असह्य हो चुका है
तुम्हारा ये विचित्र मौन ,
विरक्त हो जाना तुम्हारा
रंग , गंध और स्पर्श के प्रति ;
अनासक्त हो जाना - अप्रतिम सौ सौंदर्य के प्रति !
भावहीन हो बैठ उपेक्षा करना
संगीत की मधुर स्वर लहरियों की ,
स्वयं से रूठना और कैद हो जाना ,
मन की ऊँची दीवारों के बीच
नहीं है जीवन ----- !
उठो ! खोल दो मन के द्वार !
सुनो गौरैया की चहचहाहट और -
भँवरे की गुनगुनाहट में उल्लास का शंखनाद !
देखो बसंत आ गया है -- - --
निहारो रंगों को , महसूस करो गंध को ,
जो उन्मुक्त पवन फैला रही है हर दिशा में ----
हर कोने में !
स्पर्श करो सौंदर्य को -
जिसमे निहित है जीवन की सार्थकता !
उठो !कि स्पंदन से भरी
एक मानव देह हो तुम हो ,
कोई निष्प्राण प्रतिमा नहीं !
तुम्हारे लिए ही बने है ;
रंग , गंध , सौंदर्य और संगीत
क्योंकि तुम्हीं निमित्त हो
सृष्टि में नवजीवन के!!
संदर्भ---- एक अवसाद ग्रस्त युवा के लिए ---
साकारात्मक भावों को इंगित करती आपकी रचना बेहद उम्दा..
जवाब देंहटाएंस्पर्श करो सौदर्य को -
जिसमे निहित है जीवन की सार्थकता !
आदरणीय पम्मी जी -- आभारी हूँ आपके अनमोल शब्दों के लिए |
हटाएंप्रेरक और सुंदर रचना। बधाई आदरणीय रेणु जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपके ये चंद शब्द अनमोल हैं | सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत सुंदर संदेश !
जवाब देंहटाएंतुम्हारे लिए ही बने है ;
रंग , गंध , सौन्दर्य और संगीत
क्योंकि तुम्ही निमित्त हो -
संसार में नवजीवन के!
अत्यंत खूबसूरत पंक्तियाँ ! मन बार बार चाहेगा इस रचना को पढ़ना । इस सुंदर सृजन हेतु हार्दिक बधाई रेणु जी।
आदरणीय मीना जी -- आपके प्रेरक शब्द मेरी रचना की सार्थकता को बढ़ा रहे हैं | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत सुंदर संदेश
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार- प्रिय नीतू जी |
हटाएंआदरणीया रेणु जी सादर नमन आपकी लेखनी को. एक उत्कृष्ट साहित्यिक रचना के सृजन से आपने नैराश्य के अंधकार में डूबे व्यक्ति को स्नेहमयी शाब्दिक थपकी के साथ उबरने का प्रेरक संदेश दिया है. निस्संदेह यह रचना न जाने कितने घायल और विचलित मन को हालात की पीड़ा से उभरे छालों पर मरहम-सा नर्म एहसास दिलाएगी.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद एवं अभिनन्दन आपका. बधाई एवं शुभकामनायें. लिखते रहिये.
आदरनीय रविन्द्र जी -- आपके उत्साह बढ़ाते शब्द मेरे लेखन की सार्थकता जताते हैं | आभारी हूँ कि आपने रचना को सही ढंग से परिभाषित कर इस में व्याप्त चिंतन को अपने शब्दों से विस्तार दिया है | सृष्टि के नायक अपार संभावनाओं से भरे युवा जब अवसाद की भयानक चपेट में आते हैं तो उनके जीवन की खुशियां तो संदिग्ध हो ही जाती हैं -परिवार की समस्त खुशियाँ दाव पर लग जाती हैं और वह एक अव्यक्त यंत्रणा से गुजरता है | नियति कहिये या आधुनिक जीवन की अंधी दौड़ के कारण ये बीमारी बहुत भयावह रूप में फैलती जा रही है | इसमें उपचार के दौरान दवा और दुआ के साथ स्नेह एक अहम् भूमिका निभाता है ताकि पीड़ित उससे बाहर आ एक सामान्य जीवन जी सके | आपकी शुभकामनायें अनमोल हैं | सादर
हटाएंवाह्ह्ह.....प्रिय रेणु जी,
जवाब देंहटाएंबेहद प्रेरक और दिलकश रचना है। हताशा में डूबे मन का जीवन के प्रति अनुराग जगाने का सुंदर और सार्थक सृजन।
शब्द-शब्द स्नेह प्रवाहित करती हुई।
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना।
बधाई स्वीकार कीजिए और ढेरों शुभकामनाएँ भी।
प्रिय श्वेता जी - आपने रचना के अंतर्निहित भाव को पहचाना -- मेरा लिखना सार्थक हुआ | सस्नेह आभार आपको |
हटाएंरेणु जी प्रेणा देती हुई आपकी रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय शकु-- आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए सस्नेह आभार आपका |
हटाएंजीवन में कई बार ऐसे अवसाद के पल आते हैं और ऐसे में इन शब्दों की इस गहरे अहासास की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है ... सुंदर प्रेरणा देरी रचना ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर जी -- रचना का उद्देश्य यही है | आपने इसके भाव पहचाने -- मेरा लेखन सार्थक हुआ | सादर , सस्नेह आभार आपका
हटाएंसकारात्मक सोच को अभिव्यक्त करते बहुत ख़ूबसूरत अहसास...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय कैलाश जी -- हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपका मेरे ब्लॉग पर आना और मेरी रचना पढ़ना मेरा परम सौभाग्य है | सराहना भरे आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं मेरे लिए | सादर आभार और नमन आपको |
जवाब देंहटाएंमंजिलें और भी है,चल उठ बड़ चल की तर्ज पर लिखी आपकी रचना ... निराशा के गर्त में खो गए, अवसाद ग्रस्त युवा के लिए मानसिक मलहम का प्रयोग करती है,प्रेरक विचारों के साथ आगे बढ़ने की उम्मीद जगाती उम्दा रचना ...!!
जवाब देंहटाएंप्रिय अनु जी -- रचना के मर्म पर आपने चिंतन किया -- बहुत आभारी हूँ आपकी | सस्नेह --
हटाएंनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
जवाब देंहटाएं( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 21-12-2017 को प्रकाशनार्थ 888 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आदरणीय रविब्द्र जी----- सादर आभार |
हटाएंजी रेणु जी सुप्रभात... आपकी कविता पढ़ने दोबारा चली आई .. बधाई एवं शुभकामनाएं बस आप लिखते रहें.!
जवाब देंहटाएंप्रिय अनु ------ आपका ब्लॉग पर हर बार स्वागत है | सस्नेह आभार आपका अपना कीमती समय ब्लॉग को देने के लिए |
हटाएंवाहःह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी -- सादर आभार आपका
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी ------ साभार नमन ----
हटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
सादर.....
आदरणीय यशोदा दीदी -- सादर आभार और नमन आपको |
हटाएंप्रेरणादायक रचना . सकारात्मकता की ओर बढ़ने का आह्वान .
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता जी -- आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है | आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं | सादर आभार |
हटाएंजीवन के प्रति सकारात्मक रुझान प्रकट करते भावों से सजी अत्यन्त सुन्दर रचना.रेणु जी बहुत सारी बधाई कुशल सृजन के लिए .
जवाब देंहटाएंआदरनीय मीना जी --- आपका सादर आभार |
हटाएंआदरणीया रेणु जी प्रणाम। आपकी रचना पढ़ी, सार्थकता की बुलंदियों को स्पर्श करती ,मानव को एक आशा की किरण देती। सत्य कहा आपने जीवन और भी हैं निरंतर चलना हमारा परम कर्तव्य। यही है सारभौमिक सत्य। इस अनूठी रचना हेतु आपको नमन।
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव -- आपके प्रेरक शब्द मेरी रचना की सार्थकता के परिचायक हैं सबह आभार आपको |
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/12/49.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय राकेश जी |
जवाब देंहटाएंतुम्हारे लिए ही बने है ;
जवाब देंहटाएंरंग , गंध , सौन्दर्य और संगीत
क्योंकि तुम्ही निमित्त हो -
सृष्टि में नवजीवन के!
वाह !!!बहुत खूब सखी ,तुम्हारे ये शब्द तो निर्जीव में भी प्राण फुक दे ,स्नेह
सस्नेह आभार सखी |
हटाएंउठो ! खोल दो मन के द्वार !
जवाब देंहटाएंसुनो गौरैया की चहचहाहट और -
भँवरे की गुनगुनाहट में उल्लास का शंखनाद ! !
देखो बसंत आ गया है ---, वाह बहुत ही बेहतरीन रचना रेणु जी
अनुराधा बहन हार्दिक आभार और शुक्रिया |
हटाएंउठो ! खोल दो मन के द्वार !
जवाब देंहटाएंसुनो गौरैया की चहचहाहट और -
भँवरे की गुनगुनाहट में उल्लास का शंखनाद ! !
देखो बसंत आ गया है ---,
निहारो रंगों को -महसूस करो गंध को -
जो उन्मुक्त पवन फैला रही है हर दिशा में -...प्रिय रेणु बहन बहुत ही सुन्दर रचना 👌
प्रिय अनिता जी - ब्लॉग पर आपके सस्नेह सहयोग से बहुत ख़ुशी होती है | हार्दिक आभार और धन्यवाद सखी |
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
प्रिय दी
जवाब देंहटाएंएक बार फिर यह रचना पढ़कर सुखद अनुभूति हुई।
सराहनीय भावपूर्ण सृजन दी।
सप्रेम प्रणाम।
शुक्रिया श्चेता ❤
हटाएंउठो !कि स्पंदन से भरी
जवाब देंहटाएंएक मानव देह हो तुम हो ,
कोई निष्प्राण प्रतिमा नहीं !
तुम्हारे लिए ही बने है ;
रंग , गंध , सौंदर्य और संगीत
क्योंकि तुम्हीं निमित्त हो
सृष्टि में नवजीवन के!!
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब प्रेरक सृजन सच में थके हारे अवसादग्रस्त जीवन में प्राण फूँकने वाले प्रेरक शब्द।
लाजवाब सृजन।
बहुत -बहुत आभार प्रिय सुधा जी ❤🙏
हटाएंनिर्जीव में भी प्राण फूँकता सा, एक सशक्त आवाहन! 'स्वयं से रूठना और कैद हो जाना
जवाब देंहटाएंमन की ऊँची दीवारों के बीच,
नहीं है जीवन -----' -बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति रेणु जी... अप्रतिम!
बहुत दिनों बाद आपकी रचना से साक्षात्कार हुआ है😞।
आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय सर 🙏
हटाएंएक बार फिर से इस ओजस्वी कविता को पढ़ना सुखद रहा प्रिय सखी
जवाब देंहटाएंस्वागत है प्रिय कामिनी ❤
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