कुछ घड़ियाँ थी या सदियाँ थी
तुम्हारे इन्तजार की ,
बढ़ी मन की तपन
फीकी पड़ी रंगत बहार की !
बुझी-बुझी हर शै थी
जब तुम ना पास थे ,
आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया
सब उदास थे !
हवाएँ थी पुरनम ,
गुम मन मौसम थे;
बरसने को आतुर
येआँखों के सावन थे !!
खुद के सवाल थे
अपने ही जवाब थे ,
चुपचाप जिन्हें सुन रहे
जुगनू, तारे ,मेहताब थे !
ना रहा बस में मेरे
कब दिल पे जोर था ,
उलझा रहा भीतर
तेरी यादों का शोर था !!
भ्रम सी थी हर आहट
तुम जैसे आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2018) को "आनन्द अलाव का" (चर्चा अंक-3192) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय सर |
हटाएंसुंदर भावों का शब्दांकन.
जवाब देंहटाएंआदरणीय आयंगर जी -- सादर आभार कि आपने रचना पढ़ी और पसंद की |
हटाएंहदयस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
प्रिय रविन्द्र जी -- सस्नेह आभार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार और शुक्रिया प्रिय श्वेता |
हटाएंखुद के सवाल थे -
जवाब देंहटाएंअपने ही जवाब थे -
चुपचाप सुन रहे जिन्हें -
जुगनू, तारे . मेहताब थे !
बहुत ही सुंदर पंक्क्तियाँ लिखी है आपने। साधुवाद ।
सादर आभार और शुक्रिया आदरणीय पुरुषोत्तम जी |
हटाएंसस्नेह आभार प्रिय बन्धु |
जवाब देंहटाएंभ्रम सी थी हर आहट
जवाब देंहटाएंतुम जैसे आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !!
जी दी
यही भ्रम कष्टकारी होता है, हमें कल्पनाओं में ले जाता है,स्मृतियों में ले जाता है,दिवास्वप्न दिखलाता है और अंततः दोनों हाथ खाली रह जाते हैं।
सुंदर अभिव्यक्ति है।
प्रिय शशि भाई -- आप के स्नेहासिक्त शब्दों के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंअंतिम पंक्तियाँ तो जैसे दिल ही निकालकर ले गईं....
जवाब देंहटाएंकह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !!!
प्रिय मीना बहन -- भावपूर्ण शब्दों के लिए सस्नेह आभार और शुक्रिया |
हटाएंबहुत सुन्दर रेनू जी. विरह वेदना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है आपने. विरही किस जीवन्तता के साथ विरह की वेदना को सहन कर लेता है, इस पर एक ख़ूबसूरत शेर याद आ गया -
जवाब देंहटाएं'ऐ हुस्न, हमको हिज्र की, रातों का खौफ़ क्या,
तेरा ख़याल जागेगा, सोया करेंगे हम.'
आदरणीय गोपेश जी -- आपके शब्द कमाल तो शेर बेमिसाल है | सादर आभार और नमन |
हटाएंबहुत सुंदर.... ,दिल को छू लेने वाली ....रचना सखी, स्नेह
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और प्यार प्रिय कामिनी |
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंविरह गान हूक उठाता हृदय स्पर्शी, भावों को कितनी नजाकतता से पोया है हर क्षण लगता है जैसे अब धैर्य छूटा बस अब धैर्य छूटा पर फिर आतुर हृदय की बेबसी संभाल कर एक छोटी सी आस सारी पीड़ा पर भारी ..
कहीं तुम भी उदास हो ।
प्रिय कुसुम बहन आपकी स्नेह भरी टिप्पणी मुझे बहुत भावुक कर देती है | रचना का मर्म समझकर उसे सार्थक कर देती हैं आप | सस्नेह आभार और प्यार |
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना रेनू जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और शुक्रिया प्रिय अनुराधा जी
हटाएंना रहा बस में मेरे -
जवाब देंहटाएंकब दिल पे जोर था ,
उलझा रहा भीतर -
तेरी यादों का शोर था !!
कमाल की रचना......सीधे दिल को छूती...
जब तुम न पास थे
आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया -
सब उदास थे !....
गजब की भावाभिव्यक्ति
वाह!!!
प्रिय सुधा बहन -- रचना के अंतर्निहित भाव आपके शब्दों से विस्तार पाते है| आभार से परे इन शब्दों के लिए मेरा प्यार और नमन |
हटाएंभ्रम सी थी हर आहट
जवाब देंहटाएंतुम जैसे आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !!.
...रेनू जी अति उत्तम। सुंदर लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं व बहुत बहुत बधाई
पेय दीपा जी -- आपके स्नेहभरे शब्दों के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंभ्रम सी थी हर आहट
जवाब देंहटाएंतुम जैसे आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !... प्रेम की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
सादर और सस्नेह आभार प्रिय वन्दना जी | आपका सहयोग अनमोल है |
हटाएंप्रेम की कोमल अनुभूति
हटाएंसुंदर रचना
बधाई
सादर आभार आदरणीय ज्योति जी |
हटाएंअभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय जी -- अब की बार नये पयोग का मन था | आपको पसंद आया तो संतोष हुआ | सस्नेह आभार |
हटाएंकोमल एहसासों से सजी सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसादर आभार राकेश जी |
हटाएंप्रतीक्षा और प्रेम एक-दूसरे के पूरक हैं। विरह वेदना का एहसास कराती सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार रविन्द्र जी |
हटाएंअनुराग का मखमली अहसास!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी |
हटाएंवाह रेणुबाला जी !
जवाब देंहटाएंदोनों तरफ़ है आग, बराबर लगी हुई !
सादर आभार आपका आदरणीय गोपेश जी 🙏🙏
हटाएंवाह!सखी ,सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय शुभा जी। रचना पर आपकी उपस्थिति से बहुत खुशी होती है। 🙏🙏
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