी हो तो कृपया बताने का कष्ट करें | पुनः सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत ही सौम्य सुंदर रचना ! शरद की चाँदनी की तरह ही शीतलता दे रही है मन को । बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी - बहुत आभारी हूँ आपकी |
हटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी हार्दिक आभार आपका |
हटाएंमनभावन रचना...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंनीतू जी -- आपका अपने ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत करती हूँ और आभारी हूँ अपने रचना पसंद की|
हटाएंचाँदनी की तरह ही शीतलता बहुत ही खुबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय ---हार्दिक आभार आपका |
जवाब देंहटाएंशरद के चाँद की आभा ही कुछ और होती है ... प्रेम के भाव स्वत ही जाग उठते हैं इसके आगमन से ... और सुन्दर रचनाओप्न को जन्म देता हैं ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर जी -- आपके शब्द सदैव विशेष होते हैं मेरे लिए | सादर आभार |
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुराधा जी-- सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना 🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा बहन -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंगोरी के तरसे नयन पिया बिन -
जवाब देंहटाएंधीरज पाते तुझसे अपार ;
तुझमे छवि पाती श्याम - सखा की,
कविता का असली निचोड़ तो इन चार पंक्तियों में है , शरद पूर्णिमा की हार्दिक बधाई .
आदरनीय शैल जी -- विषय को विस्तार देते आपके शब्द अनमोल हैं | सुस्वागतम और आभार |
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 25 अक्टूबर 2018 को प्रकाशनार्थ 1196 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आदरणीय रविन्द्र जी -- विलम्भ से प्रतिउत्तर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | आपका अतुलनीय सहयोग आभार से परे है | सादर --
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति रेणू बहन, बहुत ही सुंदर उपमाओं से सजी धवल पूर्णिमा सी मुखरित रचना ।
जवाब देंहटाएंआ चांद तूझे छुपा लूं पलको में
तूं गवाह है मेरे राधे श्याम के सानिध्य का
बता तो जरा कैसा अनुपम रूप था उनका
कहीं तुम भी तो मदहोश हुवे उन के दर्शन को।
वाह !! कुसुम बहन आपकी काव्यात्मक टिप्पणी ने रचना की शोभा बढ़ा दी है | मूल रचना से भी सुंदर हैं आपकी चार पंक्तियाँ ! सस्नेह आभार |
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!!!!!!!
बिल्कुल दी, इस प्यारे से चाँद पर आज की रात तो कोई कलंक नहीं होता न ?
सच कहा आपने शशि भाई | अज इस निष्कलंक चन्द्रमा की आभा का कोई सानी नहीं |
हटाएंबेहतरीन भावों से सजी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अभिलाषा बहन |
हटाएंमधुर भावों से सजी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनन्दन उर्मिला जी |
हटाएंश्वेत शशक सा शरद सुभग सलोना
जवाब देंहटाएंचमक चांदनी चक मक कोना कोना
राजे रजत रजनी का चंचल चितवन
प्लावित पीयूष प्रेम पिया का तन मन.... वाह!रजत राका का महारास।
हार्दिक सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी |मूल रचना से कहीं सुंदर हैं आपकी काव्य पंक्तियाँ |
हटाएंसूंदर रचना है रेणु , बधाई !
जवाब देंहटाएंसादर आभार सतीश जी | आपके पढने से रचना को सार्थकता मिली |
हटाएंवाह रेणु जी ! प्रदूषण के आधिक्य के कारण इन दिनों तो शरद पूर्णिमा पर भी चाँद सहमा और उदास नज़र आता है किन्तु आपने उसे फिर से उसकी पुरानी शोभा प्रदान की है.
जवाब देंहटाएंशुद्ध, प्रांजल और मनोहर शब्दावली ने चांदनी रात में पन्त जी की - नौका विहार' की याद दिला दी.
आदरणीय गोपेश जी , आपकी इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए सदैव आभारी रहूंगी | सादर आभार और प्रणाम |
हटाएंउच्च कोटि की रचना
जवाब देंहटाएंअनिल भैया , आपके पढने से रचना सार्थक हुई | हार्दिक आभार आपका |
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