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रविवार, 23 जुलाई 2017

आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया --- कविता

आई  आँगन  के  पेड़  पे  चिड़िया ------- कविता

आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ,
उड़ती जाती फुर्र - फुर्र  ,
 चाल  चले मस्त  लहरिया !

राह  भूली थी  शायद 
 तब इधर आई , 
देख हरे नीम ने भी 
बाहें फैलाई !
फुदके पात- पात ,
 हर डाल पे घूमें , 
कभी सो जाती 
बना डाली का तकिया ! 
उल्लास में खोई --
 फिरे शोर मचाती , 
मीठा गाना गाती -
थोड़ा दाना चुग जाती , 
देख हँसे  खिल-खिल मुन्ना ,
उदास थी अब  मुस्काई मुनिया ! 

हुआ भरा- भरा सा ,
सूना था आँगन, 
घर का हर कोना 
पुलक बना है मधुबन ,
तुम्हारे कारण आई 
ये  नन्ही   चिड़िया !
 ओ नीम ! 
तुम्हारा  बहुत शुक्रिया ! 

चित्र -- निजी संग्रह -- -----------------------------------------------------------


मेरे गाँव ------ कविता


मेरे  गाँव  ------------ कविता --
तेरी  मिटटी  से बना   जीवन  मेरा -
तेरे  साथ  अटूट  है  बंधन   मेरा ,
 तुझसे  अलग कहाँ कोई  परिचय मेरा ?
 तेरे संस्कारों  में पगा तन -मन मेरा !!

नमन  तेरी सुबह  और  शाम  को-
तेरी धरती, तेरे  खेत -  खलिहान  को ,
तेरी गलियों , मुंडेरों  का  कहाँ  सानी कोई  ?
 वंदन  मेरा  तेरे  खुले  आसमान को  ;
तेरे   उदार परिवेश  की  पहचान मैं-
तेरी  यादें अनमोल  संचित  धन  मेरा !!

जब  कभी  तेरे सानिध्य  में लौट  आती हूँ मैं-
तब  - तब नई उमंग  से भर जाती  हूँ मैं ,
तेरी    गलियों   मे विचर उन्मुक्त  मैं  --
बीता बचपन फिर से  जी  जाती हूँ मैं ;
लौट जाती हूँ फिर  नम  आँखों  से   -
 आँचल  में  भर   अपनापन तेरा !!

मन -आँगन  में  तेरे  रूप का  हरा  सा  कोना है
 मुझ   विकल  का   वही स्नेह भरा  बिछौना है ;
नित   निहारूं   मन की आँखों  से तुझे-
जिन में  बसा  ये  तेरा  रूप  सलोना है-
जब  -जब  आऊँ  तुझे   नजर  भर देखने
पाऊँ महकता  स्नेह भरा  उपवन तेरा  !!
 
ना  आये  बला कोई   तुझपे- ना हो  कभी बेहाल तू,
ले दुआ बेटी की  -सदा रहे    खुशहाल तू  ;
रौशन  रहे  उजालों से   सुबह -शामें   तेरी
 सजा  नित अपनी चौखट पे ख़ुशी   की ताल  तू
लहराती  रहें हरी -  भरी फसलें  तेरी-
 मुरझाये ना कभी - ये हरियाला  सावन  तेरा !!!

तुझसे  अलग कहाँ कोई  परिचय मेरा ?
 तेरे संस्कारों  में पगा तन मन मेरा !!!!!!!!!!!
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विशेष रचना

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