हुए रूहानी प्यार के
कर्ज़दार हम ,
रखेगें इसे दिल में
सजा संवार हम !!
बदल जायेंगे जब
सुहाने ये मन के मौसम ,
तनहाइयों में साँझ की
घुटने लगेगा दम,
खुद को बहलायेंगें
इसको निहार हम !!
इस प्यार की क्षितिज पे
रहेंगी टंकी कहानियां ,
लेना ढूंढ तुम वहीँ -
विस्मृत ये निशानियाँ -
आँखों से बह उठेगे
बन अश्रु की धार हम !!
हर शाम हर सुबह में -
मांगेगे हर दुआ में-
ठुकरायेगी जो दुनिया -
आयेंगे तेरी पनाह में
हर सांस संग रहेंगे
तेरे तलबगार हम !!!
रहेगी ये खुमारी -
मिटेगी हर दुश्वारी -
भले ना जुड़ सके हम
रहेगी ये खुमारी -
मिटेगी हर दुश्वारी -
भले ना जुड़ सके हम
जुड़ेंगी रूहें हमारी
और फिर मिलेंगे
जीवन के पार हम!
स्वरचित -- रेणु--
चित्र -- गूगल से साभार --
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स्वरचित -- रेणु--
चित्र -- गूगल से साभार --
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रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (रूहानी प्यार ----- कविता ------------- ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
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बहुत प्यारी और भावपूर्ण कविता रेणु बहन....अत्यंत भावुक कर देने वाले शब्द जो दिल की गहराइयों से ही निकल सकते हैं....बस एक बात खटक रही है - प्यार में कोई किसी का कर्जदार नहीं होता !!! प्यार तो प्यार है, कोई अहसान नहीं। हाँ, ये बात जरूर है कि कुछ लोग प्रेम भी देते हैं, तो अहसान की तरह.....
जवाब देंहटाएंकविता के भाव आँखें नम कर गए। नारीहृदय की कोमलता ब समर्पण को बेहतरीन शब्दों में व्यक्त किया आपने !
प्रिय मीना बहन -- ये किसी और के शब्द और अनुभव है -- मैंने रचना का रूप देने की कोशिश की है | आपने बे बेबाकी से रचना पर अपनी राय रखी | मुझे बहुत ख़ुशी हुई | मैंने भी इस और ध्यान नहीं दिया पर शायद ऋणी होना ही इस संसार में संबंधों का मूल है |जब प्रेम प्रत्याशित होता है तो लगता है कि किसी जन्म का ऋण चुकाने आया है कोई |बस इसी रौ में सुने हुए शब्द लिख दिए | आपने रचना के भावों के मर्म को पहचाना मुझे बहुत अच्छा लगा |आपकी आभारी हूँ | आजकल मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी दिखाई नही पड़ रही | बहुत परेशान हूँ | शायद कोई तकनीकी खराबी आ गई है | पर आपकी टिप्पणी मुझे अंदर मिल गई थी जिसे मैं यहाँ ला पाई | ||
हटाएंकृपया प्रत्याशित को अप्रत्याशित पढ़ें मीना बहन -
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-06-2018) को "मत सीख यहाँ पर सिखलाओ" (चर्चा अंक-2991) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
सादर आभार आदरनीय राधा जी |
हटाएंवाह्ह्ह...रेणु दी...बेहद हृदयस्पर्शी,भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंपूर्ण समर्पण में डूबा प्रेमिल हृदय से निकले सच्चे भाव।
बहुत बहुत पसंद आयी आपकी रचना दी..👌👌👌
प्रिय श्वेता -- आपके स्नेह की आभारी रहूंगी |
हटाएंरूहानी प्यार
जवाब देंहटाएंमिलेंगे जीवन के उस पार ....वाह वाह ..गहराते भावों के उदगम स्थल को सहलाती रचना ...
प्रिय इंदिरा बहन----- रचना का मर्म पहचानने के लिए आपकी आभारी हूँ |
हटाएं"जो दिल यहां न मिल सके मिलेगें उस जहान मे "
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढकर ये शानदार पंक्तियाँ याद आ गई, रेनू बहन बहुत ही सुंदर आपकी रचना जैसे हृदय से निकलते बोल, विरह, आशा और समर्पण सभी बहुत लय से सुरीला सा गीत ।
अप्रतिम।।
प्रिय कुसुम बहन --- आपके स्नेहासिक्त हमेशा आह्लादित कर मनोबल उंचा करते हैं | आपका स्नेह अनमोल है |
हटाएंआज उदासी भरे भाव हैं आपकी रचना में
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय जी --- सस्नेह आभार रचना के भाव पहचानने के लिए |
हटाएंअसल प्रेम तो मन से मन का ही होता है और वही रूहानी प्रेम है ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दिगम्बर जी |
हटाएंरेनू जी ,कहते हैं प्रेम के तीन स्तर होते हैं , जो आत्मा या रूह से हो वही सच्चा प्रेम हैं जिसे आपने अपनी कविता में बहुत खूबसूरती से डाला है |
जवाब देंहटाएंआदरणीय वंदना जी *****रचना की विषय वस्तु की इतनी सुंदर व्याख्या करने के लिए सादर आभार ।
हटाएंप्रेम ही सत्य है, प्रेम ही शिव है , प्रेम ही सुंदर है । हृदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा जी। हार्दिक ।आभार और शुक्रिया ।
हटाएंप्रिय अभिलाषा जी आपने प्रेम को खूब परिभाषित लिया है।हार्दिक आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंप्रिये रेणु ,सखी तुम कलम की धनी हो ,नतमस्तक हूँ मैं तुम्हारी लेखनी पर ,अधूरे और रूहानी प्रेम के बिरह को जो तुमने शब्दों में पिरोया है,उसके तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ,निशब्द हूँ.स्नेह
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी - सबसे पहले स्वागत है तुम्हारा मेरे ब्लॉग के रचना संसार में |रचना पसंद आई ये जानकर ख़ुशी भी है और संतोष भी | ये सराहना सर माथे पर | सस्नेह आभार बहन |
हटाएंप्रिय रेणु जी बहुत ही सुंदर लेखन के लिए हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सखी। 🌹🌹🙏🌹🌹
हटाएंरूहानी प्यार..कभी बौछार, कभी दुश्वार, आज इंतजार है..
जवाब देंहटाएंकाफूर हो गया वक्त तो क्या, रूहानियत आज भी बरकरार है..
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी..
सादर नमन..
प्रिय अर्पिता जी, ब्लॉग पर आपके भ्रमण से अपार हर्ष हुआ। हार्दिक आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
पाठकों के समक्ष मेरी पुरानी रचना लाकर, स्मरण कराने के
हटाएंहार्दिक आभार प्रिय दीदी ❤️🌷💐💐🙏
रहेगी ये खुमारी -
जवाब देंहटाएंमिटेगी हर दुश्वारी -
भले ना जुड़ सके हम
जुड़ेंगी रूहें हमारी
और फिर मिलेंगे
जीवन के पार हम!
जन्म जन्मांतर का प्रेम रूहानी प्रेम पर शब्द शब्द रूह तक पहुँचता और प्रेममय हो आँखें नम करता ....ये आपकी लेखनी से ही सम्भव है...
अद्भुत एवं लाजवाब।
आपकी आत्मीयता और स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए सदैव ही आभारी हूं।🌷💐💐❤️🙏
हटाएंयही मिलन की आस ही तो प्रीत की साँस है। प्रेममय भावों का सरल और सहज प्रकटीकरण। बहुत सुन्दर।
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हटाएंहार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय अमृता जी 🌷💐💐❤️🙏
एक बार फिर से प्रेम की रुहानियत को महसूस किया
जवाब देंहटाएंतुम्हारी कविताओं के माध्यम से सखी, संगीता दी के अथक परिश्रम के कारण पुरानी रचनाओं का फिर से आनन्द उठाने का अवसर मिला, सहृदय धन्यवाद उन्हें, और तुम्हें ढ़ेर सारा स्नेह
बहुत-बहुत आभार सखी 🌷🌷💐❤️🙏
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