'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
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विशेष रचना
आज कविता सोई रहने दो !
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
अनन्त आकाश मे उड़ान लेती यह कल्पना और प्रगाध होता प्रेम, न पास होने की चाह न दूर होने का गम, यही है सच्ची प्रीत प्रियतम!!!!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रेणु जी आपकी यह कविता आपकी श्रेष्ठ रचनाओं में भी उच्च श्रेणी की है। मेरी शुभकामनाएँ व बधाई।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी - आपके शब्द मनोबल ऊँचा करते है | हर्दिक आभार आपको |
हटाएंवाह्ह्ह....लाज़वाब रचना रेणु जी,बहुत बहुत सुंदर मनोभावों. का सुखद चित्रण।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना।
बधाई स्वीकार करें मेरी औद हर्दिक शुभकामनाएँ भी।
आदरनीय श्वेता जी आप के उत्साहवर्धन करते शब्द अनमोल हैं | आभार आपका --
हटाएंअनमोल है आपकी कविता और आपका लेखन.
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आदरणीय अनिल जी आभारी हूँ आपकी --कि आप ब्लॉग पर आये और रचना पढ़ी |
हटाएंनिस्वार्थ प्रेम को बहुत ही बारीकी से शब्दों में पिरोया है आपने.
जवाब देंहटाएंआद्र्मीय अयंगर जी ---- आपके शब्द प्रेरक हैं -- आभार आपका ----
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका आदरणीय कविता जी -------
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दीदी ------ आपका सस्नेह आभार - जो अपने मेरी रचना का मान बढ़ाया |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय ओंकार जी बहुत आभारी हूँ आपकी कि अपने रचना पढ़ी |
हटाएंसुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका आदरणीय सुशील जी |
हटाएंप्रेम के पफिपक्व रूप को आपने बहुत मोहक शब्दों में अभिव्यक्ति दी है रेणु दी आपने. सच्चा प्रेम एक दूसरे को जस का तस स्वीकार करना ही है और एक दूसरे को उसका आकाश प्रदान करना भी है जिसमें वो उन्मुक्त हो विचरण कर सके और अपने लिये ने क्षितिज खोज सके. बहुत सुंदर कविता है दी आपकी.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत आभारी हूँ अपर्णा आपकी |--- जो आपने सूक्ष्म दृष्टि से देखकर रचना का अवलोकन किया | मुझे बहुत ख़ुशी हुई | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत ही सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब....
ये चाहत नहीं कि मैं बदलूँ और भुला दूँ अपना अस्तित्व.....
प्रेम की पराकाष्ठा...
आदरणीय सुधा जी -- बहुत आभारी हूँ आपके प्रेरक शब्दों के लिए |
हटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति, साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in/
आदरणीय राकेश जी ------ मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है | बहुत आभारी हूँ कि आपने रचना पढ़ी और उस पर अपने भाव प्रकट किये | मैं आपके ब्लॉग में मैं जरुर जल्द ही सम्मिलित होना चाहूंगी |
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआत्मिक प्रेम का सुंदर रूप प्रस्तुत किया है आपने रेणु जी
जवाब देंहटाएंप्रिय शकू आपके मेरे ब्लॉग विचरण ने मुझे एक परम स्नेही बहन से जोड़ दिया | आपका स्नेह अतुलनीय है | आपकी भावनाओं के लिए कोई भी आभार कम है फिर भी कहूंगी अपना स्नेह बनाये रखना |
हटाएंप्रेम का वास्तविक अर्थ अपनी इस रचना द्वारा बताया है रेणुजी आपने प्रेम बंधने और बांधने में नही अपितु प्रेम तो एक दूसरे के लिए खो जानेएक दूसरे के संग निर्वाह निर्बाध रूप से बहने में है,उन्मुक्त प्रेम ही समर्पण, त्याग, और अटूतता का परिचायक होता बहुत ही अचे शब्दों में प्रेम का एकदम सटीक वर्णन अद्भुत रेणु जी शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंप्रिय सुप्रिया -- आप जैसी सुधि और विदूषी पाठिका के मर्मस्पर्शी चिंतन ने मेरी रचना में चार चाँद लगा दिए हैं | ओशो कहते हैं की जब हम प्रेम पर अति अधिकार जमाने लगते हैं तो प्रेम की ह्त्या हो जाती है | अगर नहीं भी होती तो वह मृतप्राय तो हो ही जाता है |टी ओ वहीँ बुद्ध प्रेम का उद्दात रूप एक फूल में माध्यम से दर्शाते हैं जो खिलकर अपनी सुगंध बिखेरता है पर उस फूल को तोड़ संजोने से वह सूख जाता है| प्रेम को भी बंदी बनाने से वह मिटने के कगार पर आ खड़ा होता है | गृहस्थी में उन्मुक्त प्रेम का ही महत्व है | इसी में समर्पण है और साथ में अक्षुणता भी | आपकी आभारी हूँ जो इतनी गहराई से रचना को परखा | सस्नेह --
हटाएंबहुत शानदार रचना। प्रेम का वास्तविक अर्थ सोचने को विवश करती।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा भाव।
प्रिय नीतू -- आपके स्नेह भरे शब्द अनमोल हैं मेरे लिए -- हमेशा की तरह |
हटाएंप्रेम का उदात्त रूप अभिव्यक्त हुआ है आपकी इस सुंदर रचना में। प्रेम वही तो है जो बदले में कुछ पाने की चाह ना रखे। प्रिय की खुशी में ही खुश हो जाए। किंतु ये आदर्श प्रेम अब लुप्तप्राय हो रहा है....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना हेतु बधाई प्रिय रेणु बहन।
प्रिय मीना बहन -- हमेशा की तरह आपने रचना के अंतर्निहित भाव को पहचाना और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दी | सचमुच आज प्रेम का ये उद्दात रूप लुप्तप्राय हो रहा है |पर ते बात स्मरणीय है जहाँ विश्वास हो वहीँ प्रेम भली भांति फलता फूलता है | आपके अनमोल शब्दों के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत और सुन्दर रचना की है मैम जी आपने...!
जवाब देंहटाएंप्रेम को आपने अपने मन के अन्तर्भाव से खूबसूरत काव्य रूप में लिखा है आपने । अद्भुत..👌
प्रिय तनु जी हार्दिक स्वागत है मेरे ब्लॉग पर आपका | आपके स्नेहिल शब्द अनमोल हैं |आशा करती हूँ आपका ये स्नेह यूँ ही बना रहेगा |
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