'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
"शुक्र है गाँव में इक बरगद तो बचा है" - शुक्र है कुछ ऐसी विचारथाराएँ आज भी कहीं न कहीं जिन्दा है जो सामाजिक समरसता को बखूबी खुद में समेटकर सौहाद्र का माहौल कायम रखे है। बरगद और रहीम चाचा के माध्यम से रची गई यह रचना अच्छी लगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपने रचना का उद्देश्य और अंतर्निहित भाव दोनों पहचाने -- मुझे बहुत ख़ुशी है | आपका सादर हार्दिक आभार -----------
हटाएंधार्मिक सौहार्द्र और आपसी मेलजोल की वजह से ही गाँवों में असली भारत देखने को मिलता है । ये भी सच है कि पुराने वटवृक्षों की तरह ही गाँव की बुजुर्ग पीढ़ी सबको अपनी छाँव में रखती है बिना किसी भेदभाव के ! सादगी भरा ये अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगा रेणुजी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी -- आपके सुंदर शब्दों से बहुत उत्साहवर्धन हुआ है -- हार्दिक आभार आपका --
हटाएंअब गाँव भी पहले से नहीं रहे.....पुराना बरगद और रहीम चाचा......शुक्र है....
जवाब देंहटाएंयादें है ....बहुत ही स्मृति परक सुन्दर रचना....
आदरणीय सुधा जी -- बहुत सही कहा -- आपने गाँव अब वैसे नहीं रहे-- पर फिर भी गांवों में आज भी बरगद और बुजुर्ग मान बरकरार है -- रचना पर आप के सशक्त चिंतन के लिए आभारी हूँ आपकी -
हटाएंआज के धर्मांध वातावरण में एक ताज़ा हवा सी है आपकी अभिव्यक्ति...बहुत प्रभावी रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय कैलाश जी ---------- स्वागत करती हूँ आपका अपने ब्लॉग पर -- - आपके शब्दों से अभूतपूर्व उत्साह मिला है -- जिसके लिए आपकी आभारी हूँ |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रेणु जी काबिलेतारीफ़ रचना की है एकता का मूल्य बताती आपकी अनुपम कृति। हमने तरक़्क़ी तो कर ली परन्तु हम इंसान से जानवर बनते जा रहें हैं। आप से निवेदन है अपने ब्लॉग पर अनुसरणकर्ता का विकल्प संयोजित करें जिससे हमें आपकी रचनाओं के प्रकाशन की सूचना निरंतर मिलती रहे। आभार ,
जवाब देंहटाएं''एकलव्य''
हार्दिक धन्यवाद प्रिय एकलव्य आपको -- आपने ब्लॉग की अहम् बात की और ध्यान दिलाया आपका बहुत आभार -----
हटाएंवाह ! बरगद और रहीम चचा ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेश जी हार्दिक स्वागत करती हूँ आपका अपने ब्लॉग पर ------ और आभार आपका कि आपने रचना पढ़ी और प्रेरक शब्द लिखे |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्र है गाँव में इक
जवाब देंहटाएंबरगद तो बचा है.... बेहद प्रभावशाली रचना प्रिय सखी
प्रिय अनुराधा जी -- हार्दिक आभार सखी |
हटाएंबेहतरीन सृजन सखी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सखी कामिनी |
हटाएंवाह वाह वाह ¡¡¡
जवाब देंहटाएंरेणु बहन वो दिन आंखों में आ गये जब कस्बों और गांवों मे सब दुख सुख सांझे के होते थे बुजुर्ग बस आदरणीय होते थे ना हिन्दू ना मुस्लमान होते थे सभी के चाचा बाबा ताऊ होते थे और सब को उनसे भरपूर आशीर्वाद मिलता था बदले मे उन्हे बस सम्मान मिलता था। आपने रचना के माध्यम से बहुत सुंदर संदेश दिया है।
बहुत प्यारी मुल्यों वाली रचना
जी प्रिय कुसुम बहन आपके शब्दों से मेरी रचना विशिष्ट हो गयी है |आपने सच कहा वो दिन बहुत ही सुकून भरे थे जब गाँव में इस तरह भाईचारा निभाया जाता था कि गाँव के बड़े बूढ़े और सघन वृक्षों को गाँव की सांझी विरासत का प्रतीक माना जाता था जिनकी प्रबल आकांक्षा यही रहती थी कि सब लोग एक होकर प्यार से रहें | आपके स्नेह भरे शब्दों ने रचना का मोल बढ़ा दिया ह जिसके लिए आभार नहीं बस मेरा प्यार आपके लिए | |
हटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा बहन-- रचना यात्रा में आपके निरंतर सहयोग के लिए आभारी रहूंगी |
हटाएंवाह! मानों बरगद की छाँह में इतिहास ऊंघ रहा हो! सुंदर मानवीकरण।
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी - आपके शब्दों ने रचना पर चिंतन को अतुलनीय विस्तार दिया है | हार्दिक आभार और नमन |
हटाएंरेणु दी, गांवों के प्रेम पूर्ण जीवन का सजीव चित्रण किया हैं आपने। बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी -- हार्दिक आभार सखी |
हटाएंबेहतरीन रचना रेनू जी. गाँव का कितना सजीव चित्रण किया है आपने. मुझे अपने गाँव की याद आ गई.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सुधा जी |
हटाएंसुन्दर भाव प्रदर्शन
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय रितु जी |
हटाएंभावपूर्ण, मार्मिक सृजन
जवाब देंहटाएंप्रिय रविन्द्र जी - आपका हार्दिक आभार |
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना प्रिय रेणु दी
जवाब देंहटाएंसादर
प्रिय अनीता -- तुम्हारे स्नेह के लिए आभारी हूँ |
हटाएंबुजुर्ग और वृक्ष सदैव ही छाँव देते हैं । बहुत ही सुंदर लिखा है । तुम्हारी लिखी हर रचना मन को छूती है ।।
जवाब देंहटाएंप्रिय दीदी, आपने यहाँ आकर मेरी रचना का मान बढ़ाय, मेरे लिए गर्व की बात है। हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका 🙏🙏🌹🌹❤❤
हटाएंआपकी इतनी पुरानी कविता यूं पढ़ी रेणु जी मानो कोई नई कविता पढ़ रहा होता हूं। इंसानियत और कुदरत का घुलामिला रंग है इसमें। यह सदा सार्थक रहेगी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जितेंद्र जी 🙏🙏
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