आँगन में खेल रहे बच्चे ,
भोले- भाले मन के सच्चे !
एक दूजे के कानों में -
गुपचुप से बतियाते हैं ,
तनिक जो हो अनबन आपस में
खुद मनके गले मिल जाते है ;
भले- बुरे का फर्क ना जाने
बस हैं थोड़े अक्ल के कच्चे !
आँगन में खेल रहे बच्चे !!
निश्छल राहों के ये राही
भोली मुस्कान से जिया चुरालें ,
नजर- भर देख ले जो इनको
बस हँस के गले लगा ले ;
अभिनय नहीं इनकी फितरत
जो मन में वो ही मुखड़े पे दिखे !
आंगन में खेल रहे बच्चे !!
इन नन्हे फूलों से आज
ये आँगन का उपवन महक रहा है ,
सूना और वीरान था पहले
अब कोना - कोना चहक रहा है ,
कौतूहल से भरे ये चुन- मुन
मन के कोमल- शक्ल के अच्छे !
आँगन में खेल रहे बच्चे !!
भोले भाले मन के सच्चे !!
!
बहुत ही सुंदर बचपन की याद दिलाती मनमोहक रचना। बच्चे ही जीवन के संवाहकहैहैं हम तो सि्फ एक वाहक हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी ----हार्दिक आभार आपका |
हटाएंनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 09-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 846 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
सूचना (संशोधन) -
हटाएंनमस्ते, आपकी रचना के "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) में प्रकाशन की सूचना
9 -11 -2017 ( अंक 846 ) दी गयी थी।
खेद है कि रचना अब रविवार 12-11 -2017 को 849 वें अंक में प्रातः 4 बजे प्रकाशित होगी। चर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं।
आदरणीय रविन्द्र जी बहुत आभारी हूँ आपकी |
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी---- सादर नमन एवं आभार आपका |
हटाएंअभिनय नहीं इनकी फितरत
जवाब देंहटाएंजो मन में वो ही मुखड़े पे दिखे !
आंगन में खेल रहे बच्चे !!
बहुत सच्ची रचना। बहुत अच्छी रचना। बच्चों की सच्चाई जैसी। बच्चों की अच्छाई जैसी। अप्रतिम आदरणीया
अमित जी -- सादर, सस्नेह आभार आपका |
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई और शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंप्रिय अन्नू जी ------ सस्नेह आभार आपको -----
हटाएंवाह! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू जी - बहुत आभारी हूँ आपकी |
हटाएंसुन्दर, बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसही कहा बच्चे भोले भाले मन के सच्चे
वाह!!!
आदरणीय सुधा जी सादर नमन व आभार आपका !!!!!
हटाएंवाह! बहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआदरणीय विनोद जी ------ ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
हटाएंसुन्दर बाल रचना ...
जवाब देंहटाएंबच्चे तो दिल के सच्चे और सहज होते हैं ...
सादर आभार आपको -- आदरणीय दिगम्बर जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय कविता जी सादर आभार आपका |
हटाएंबच्चों की ही तरह बड़ी सी मासूमियत से लिखी गई आपकी यह रचना मनभावन है ।प्रणाम रेणु दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार शशि भाई 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत अच्छा लगा इस रचना को पुनः पढ़ कर ...
जवाब देंहटाएंबाल दिवस के दिन बच्चे बनने का मन कर उठता है ...
सहज और सुंदर रचना है ... बहुत बधाई बाल दिवस की ...
आपका हार्दिक स्वागत है दिगम्बर जी दुबारा रचना पढ़कर आपने मुझे अनुगृहित किया 🙏🙏🙏
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार अनुराधा बहन 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर सृजन रेणु बहन! बच्चों के मन सा निश्छल सरल
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सहजता से बाल मनोविज्ञान पर लिखा है ।
प्यारी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।
आपके स्नेहिल शब्दों के लिए हार्दिक आभार प्रिय कुसुम बहन । 🙏🙏🙏
हटाएंबच्चों जैसी ही प्यारी और मनमोहक रचना रेणु बहन । सस्नेह ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय मना बहन 🙏🙏🙏
हटाएंवाह!!प्रिय सखी रेनू जी ,बहुत ही खूबसूरत रचना !सही में बच्चों का मन कितना निश्छल होता है ..।
जवाब देंहटाएंप्रियसस्नेह शुभा बहन, आपके निरंतर स्नेहिल सहयोग के लिए सस्नेह आभार 🙏🙏🙏
हटाएंबच्चे मन के सच्चे ही होते हैं, रेणु दी। बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार श्री राम जी। 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति बहन, आपका सस्नेह आभार 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्ह्हह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, बहुत सरल,निश्छल,कोमल,मनभावन अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी जी । बिल्कुल बाल मन सी 👌जो ये बताती है कि आपने भी अपने भीतर बचपन की मासूमियत को सहेज कर रखा है।हार्दिक बधाई।
जब भी आपको पढ़ती हूँ बड़ा आनंद मिलता है।
देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ 🙏
सादर नमन।
प्रिय आँचल तुम्हारी इस मासूम सी प्रतिक्रिया के आगे निशब्द हूँ | आभार क्या कहूँ , बस मेरा प्यार |
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