जीना चाहूँ वो लम्हे बार -बार ,
जब तुमसे जुड़े थे मन के तार !
जाने उसमें क्या जादू था ?
ना रहा जो खुद पे काबू था !
ना रहा जो खुद पे काबू था !
कभी गीत बन कर हुआ मुखर,
हँसी में घुल कभी गया बिखर !
हँसी में घुल कभी गया बिखर !
प्राणों में मकरंद घोल गया,
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया !
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया !
इस धूल को बना गया चन्दन
सुवासित , निर्मल और पावन
सुवासित , निर्मल और पावन
कभी चाँद हुआ ,कभी फूल हुआ,
या चुभ हिया की शूल हुआ !
या चुभ हिया की शूल हुआ !
लाल था कभी - कभी नीला,
कभी सिंदूरी - कभी पीला !
कभी सिंदूरी - कभी पीला !
कोरे मन रंग कर निकल गया ,
कभी अश्रु बनकर ढुलक गया !
कभी अश्रु बनकर ढुलक गया !
ना खबर हुई क्या ले गया
क्या भर गया खाली झोली में ?
क्या भर गया खाली झोली में ?
वो चुटकी भर..अबीर तुम्हारा
उस फागुन की होली में !!!
स्वरचित -- रेणु-
चित्र -- गूगल से साभार
स्वरचित -- रेणु-
चित्र -- गूगल से साभार
बेहतरीन रचना रेणु जी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी |
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण है रेणु दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुक्रिया और आभार प्रिय शशी भाई |
हटाएंबहुत ही खूबसूरत आदरणीया
जवाब देंहटाएंप्रिय रवीन्द्र जी सस्नेह आभार |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-03-2019) को "लोकसभा के चुनाव घोषित हो गए " (चर्चा अंक-3270) (चर्चा अंक-3264) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर |
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/03/2019 की बुलेटिन, " एक कहानी - मानवाधिकार बनाम कुत्ताधिकार “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय |
हटाएंफागुन के ख़ुमारी में दिल के राज को खोलती भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेह आभार आदरणीय राकेश जी |
हटाएंसुन्दर शब्द, सुन्दर भाव!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी |
हटाएंलाज़बाब ,बेहद खूबसूरती से पुरानी यादों के रंग बिखेर गई तुम्हारी लेखनी ,भावनाओ के रंगो में सराबोर रचना..... ,स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी -- सस्नेह आभार सखी इन सुंदर उद्गारोंके लिए |
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय नीतीश जी |
हटाएंकभी गीत बन कर हुआ मुखर
जवाब देंहटाएंहंसी में घुल कभी गया बिखर
प्राणों में मकरंद घोल गया
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया
बहुत ही भावपूर्ण ....
फागुन की होली का चुटकी भर अबीर मधुर स्मृतियों के मनभावनी रंगों से रंगी बहुत ही लाजवाब रचना...
वाह!!!
आपके स्नेहिल उद्गारों के लिए आपकी सदैव आभारी हूँ प्रिय सुधा बहन |
हटाएंकभी चाँद हुआ कभी फूल हुआ
जवाब देंहटाएंया चुभ हिया की शूल हुआ
लाल था कभी - कभी नीला
कभी सिंदूरी - कभी पीला
कोरे मन रंग निकल गया
कभी अश्रु बनकर ढुलक गया
ना खबर हुई क्या ले गया -
क्या खाली झोली में भर गया?
वो चुटकी भर..अबीर तुम्हारा....बहुत अच्छी रेणु बहन
सादर
सस्नेह आभार प्रिय अनीता |
हटाएंफाल्गुन आते ही मन में तरंगें उठनी स्वाभाविक हैं ... रंगों के इस त्यौहार की महक और इसका इंतज़ार सदेव हो रहता है हर प्रेमी मन को ...
जवाब देंहटाएंअनेक यादें मन में लौट लौट आती हैं इन रंगों के साथ ... जो कभी कभी मन को तर कर जाती हैं ... बहुत ही सुन्दर रचना है उन पलों के साथ जिनसे जीवन जुड़ा रहता है ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- ब्लॉग पर निरंतर आपकी स्नेहिल उपस्थिति मेरा सौभाग्य है |सादर आभार |
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसदर आभार आदरणीय लोकेश जी |
हटाएंबहुत सुंदर रचना,रेणु दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय ज्योति जी |
हटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार 12 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर आभार यशोदा दीदी |
हटाएंवाहह्ह्ह... दी...रुमानी बेहद दिलकश सुंदर भावाव्यक्ति...👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंचुटकी भर प्रीत गुलाल
तन-मन रंग मोहे लूट गयो
कैसे कहूँ जिया का हाल
बौरायी मैंं हुई दीवानी
ओह मोहन क्या जादू डारा
मेरो जग से नाता टूट गयो
प्रिय श्वेता-- क्या खूब कहा तुमने !!!!! मूल रचना के अधूरे भावों को पूरा करती तुम्हारी सुंदर और भावपूर्ण काव्यात्मक टिप्पणी के लिए सस्नेह आभार और मेरा प्यार |
हटाएंउस फागुन की होली में
जवाब देंहटाएंप्राणों में मकरंद घोल गया
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया ...
मनभावन लेखनी। मन मकरंद सा हो गया। शुभकामनाएं ।
सादर आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी |
हटाएंवाह रेनू बहन बौराये मन की रंगो में सराबोर मनभावन अभिव्यक्ति सुंदर सरस सुघड़।
जवाब देंहटाएंकविता के भाव मुखरित हो बह रहे हैं ।
बहुत बहुत सुंदर रचना।
सस्नेह आभार प्रिय कुसुम बहन | आपके मधुर शब्द अनमोल हैं |
हटाएंबहुत बढ़िया, बहुत सुंदर रचना,रेणु
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बंधु आपका |
हटाएंकोरे मन रंग निकल गया
जवाब देंहटाएंकभी अश्रु बनकर ढुलक गया
ना खबर हुई क्या ले गया -
क्या खाली झोली में भर गया?
अत्यंत भावपूर्ण पंक्तियाँ। बहुत सुंदर रचना रेणु बहन।
प्रिय मीना बहन आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए आभारी हूँ |
हटाएंकभी गीत बन कर हुआ मुखर
जवाब देंहटाएंहंसी में घुल कभी गया बिखर
प्राणों में मकरंद घोल गया
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया
...वाह...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...भावों और शब्दों का बहुत सुन्दर संयोजन...
आदरणीय सर -- आपका ब्लॉग पर आना मेरा सौभाग्य है \सादर आभार आपके उत्साह बढाते शब्दों के लिए |
हटाएंप्राणों में मकरंद घोल गया
जवाब देंहटाएंबिन कहे ही सब कुछ बोल गया ..... गागर में सागर!
सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " करना मत कुहराम " (चर्चाअंक -3629) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी। 🙏🙏
हटाएंकितनी सुंदर कविता रची है रेणु जी आपने ! प्रथम पंक्ति ही सब कुछ कह देती है - 'जीना चाहूं वो लम्हे बार-बार' ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी आपकी अनमोल प्रतिक्रया के लिए बहुत बहुत आभार |
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंपुनः बहुत सुंदर कविता। यह वो कविता है जब प्रेम कविता में भक्ति भाव भी मिश्रित हो जाता है। आपकी कविता मुझे सूरदास जी की पंक्तियों की याद दिलाती है जिस में वे राधा रानी और गोपिकाओं के मनोभावों का वर्णन करते हैं जब वे कृष्ण विरह में भगवान जी के साथ मनाई गई होली का स्मरण करतीं हैं।
प्रिय अनंता तुमने मेरी साधारण सी रचना को इतना मान दिया उसके लिए आभार नहीं मेरी शुभकामनाएं और प्यार |
हटाएंसुंदर रचना के लिये हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंएक बार यहाँ आपकी सभी रचनाएँ पढ़ लूँगी तब मीमांसा और उच्छवास पर भी जाउंगी। हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता , मेरे ब्लॉग पर इतनी स्नेह टिप्पणियाँ अंकित करने के लिए तुम्हें क्या कहूं | अभिभूत हूँ | मेरा सुझाव है तुम सिर्फ पढो | लिखने के समय में दूसरे प्रबुद्धजनों के ब्लॉग पर भी जाकर पढो | मेरे सभी ब्लॉग पर तुम्हारा अभिनन्दन है | जब चाहो पढो और भ्रमण करो |पर अपनी पढ़ाई से समझोता मत करना और समय नष्ट मत करना | स्नेहाशीष |
हटाएंआदरणीया मैम,
हटाएंसदा की तरह आपका प्रोत्साहन और स्नेह मेरी प्रेरणा बन जाता है। मैं वचन देती हूँ, खहूब पढूँगी और अनुशासित भी रहूँगी। आपको लिखना तो एक तरीका है आपसे बात चीत करने का।
हृदय से आभार।
बहुत प्यार प्रिय अनंता |
हटाएं