विकल , बरबस , मंजिल , छवि ,
फिर चोट खाई दिल ने
और बरबस लिया पुकार तुम्हें ,
दो नैनों की क्या कहिये
न था कोई जो मन की सुनता
फिर चोट खाई दिल ने
और बरबस लिया पुकार तुम्हें ,
हो विकल यादों की गलियों में
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें !
मुख मोड़ के चल दिए तुम तो
नयी मंजिल नयी राहों पे ;
ये तरल नैन रह गए तकते
तुम रहे अनजान जिगर की आहों से ;
वो दिल को बिसरा कर बैठ गए
दिया जिसपे सब अधिकार तुम्हें !
हो विकल यादों की गलियों में -
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें !
दो नैनों की क्या कहिये
बस इनमें छवि तुम्हारी थी ,
मंदिर की मूर्त में भी हमने
बस सूरत तेरी निहारी थी ;
मिल जाते जो किसी रोज़ यूँ ही
थकते ना अपलक निहार तुम्हें !
मिल जाते जो किसी रोज़ यूँ ही
थकते ना अपलक निहार तुम्हें !
हो विकल यादों की गलियों में
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें !
समझ लेता जज़्बात मेरे ,
कौन मेरा अपना तुम बिन
जो अधरों पे सजाता हास मेरे ;
खुद को खोकर पाया तुमको
जीता मन को हार तुम्हें !
जीता मन को हार तुम्हें !
हो विकल यादों की गलियों में
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें !
हर ओर थे अनगिन चेहरे ,
पर तुम्हीं थे दिल के पास मेरे,
तुम्हीं हँसी में और दुआ में
थे तुमसे सब एहसास मेरे;
तुम लौट ना आये तो थक के
गीतों में लिया उतार तुम्हें !!
हो विकल यादों की गलियों में -
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें !!
वाह्ह्ह....प्रिय रेणु जी,आपने भावों की सरिता बहा दी।
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द मन भीगा गये।बहुत सुंदर रचना रेणु जी।👌👌👌
हृदय के भावों को जीवंत करना कोई आपसे सीखे।
बहुत अच्छी लगी कविता।
प्रिय श्वेता जी -- आपके स्नेह भरे शब्द संजीवनी के समान हैं | आभारी हूँ आपकी |
हटाएंसुंदर विरह रचना बधाई आदरणीय रेणु जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी -- सादर ,सस्नेह आभार आपका --
हटाएंअनगिन चेहरे थे हर ओर -
पर तुम्ही थे दिल के पास मेरे,
तुम्ही हंसी में - तुम्ही दुआ में
थे तुमसे सब एहसास मेरे;
तुम लौट ना आये तो थक के -
गीतों में लिया उतार तुम्हे !!
बहुत सुंदर अभव्यक्ति, रेणु जी
आदरणीय ज्योति जी -- हार्दिक आभारी हूँ आपकी कि आपने रचना पढ़ी और अपने बहुमूल्य शब्द लिखे |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव -- आपके सहयोग के लिए सदैव आभारी हूँ |
हटाएंवाह.. बहुत सुंंदर रचना..
जवाब देंहटाएंआदरणीय पम्मी जी --- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/12/47.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- आपके अतुलनीय सहयोग के लिए आपका सादर आभार |
हटाएंपुरानी गलियों से एक झोंका हवा का...
जवाब देंहटाएंआदरणीय अयंगर जी --सादर आभार और नमन आपको |
हटाएंवाह!!!सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शुभा जी -- हार्दिक आभार आपका |
हटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंआदरनीय अपर्णा जी स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | सस्नेह आभार आपको |
हटाएंवाह !!बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू जी-- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंसमर्पण की गरिमा से लबरेज अत्यन्त सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी -- सार्थक शब्दों के लिए सस्नेह आभार आपका |
हटाएंवाह ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेश जी -- आपके शब्द अनमोल हैं | सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत खूबसूरत..... दिल के उद्गारों को बंया करती मनभावन रचना...!
जवाब देंहटाएंप्रिय अन्नू जी -- सस्नेह आभार आपको |
हटाएंतुम लौट ना आये तो थक के -
जवाब देंहटाएंगीतों में लिया उतार तुम्हे !!
बहुत प्यारे और खूबसूरत अहसासों को बयाँ करती रचना। बधाई रेणुजी !
आदरणीय मीना जी -- आपके स्नेह भरे शब्द अनमोल हैं |
हटाएंप्रेम और विरह का एहसास नज़्म बन के शब्दों में उतर आता है ...
जवाब देंहटाएंमहक उठती है खुशबू रचना बन के ...
आदरणीय दिगंबर जी -- आपके प्रेरक शब्द अनमोल है | सादर आभार |
हटाएंबहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंआदरणीय सोनू जी --सादर सस्नेह आभार आपका |
हटाएंमन के भीतर प्रेम और विरह की अनकही अनुभूति
जवाब देंहटाएंप्रेम की खूबसूरत अभिव्यक्ति
बधाई
सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी -- आपकी सराहना अनमोल है | सादर आभार !!!!
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय प्रतिभा जी |
हटाएंदिल को छूने वाला रचना...
जवाब देंहटाएंआदरणीय हंस जी -- सर्वप्रथम स्वागत करटी हूँ आपका अपने ब्लॉग पर -
हटाएंऔर सादर आभार व्यक्त करती हूँ कि अपने मेरे ब्लॉग पर आकर रचना पढ़ मेरी रचना को सार्थक किया | सहयोग बनाये रखें |
आदरणीय रेणु जी आपका ब्लॉक वास्तव में बहुत अच्छा है। सच बोलूं तो आपकी फीलिंग काबिले तारीफ हैं अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इसे अपने प्यार को भेजना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका बन्धु !ये मेरा स सौभाग्य होगा यदि मरी रचना आपकी भावनाओं की अभिव्यक्ति बने | ये फीलिंग मेरी ही नहीं -- हर उस इन्सान की है जो विकलता से गुजरता है | स्नेह बनाये रखिये |
हटाएंनिःशब्द!!!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंतुम लौट ना आये तो थक के -
जवाब देंहटाएंगीतों में लिया उतार तुम्हे !!
हो विकल यादों की गलियों में -
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे
सखी तुम लाजबाब हो...... ,इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति.... तुम्हारा कोई सानी नहीं, निश्बद हूँ
प्रिय कामिनी - ये तुम्हारा है स्नेह है सखी | सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत सुन्दर 👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार उर्मि दीदी |
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमधुर मिलन की मधुर स्मृतियाँ, विरह-वियोग की व्यथा को भुलाने में सहायक होती हैं.
सादर आभार गोपेश जी | आपके पढने से रचना को सार्थकता मिली |
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी पुरानी रचना को मंच पर सजाने के लिए , सादर आभार यशोदा दीदी |
हटाएंहृदय स्पर्शी रचना रेणु बहन! बहुत सुंदर विरह काव्य शब्द शब्द गहरा दर्द समेटे
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
सस्नेह आभार पिय कुसुम बहन | आपकी प्रतिकिया अनमोल है |
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार सुशील जी |
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनन्दन शांतनु जी |
हटाएंखुद को खोकर पाया तुमको
जवाब देंहटाएंजीता मन को हार तुम्हें !
हो विकल यादों की गलियों में -
मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें
वाह!
अनुभव पूर्ण सहृदय कविता
अभिनन्दन और आभार सधु जी | मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
हटाएंबेहतरीन सृजन प्रिय रेनू
जवाब देंहटाएंपुनः सादर आभार दीदी |
हटाएं