मेरी प्रिय मित्र मंडली

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

जब तुम ना पास थे -


कुछ घड़ियाँ थी या सदियाँ थी
तुम्हारे  इन्तजार  की ,
 बढ़ी   मन की तपन 
फीकी पड़ी रंगत बहार की !

बुझी-बुझी हर शै थी 
जब तुम ना पास थे  ,
आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया 
सब उदास थे !

  हवाएँ थी  पुरनम , 
 गुम  मन  मौसम थे;
 बरसने को आतुर
 येआँखों के सावन थे !! 

 खुद के   सवाल थे 
अपने ही   जवाब थे ,
चुपचाप  जिन्हें सुन रहे   
जुगनू,  तारे  ,मेहताब थे !
  
ना रहा बस में मेरे 
कब  दिल पे जोर था ,
उलझा रहा   भीतर  
 तेरी  यादों का शोर था !!

 भ्रम  सी थी हर आहट
 तुम जैसे  आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी  उदास हो !!


43 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2018) को "आनन्द अलाव का" (चर्चा अंक-3192) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय आयंगर जी -- सादर आभार कि आपने रचना पढ़ी और पसंद की |

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. खुद के सवाल थे -
    अपने ही जवाब थे -
    चुपचाप सुन रहे जिन्हें -
    जुगनू, तारे . मेहताब थे !
    बहुत ही सुंदर पंक्क्तियाँ लिखी है आपने। साधुवाद ।

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    1. सादर आभार और शुक्रिया आदरणीय पुरुषोत्तम जी |

      हटाएं
  5. सस्नेह आभार प्रिय बन्धु |

    जवाब देंहटाएं
  6. भ्रम सी थी हर आहट
    तुम जैसे आसपास हो ।
    कह रहा बोझिल मन
    कहीं तुम भी उदास हो !!

    जी दी
    यही भ्रम कष्टकारी होता है, हमें कल्पनाओं में ले जाता है,स्मृतियों में ले जाता है,दिवास्वप्न दिखलाता है और अंततः दोनों हाथ खाली रह जाते हैं।
    सुंदर अभिव्यक्ति है।

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    उत्तर
    1. प्रिय शशि भाई -- आप के स्नेहासिक्त शब्दों के लिए सस्नेह आभार |

      हटाएं
  7. अंतिम पंक्तियाँ तो जैसे दिल ही निकालकर ले गईं....
    कह रहा बोझिल मन
    कहीं तुम भी उदास हो !!!

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    1. प्रिय मीना बहन -- भावपूर्ण शब्दों के लिए सस्नेह आभार और शुक्रिया |

      हटाएं
  8. बहुत सुन्दर रेनू जी. विरह वेदना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है आपने. विरही किस जीवन्तता के साथ विरह की वेदना को सहन कर लेता है, इस पर एक ख़ूबसूरत शेर याद आ गया -
    'ऐ हुस्न, हमको हिज्र की, रातों का खौफ़ क्या,
    तेरा ख़याल जागेगा, सोया करेंगे हम.'

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    उत्तर
    1. आदरणीय गोपेश जी -- आपके शब्द कमाल तो शेर बेमिसाल है | सादर आभार और नमन |

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  9. बहुत सुंदर.... ,दिल को छू लेने वाली ....रचना सखी, स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह !
    विरह गान हूक उठाता हृदय स्पर्शी, भावों को कितनी नजाकतता से पोया है हर क्षण लगता है जैसे अब धैर्य छूटा बस अब धैर्य छूटा पर फिर आतुर हृदय की बेबसी संभाल कर एक छोटी सी आस सारी पीड़ा पर भारी ..
    कहीं तुम भी उदास हो ।

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    1. प्रिय कुसुम बहन आपकी स्नेह भरी टिप्पणी मुझे बहुत भावुक कर देती है | रचना का मर्म समझकर उसे सार्थक कर देती हैं आप | सस्नेह आभार और प्यार |

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  11. बेहद हृदयस्पर्शी रचना रेनू जी

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार और शुक्रिया प्रिय अनुराधा जी

      हटाएं
  12. ना रहा बस में मेरे -
    कब दिल पे जोर था ,
    उलझा रहा भीतर -
    तेरी यादों का शोर था !!
    कमाल की रचना......सीधे दिल को छूती...
    जब तुम न पास थे
    आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया -
    सब उदास थे !....
    गजब की भावाभिव्यक्ति
    वाह!!!

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    1. प्रिय सुधा बहन -- रचना के अंतर्निहित भाव आपके शब्दों से विस्तार पाते है| आभार से परे इन शब्दों के लिए मेरा प्यार और नमन |

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  13. भ्रम सी थी हर आहट
    तुम जैसे आसपास हो ।
    कह रहा बोझिल मन
    कहीं तुम भी उदास हो !!.
    ...रेनू जी अति उत्तम। सुंदर लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं व बहुत बहुत बधाई

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    उत्तर
    1. पेय दीपा जी -- आपके स्नेहभरे शब्दों के लिए सस्नेह आभार |

      हटाएं
  14. भ्रम सी थी हर आहट
    तुम जैसे आसपास हो ।
    कह रहा बोझिल मन
    कहीं तुम भी उदास हो !... प्रेम की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर और सस्नेह आभार प्रिय वन्दना जी | आपका सहयोग अनमोल है |

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    2. प्रेम की कोमल अनुभूति
      सुंदर रचना
      बधाई

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    3. सादर आभार आदरणीय ज्योति जी |

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  15. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय संजय जी -- अब की बार नये पयोग का मन था | आपको पसंद आया तो संतोष हुआ | सस्नेह आभार |

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  16. कोमल एहसासों से सजी सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रतीक्षा और प्रेम एक-दूसरे के पूरक हैं। विरह वेदना का एहसास कराती सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  18. वाह रेणुबाला जी !
    दोनों तरफ़ है आग, बराबर लगी हुई !

    जवाब देंहटाएं
  19. उत्तर
    1. हार्दिक आभार प्रिय शुभा जी। रचना पर आपकी उपस्थिति से बहुत खुशी होती है। 🙏🙏

      हटाएं

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