आये अतिथि आँगन मेरे ,
महक उठे घर - उपवन मेरे !!
छलके खुशियों के पैमाने
गूँजें मंगल - गीत सुहाने ,
आज ना पड़ते पाँव धरा पे
भूल गये सब दर्द पुराने ;
खिला है कोना -कोना घर का
पतझड़ बन गये फागुन मेरे !!
जिस पल को थे नैना तरसे ,
देख उसे ये तन - मन हरषे ;
खूब निहारूं और इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग बरसे ;
अपनों ने जब गले लगाया
नैना बन गये सावन मेरे !!
जगमग दीप द्वार सजे हैं ,
झिलमिल बन्दनवार सजे हैं ;
पथ बिखरी गुलाब पांखुरी
सुवासित गेंदाहार सजे हैं ;
देव अतिथि तुम हो मेरे !
स्वीकार करो अभिनंदन मेरे !!
आये अतिथि आंगन मेरे ,
महक उठे घर - उपवन मेरे !!!!!!!
बहुत सुंदर रेणु जी.
जवाब देंहटाएंआदरणीय अयंगार जी -- सादर आभार और नमन -आपके बहुमूल्य शब्दों के लिए
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-11-2018) को "महकता चमन है" (चर्चा अंक-3160) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीय राधा जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंजिस पल को थे नैना तरसे ,
जवाब देंहटाएंदेख उसे ये तन - मन हरषे ;
खूब निहारूं और इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग बरसे ;
अपनों ने जब गले लगाया
नैना बन गये सावन मेरे !!
बहुत ही सुंदर मन के भावों से सजी सहज लेखनी। हृदय को छू गई । बहुत-बहुत बधाई ।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- सादर आभार और शुक्रिया आपके उत्साहवर्धन करते शब्दों के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर रेनू बहन!
जवाब देंहटाएंहृदय से स्वागत करती सुंदर गेय रचना,
सच जब अपने प्रिय आके आंगन में उतरते हैं तो मन में थिरकन होने लगती है, आपकी रचना को संकलित कर रही हूं,बहुत बार कई जन पुछते हैं एक अच्छा स्वागत गान बताओ तो अविराम हाजिर ।
बहुत प्यारी रचना।
प्रिय कुसुम बहन -- आप बड़ी सरलता से रचना की तह तक पहुंच जाती हैं ये मेरे लिए आह्लादित करने वाली बात है | पिछले दिनों सच में सभी प्रियजन आँगन में अतिथि बन आये तो इन पंक्तियों के माध्यम से वो ख़ुशी लिखने की कोशिश की | आपने संकलित कर मेरी रचना को जो मान दिया उसके लिए ह्रदय से आभारी हूँ |
हटाएंवाह! बहुत खूबसूरत कविता आपकी स्वाभाविक लय में। बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंसादर आभार एवं अभिनन्दन आपका आदरणीय विश्वमोहन जी |
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह स्वागत और आभार प्रिय अनुराधा बहन |
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
प्रिय ध्रुव आपका सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर |
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुशील जी |
हटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंप्रेम जब अतिथि बन के आता है तो नम मयूर नाच उठता है ...
प्रिय जब आता है तो चहक उठता है आँगन उपवन और आपने इस प्रसन्नता को शब्दों में बख़ूबी लिखा है ...
आदरणीय दिगम्बर जी-- सादर आभार एवं अभिनन्दन आपका |
हटाएंबेहतरीन भावों को गहराई के साथ चित्रित करती सुंदर
जवाब देंहटाएंरचना सखी रेनु
प्रिय अभिलाषा बहन -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत खूब रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय ऋतु जी -- हार्दिक आभार और शुक्रिया |
हटाएंजगमग दीप द्वार सजे हैं ,
जवाब देंहटाएंझिलमिल बन्दनवार सजे हैं ;
पथ बिखरी गुलाब पांखुरी-
सुवासित गेंदाहार सजे हैं ;
देव अतिथि तुम हो मेरे -
स्वीकार करो अभिनंदन मेरे !! ....अति सुंदर रचना रेनु जी | सुंदर लेखन के लिए हार्दिक बधाई|
प्रिय दीपा जी -- आपके स्नेहिल शब्दों के लिए आभारी हूँ | सस्नेह आभार |
हटाएंछलके खुशियों के पैमाने -
जवाब देंहटाएंगूंजे मंगल - गीत सुहाने ,
आज ना पड़ते पांव धरा पे -
भूल गये सब दर्द पुराने ;
खिला है कोना -कोना घर का
पतझड़ बन गये फागुन मेरे !!
बदलते समय मे अतिथि जहाँँ मुसीबत लगने लगे सबको,आतिथ्य को सौभाग्य समझ अतिथि का सत्कार और सम्मान करती....वहाँ आपकी रचना संस्कार भरती है मन में,बहुत ही सुन्दर लाझ भावाभिव्यक्ति.....।
वाह!!!
प्रिय सुधा बहन -- आपकी रचना के आंतरिक भाव को पहचान कर की गई सारगर्भित टिप्पणी सदैव मनोबल बढ़ाती है | आपका स्नेह मेरे लिए अनमोल है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंअतिथि पधारो, मेरे अंगना !
जवाब देंहटाएंपलक पांवड़े बिछे हुए हैं, और गैस पे, चाय का पानी चढ़ा हुआ है,
केक, पेस्ट्री मंगवा ली हैं, और द्वार पर माला लेकर, दास तुम्हारा खड़ा हुआ है.
आइये गोपेश जी -- स्वागत और अभिनन्दन | मेहमानों के चाव में चाय पानी विस्मृत हो गया था आपने याद दिला दिया | पर देहाती हरियाणवी संस्कृति वाले लोगों के यहाँ केक , पेस्ट्री से स्वागत होना जरा मुश्किल सा है | हाँ कुछ देशी व्यवस्था का विकल्प जरुर हो सकता है | सादर आभार आपके इन चुटीले , मुस्कान भरे , नटखट शब्दों का |
हटाएंवाह!प्रिय रेनू जी ,बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा बहन -- हार्दिक आभार और शुक्रिया |
हटाएंजिस पल को थे नैना तरसे ,
जवाब देंहटाएंदेख उसे ये तन - मन हरषे ;
खूब निहारूं और इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग बरसे ;
अपनों ने जब गले लगाया
नैना बन गये सावन मेरे !!.... बहुत सुंदर रचना रेनू जी
सस्नेह आभार प्रिय वन्दना जी | आपका रचना पढना मुझे गर्व की अनुभूति करवाता है |
हटाएंजिस पल को थे नैना तरसे ,
जवाब देंहटाएंदेख उसे ये तन - मन हरषे ;
खूब निहारूं और इतराऊँ -
आँगन आज मिलन -रंग बरसे ;
बहुत ही सुंदर रचना , किसी प्रिय को देख इतराना खुद -ब -खुद आ जाता हैं ,लाजबाब...... स्नेह सखी
स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय कामिनी 💐💐🙏🙏💐💐
हटाएंआज फिर से पढी आपकी सुंदर रचना सखी ।वाह!सखी रेनू जी ,बहुत खूबसूरत रचना ।खुशियों का आगमन होता है जब ,नाच उठता है तन ,मन ।
जवाब देंहटाएंस्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी ।
हटाएंबहुत सुंदर स्वागत गीत आपका रेणु बहन, मेरे पास संकलित किया हुआ है ।
जवाब देंहटाएंमोहक, मनोहर।
बहुत बहुत आभार कुसुम बहन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए🙏🙏 ❤🌹
हटाएंबहुत सुन्दर गीत गुनगुनाने का मन करता है ।
जवाब देंहटाएं