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शनिवार, 29 जुलाई 2017

तुम्हारे दूर जाने से ---------- कविता


तुम्हारे  दूर जाने से साथी ---  कविता --

 तुम्हारे   दूर जाने  से  साथी   
 बरबस    ये   एहसास   हुआ ,
दिन  का  हर  पहर  था  खोया-सा 
मन का जैसे  वनवास   हुआ   ! 

अनुबंध  नहीं कोई  तुमसे ,
जीवन - भर साथ  निभाने  का !
.फिर  भी भीतर भय व्याप्त  है,   
 तुम्हें  पाकर  खो  जाने  का  !
समझ ना  पाया  दीवाना मन  
अपरिचित  कोई क्यों  ख़ास  हुआ ?

तुमने जो दी सौगात  हमें ,
ना कोई आज तलक दे पाया साथी!
सबने  भरे आँख में   आँसूं ,
पर  तुमने   खूब   हँसाया  साथी !
भर  दिया   खुशियों   से आँचल   
सिकुड़ा  मन   अनंत   आकाश  हुआ !!

हम दर्द की राह के राही थे,  
था  खुशियों से  कहाँ नाता अपना ?
तुम बन के   मसीहा ना  मिलते,   
कब सोया नसीब जग पाता अपना !
खिली  मन  की  मुरझाई   कलियाँ 
 हर  पल जैसे  मधुमास  हुआ !! 

आज तुम्हारे   दूर जाने  से साथी  
 बरबस      ये   एहसास   हुआ 
दिन  का  हर  पहर  था  खोया-सा 
मन का  जैसे  वनवास    हुआ   !! 
चित्र -------- गूगल से साभार --
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 गूगल प्लस से साभार --रचना पर अनमोल टिप्पणी --
sonu bns's profile photo
आदरणीया रेणु जी,
आपकी रचना पढ़ा।इसके एक एक शब्द मन को छू गया।कितनी अच्छी पंक्ति"अनुबंध नही कोई तुमसे जीवन भर साथ निभाने का,फिर भी भीतर भय व्याप्त है तुमको पाकर खो जाने का"।बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतनी अच्छी रचना के लिए।

Renu's profile photo
+sonu जी बहुत बहुत आभार कि आपने रचना की आत्मा सरीखी पंक्तियाँ चुनी | आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ | एक बार फिर से आभार और नमन इस उत्साहवर्धन के लिए |
REPLY
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64 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी कविता अन्त: को छू जाती हैं।
    आज तुम्हारे दूर जाने से साथी -
    मन को ये एहसास हुआ
    दिन का हर पहर था खोया -खोया .
    मन का जैसे वनवास हुआ !!

    क्या खूब लिखा है आपने।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी बहुत आभारी हूँ आपकी --

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 31 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर भाव उभरे हैं
    मुबारक.
    ज्यादा लिखिए..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय अयंगर जी -- हार्दिक आभार आपका मेरी रचना पढने के लिए ब्लॉग पर आने के लिए -- आप का सस्नेह स्वागत करती हूँ -------

      हटाएं
  4. दिन का हर पहर था खोया -खोया .
    मन का जैसे वनवास हुआ !!

    बहुत सूंदर रचना ,आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय संजय जी आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं -- हार्दिक आभारी हूँ आपकी ----

      हटाएं
  5. हम दर्द की राह के राही थे
    था खुशियों से कहाँ नाता अपना
    लाजवाब......
    मन को छूती रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरनीय सुधा जी बहुत आभरी हूँ आपकी - कि आपने ब्लॉग पर आकर रचना पढ़ी --

      हटाएं
  6. बहुत ही सुंदर रचना रेणुजी । कभी कभी कुछ रचनाओं को पढ़कर लगता है जैसे भाव मेरे, शब्द किसी और के.....धन्यवाद इतनी खूबसूरती से लिखी रचना साझा करने हेतु ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरनीय मीना जी आपके प्रेरक शब्दों से अभूतपूर्व उत्साहवर्धन हुआ है -- आभारी हूँ आपकी -----

      हटाएं
  7. मन का जैसे वनवास हुआ
    सिकुड़ा मन अनन्त आकाश हुआ
    बेहतरीन रचना

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    उत्तर
    1. आदरणीय ऋतू जी बहुत आभारी हूँ आपकी रचना पर अपनी राय प्रकट करने के लिए -

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. आदरणीय अर्चना जी --आभारी हूँ आपके प्रेरक शब्दों के लिए और स्वागत करती हूँ आपका अपने ब्लॉग पर ------

      हटाएं
  9. उत्तम लेख बार बार पढ़ने का मन करता हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय मयंक जी -- स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | रचना पर आपके सराहना भरे शब्दों के लिए सस्नेह आभार | सहयोग बनाये रखिये |

      हटाएं
  10. अनुबंध नहीं कोई तुमसे-
    जीवन भर साथ निभाने का .
    .फिर भी भीतर भय व्याप्त है -
    तुम्हे पाकर खो जाने का ;
    समझ ना पाया दीवाना मन –
    अपरिचित कोई क्यों ख़ास हुआ ?
    मन की भावो की मार्मिक अभियक्ति ,प्रशंसा से परे सखी ,स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  11. अनुबंध नहीं कोई तुमसे-
    जीवन भर साथ निभाने का .
    .फिर भी भीतर भय व्याप्त है -
    तुम्हे पाकर खो जाने का ;
    समझ ना पाया दीवाना मन –
    अपरिचित कोई क्यों ख़ास हुआ .......
    अति सुंदर अभिव्यक्ति रेणु जी । कोमल मनो भावों से सजी सुंदर रचना के लिए बधाई ।

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  12. जीवन की आपा - धापी में
    जाने कितने पल बीत गए
    जब खोले पन्ने यादों के
    सारे के सारे रीत गए... बहुत सुन्दर रेणु बहन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह ! बहुत सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी प्रिय अनिता जी |सस्नेह आभार सखी|

      हटाएं

  13. आज तुम्हारे दूर जाने से साथी
    मन को ये एहसास हुआ
    दिन का हर पहर था खोया -खोया .
    मन का जैसे वनवास हुआ !!
    बहुत ही भावपूर्ण है दी।

    जवाब देंहटाएं
  14. तुमने जो दी सौगात -
    कोई आज तलक ना दे पाया साथी ;
    सबने भरे आँख में आंसू-
    पर तुमने खूब हंसाया साथी ;
    भर दिया खुशियों से आंचल -
    सिकुड़ा मन अनंत आकाश हुआ !!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, रेनू दी।

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  15. उत्तर
    1. प्रिय नवीन जी -- हार्दिक आभार और अभिनन्दन |

      हटाएं
  16. बहुत ही बेहतरीन रचना रेणु जी

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    उत्तर
    1. प्रिय अनुराधा जी आपके स्नेहासिक्त सहयोग की आभारी हूँ |

      हटाएं
  17. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  18. वाह !बेहतरीन, हृदय के अनंत तक पहुँचती हृदय की अंतर वेदना
    अनुबंध नहीं कोई तुमसे-
    जीवन भर साथ निभाने का .
    .फिर भी भीतर भय व्याप्त है -
    तुम्हें पाकर खो जाने का ;
    समझ ना पाया दीवाना मन –
    अपरिचित कोई क्यों ख़ास हुआ ?...हार्दिक शुभकामनायें प्रिय दी जी

    जवाब देंहटाएं
  19. वाह!!प्रिय सखी रेनू ,क्या बात है ,आपकी लेखनी मेंं जादू है !बेहतरीन सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुन्दर रेणु जी... हार्दिक बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  21. आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया मैम, बहुत ही भावपूर्ण सुंदर रचना। सच ही ऐसे अभिन्न साथी से वियोग में का वनवास ही होगा। हार्दिक आभार व आपको सादर प्रणाम।

      हटाएं
    2. प्रिय दीदी , आभारी हूँ हैरान भी कि इतनी पुरानी रचना जो मेरे भी मन के बहुत करीब है ,को आपने लिंक संयोजन का हिस्सा बनाया |सादर

      हटाएं
    3. बहुत -बहुत आभार और स्नेह प्रिय अनंता

      हटाएं
  22. मन की गहराई से निकली भाव प्रवण रचना रेणु बहन, हृदय स्पर्शी
    और गहरे उतरती।
    अप्रतिम सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  23. दिल से कही बात दिल को छू जाती है
    क्या लिखूँ दी
    बार बार पढ़ने का मन हो रहा
    आपकी रचनाओं के अलौकिक भाव दूसरी ही दुनिया में ले जाते हैं.
    मन छूते एहसास से भरी प्यारी अभिव्यक्ति दी।
    सप्रेम प्रणाम दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार और अभिनन्दन प्रिय श्वेता इस भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए |

      हटाएं
  24. भाव पूर्ण अति सुन्दर रचना जो दिल को छू जाती है,

    जवाब देंहटाएं
  25. सही कहा श्वेता जी ने आपकी रचनाओं के अलौकिक भाव दूसरी ही दुनिया में ले जाते हैं....सच में अंदर कहीं बहुत अंदर तक छूती हैं आपकी रचनाएं।
    सराहना से परे ....बहुत ही लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये आप सबका स्नेह है प्रिय सुधा जी |आभार और अभिनन्दन आपका |

      हटाएं
  26. अनुबंध नहीं कोई तुमसे ,
    जीवन - भर साथ निभाने का !
    .फिर भी भीतर भय व्याप्त है,
    तुम्हें पाकर खो जाने का ! कू
    समझ ना पाया दीवाना मन
    अपरिचित कोई क्यों ख़ास हुआ ?
    ... मन में निष्णात भाव जगाती रचना । हर पंक्ति में सकारात्मक भाव की सुंदर अभिव्यंजना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार और अभिनन्दन प्रिय जिज्ञासा |

      हटाएं

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