मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

फिर चोट खाई दिल ने --- विरह गीत

  विकल , बरबस , मंजिल ,  छवि , 

फिर चोट  खाई  दिल ने 
और बरबस लिया पुकार  तुम्हें   ,
 हो  विकल   यादों  की गलियों में   
 मुड--मुड ढूंढा   हर  बार तुम्हें   !

 मुख मोड़ के चल दिए  तुम तो 
 नयी मंजिल   नयी राहों पे  ; 
  ये तरल नैन रह गए तकते 
  तुम रहे अनजान  जिगर की आहों से ;
 वो दिल को  बिसरा कर बैठ गए  
 दिया जिसपे  सब अधिकार तुम्हें  !
हो  विकल   यादों  की गलियों में -
 मुड--मुड ढूंढा   हर  बार तुम्हें   !

दो  नैनों  की क्या कहिये  
बस इनमें  छवि तुम्हारी थी ,
मंदिर की  मूर्त  में भी हमने   
बस  सूरत  तेरी निहारी थी ;
मिल  जाते जो  किसी  रोज़ यूँ ही 
थकते ना   अपलक  निहार तुम्हें  !
हो  विकल   यादों  की गलियों में 
 मुड--मुड ढूंढा   हर  बार तुम्हें   !

न  था कोई     जो मन की सुनता 
समझ लेता    जज़्बात मेरे  ,
कौन    मेरा  अपना तुम  बिन
जो  अधरों   पे   सजाता हास   मेरे ;
खुद को खोकर   पाया तुमको  
 जीता  मन को हार  तुम्हें  !
हो  विकल   यादों  की गलियों में 
 मुड--मुड ढूंढा   हर  बार तुम्हें   !

 हर ओर थे  अनगिन चेहरे , 
पर    तुम्हीं  थे  दिल के पास मेरे,
 तुम्हीं हँसी में और   दुआ में 
थे  तुमसे  सब एहसास मेरे;
 तुम  लौट ना आये  तो   थक   के 
गीतों में लिया उतार  तुम्हें  !!
हो   विकल     यादों  की गलियों में -
 मुड--मुड ढूंढा    हर  बार  तुम्हें   !! 










62 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह....प्रिय रेणु जी,आपने भावों की सरिता बहा दी।
    शब्द शब्द मन भीगा गये।बहुत सुंदर रचना रेणु जी।👌👌👌
    हृदय के भावों को जीवंत करना कोई आपसे सीखे।
    बहुत अच्छी लगी कविता।

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    1. प्रिय श्वेता जी -- आपके स्नेह भरे शब्द संजीवनी के समान हैं | आभारी हूँ आपकी |

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    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- सादर ,सस्नेह आभार आपका --

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  3. अनगिन चेहरे थे हर ओर -
    पर तुम्ही थे दिल के पास मेरे,
    तुम्ही हंसी में - तुम्ही दुआ में
    थे तुमसे सब एहसास मेरे;
    तुम लौट ना आये तो थक के -
    गीतों में लिया उतार तुम्हे !!
    बहुत सुंदर अभव्यक्ति, रेणु जी

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    1. आदरणीय ज्योति जी -- हार्दिक आभारी हूँ आपकी कि आपने रचना पढ़ी और अपने बहुमूल्य शब्द लिखे |

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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    1. प्रिय ध्रुव -- आपके सहयोग के लिए सदैव आभारी हूँ |

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/12/47.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय राकेश जी -- आपके अतुलनीय सहयोग के लिए आपका सादर आभार |

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  6. पुरानी गलियों से एक झोंका हवा का...

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    1. आदरणीय अयंगर जी --सादर आभार और नमन आपको |

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  7. उत्तर
    1. आदरनीय अपर्णा जी स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | सस्नेह आभार आपको |

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  8. समर्पण की गरिमा से लबरेज अत्यन्त‎ सुन्दर रचना‎ .

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    1. आदरणीय मीना जी -- सार्थक शब्दों के लिए सस्नेह आभार आपका |

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  9. वाह ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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    1. आदरणीय राजेश जी -- आपके शब्द अनमोल हैं | सादर आभार आपका |

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  10. बहुत खूबसूरत..... दिल के उद्गारों को बंया करती मनभावन रचना...!

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  11. तुम लौट ना आये तो थक के -
    गीतों में लिया उतार तुम्हे !!
    बहुत प्यारे और खूबसूरत अहसासों को बयाँ करती रचना। बधाई रेणुजी !

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    1. आदरणीय मीना जी -- आपके स्नेह भरे शब्द अनमोल हैं |

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  12. प्रेम और विरह का एहसास नज़्म बन के शब्दों में उतर आता है ...
    महक उठती है खुशबू रचना बन के ...

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    उत्तर
    1. आदरणीय दिगंबर जी -- आपके प्रेरक शब्द अनमोल है | सादर आभार |

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  13. मन के भीतर प्रेम और विरह की अनकही अनुभूति
    प्रेम की खूबसूरत अभिव्यक्ति
    बधाई

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  14. उत्तर
    1. आदरणीय लोकेश जी -- आपकी सराहना अनमोल है | सादर आभार !!!!

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    1. आदरणीय हंस जी -- सर्वप्रथम स्वागत करटी हूँ आपका अपने ब्लॉग पर -
      और सादर आभार व्यक्त करती हूँ कि अपने मेरे ब्लॉग पर आकर रचना पढ़ मेरी रचना को सार्थक किया | सहयोग बनाये रखें |

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  16. आदरणीय रेणु जी आपका ब्लॉक वास्तव में बहुत अच्छा है। सच बोलूं तो आपकी फीलिंग काबिले तारीफ हैं अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इसे अपने प्यार को भेजना चाहता हूं

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    1. स्वागत है आपका बन्धु !ये मेरा स सौभाग्य होगा यदि मरी रचना आपकी भावनाओं की अभिव्यक्ति बने | ये फीलिंग मेरी ही नहीं -- हर उस इन्सान की है जो विकलता से गुजरता है | स्नेह बनाये रखिये |

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  17. तुम लौट ना आये तो थक के -
    गीतों में लिया उतार तुम्हे !!
    हो विकल यादों की गलियों में -
    मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे

    सखी तुम लाजबाब हो...... ,इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति.... तुम्हारा कोई सानी नहीं, निश्बद हूँ

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    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी - ये तुम्हारा है स्नेह है सखी | सस्नेह आभार |

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  18. बहुत सुन्दर !
    मधुर मिलन की मधुर स्मृतियाँ, विरह-वियोग की व्यथा को भुलाने में सहायक होती हैं.

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    उत्तर
    1. सादर आभार गोपेश जी | आपके पढने से रचना को सार्थकता मिली |

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  19. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी पुरानी रचना को मंच पर सजाने के लिए , सादर आभार यशोदा दीदी |

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  20. हृदय स्पर्शी रचना रेणु बहन! बहुत सुंदर विरह काव्य शब्द शब्द गहरा दर्द समेटे
    अभिनव सृजन।

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    उत्तर
    1. सस्नेह आभार पिय कुसुम बहन | आपकी प्रतिकिया अनमोल है |

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  21. खुद को खोकर पाया तुमको
    जीता मन को हार तुम्हें !
    हो विकल यादों की गलियों में -
    मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हें
    वाह!
    अनुभव पूर्ण सहृदय कविता

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    उत्तर
    1. अभिनन्दन और आभार सधु जी | मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है |

      हटाएं

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