उड़ती जाती फुर्र - फुर्र ,
चाल चले मस्त लहरिया !
राह भूली थी शायद
तब इधर आई ,
देख हरे नीम ने भी
देख हरे नीम ने भी
बाहें फैलाई !
फुदके पात- पात ,
फुदके पात- पात ,
हर डाल पे घूमें ,
कभी सो जाती
कभी सो जाती
बना डाली का तकिया !
'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
चिड़िया का देहरी पे आना ... खुशियों का संकेत है ... और ये संभव होता है पेड़ से ... तो उसका शुक्रिया तो बनता ही है ....
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगंबर जी -- सचमुच चिड़िया हमारे जीवन का अभिन्न अंग है -- बहुत शुक्रिया आपका भी -- रचना का मर्म पहचानने के लिए ---------
हटाएंयहाँ नीम का पेड़ और चिड़ियाँ का पेड़ पर उतरना मानों द्योतक है आपकी उड़ान भरती कल्पना और उनका छन्दों में खूबसूरती हे उतरना। इस बेहतरीन कल्पना हेतु बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी आपकी आभारी हूँ किआपने रचना पढ़ी |
हटाएंमन भावन रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय अमन --- बहुत आभारी हूँ आपकी जो आपने ब्लॉग पर आकर रचना पढ़ी |
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंनीम तुम्हारा बहुत शुक्रिया ! ! !
खूबसूरत रचना।
आदरणीय पम्मी जी हार्दिक आभार आपका |
हटाएंचिड़िया का आंगन में फुदकना और पेड़ों पर चहचहाना कितना अच्छा लगता है ! खास तौर पर बाल मन को । बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेश जी सच कहा आपने | आभारी हूँ आपकी कि आपने रचना पढ़ी और इसका मर्म जाना |
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रिय शकुन्तला-- बहुत आभारी हूँ आपको रचना अच्छी लगी -------
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं''लोकतंत्र'' संवाद के प्रथम अंक में आप सभी महानुभावों का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'बृहस्पतिवार' २८ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
सस्नेह आभार आपका - प्रिय ध्रुव |
हटाएंएक अच्छा संदेश देती हुई कविता कि अगर चिड़ियों का कलरव सुनना है तो हर आंगन नीम का पेड़ हो।
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधु-- सादर आभार और स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर --
हटाएंसुंदर!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार -- आदरणीय विश्वमोहन जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंवाह ! क्या कहने हैं ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंआदरनीय राजेश जी --- रचना पर आपकी दूसरी प्रतिक्रिया से बहुत खुश हूँ | आपकी वाह बहुत उत्साहवर्धक है | सादर आभार और नमन आपको |
हटाएंवाह्ह्ह!
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी जी सादर प्रणाम 🙏
बेहद सुंदर मनभावन पंक्तियाँ हैं। नन्ही चिड़िया और नीम के पेड़ का यह नाता मन को छू गया।
हार्दिक आभार प्रिय आंचल🙏😍😍
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना सखी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय सखी🙏🙏😍😍
हटाएंरेणु दी,घर के आंगन में पेड़ हो और चीडियो का कलरव हो तो उस आनंद की बात ही कुछ और हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय ज्योति जी🙏🙏😍😍
हटाएंचिड़ियों का कलरव प्रभात की किरनों के साथ प्रातः कालीन आनन्द को द्विगुणित कर देता है, उत्तम सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय उर्मिला जी 🙏🙏😍😍
हटाएंवाह!सखी ,नन्ही ,फुदकती ,चीं-चीं करती चिडिया कितनी अच्छी लगती है..।पर अब तो यदा-कदा ही दिखाई देती हैं ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय शुभा जी,इस प्यारी से
हटाएंप्रतिक्रिया के लिए 🙏 🙏😍😍