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शनिवार, 20 जुलाई 2019

गाय बिन बछड़ा --कविता 

  

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गाय  बिन  बछड़ा  रहता   उदास  बड़ा ,
 डूबा   है किसी फ़िक्र में ,दिखता  हताश   बड़ा !

जाने  क्यों  इसके लिए  निष्ठुर बना   विधाता ?
क्रूर काल  ने  जन्मते   छीन  ली  इसकी  माता ;
अबोध , असहाय  ये नन्हा   सा  बछडा- 
बड़ी करुणा  से  तकता ,आँखे  नम  कर  जाता ;
पेट पीठ  में लगा   लोग  कहें  बड़ा  अभागा,
मूक  वेदना     भांप   मन होता   निराश बड़ा !

होती माँ  जो  आज  चाट कर  लाड़ जताती .
 होता  तनिक  भी दूर  जोर  से बड़ा रंभाती ; 
स्नेह  से  पिलाती दूध,  जरा   भूखा जो  दिखता .
ममता  से रखती खूब - माँ  बनकर  इतराती ;
कुलांचे भरता  नन्हा ,  दिखती उमंग    बचपन  की ,
  दिखता भोली  आँखों  से    मीठा   उल्लास  बड़ा !

काश  ! होती  जुबान ,तो बात  मन   की  कह  पाता,
माँ  को करता  याद -  बड़ा ही   रुदन    मचाता ;
  स्वामी  विकल  -स्नेह से  खूब    सहलाये ,
लगती  तनिक  जो भूख  बोतल  से  दूध  पिलाता ;
  माँ  की  कमी  न  पर वो   पूरी  कर  पाए 
भले है  मन  को  इस  गम   का एहसास  बड़ा ! !!!!!! 
 

  
 

24 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-07-2019) को "आशियाना चाहिए" (चर्चा अंक- 3404) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति आज सायं 5:30 बजे प्रकाशित होने वाले सांध्य दैनिक 'मुखरित मौन' https://mannkepaankhi.blogspot.com/ ब्लॉग में सम्मिलित की गयी है। चर्चा हेतु आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

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    1. आदरणीय रवीन्द्र जी ---- मुखरित मौन मंच का हार्दिक आभार |

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  3. रेणु दी,बच्चा चाहे इंसान का हो या गाय का माँ बिन दोनों की हालत बहुत खराब होती हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. आपने सही कहा प्रिय ज्योति जी | सस्नेह आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए |

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  4. बिन माँ हर बच्चे की व्यथा की सच्ची कहानी
    मार्मिक रचना

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    1. आदरणीय दीदी आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है | सस्नेह आभार उर प्रणाम |

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  5. बहुत ही सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना प्रिय रेणु दी जी
    सादर स्नेह

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  6. ममत्वहीन मूक जीव की आत्मा का दर्द गहरे अहसासों सहित उकेरा है आपने... आपकी लेखनी के भाव और सहृदयता हृदय को गहराईयों से स्पर्श करती है । सस्नेह शुभकामनाएं प्रिय रेणु जी !

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    1. रचना के मर्म को पहचानने के लिए आपकी आभारी हूँ प्रिय मीना जी |

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  7. बेजुबान जानवर के दर्द के अहसास का बेहद मार्मिक चित्रण किया आपने।बेहतरीन रचना प्रिय सखी

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    1. प्रिय अनुराधा बहन --- आपने रचना का मर्म पहचाना , जिसके लिए आपका सस्नेह आभार |

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  8. माँ चाहे किसी की भी हो ममता स्वरूपा ही होती है

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    1. आदरणीय गगन जी-- आपने सही कहा | हार्दिक आभार आपका |

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  9. आपकी रचनाएँ संवेदना का सरगम है। शब्द-शब्द में मां की ममता और उसके ममत्व से महरूम संतान की वेदना छलक आयी है। व्यथा की इस गाथा को कहने में जुबानें भी बेज़ुबान हो जाती है। कितना सजीव चित्र;
    होती माँ जो आज चाट कर लाड़ जताती .
    होता तनिक भी दूर जोर से बड़ा रंभाती ;
    स्नेह से पिलाती दूध जरा भूखा जो दिखता .
    ममता से रखती खूब - माँ बनकर इतराती ;
    कुलांचे भरता नन्हा , दिखती उमंग बचपन की ,
    दिखता भोली आँखों से मीठा उल्लास बड़ा !
    नि:शब्द हूँ!

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    1. आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुमूल्य है आदरणीय विश्वमोहन जी | सादर आभार है आपका |

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  10. हृदय को गहराईयों से स्पर्श करती है लेखनी

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    1. प्रिय संजय , आपके सहयोग और स्नेह के लिए कोई आभार नहीं , बस मेरी शुभकामनायें आपके लिए |

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  11. बेजुबान बछड़े की दर्द भरी गाथा का बहुत ही हृदयस्पर्शी चित्र उकेरा है आपने.....अद्भुत संवेदनशील शब्दविन्यास....
    होती माँ जो आज चाट कर लाड़ जताती .
    होता तनिक भी दूर जोर से बड़ा रंभाती ;
    स्नेह से पिलाती दूध जरा भूखा जो दिखता .
    ममता से रखती खूब - माँ बनकर इतराती ;
    कुलांचे भरता नन्हा , दिखती उमंग बचपन की ,
    दिखता भोली आँखों से मीठा उल्लास बड़ा !
    दिल को छूती बहुत ही मार्मिक लाजवाब प्रस्तुति।

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    उत्तर
    1. प्रिय सुधा बहन आपकी भावनाओं से भरी अनमोल प्रतिक्रिया के साथ मेरी रचना की शोभा द्विगुणित हो जाती है | इस स्नेह के लिए मेरा आभार नहीं बस प्यार सखी |

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  12. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही संवेदन शील और भावपूर्ण रचना। एक बिना गाय के बछड़े के माध्यम से अपने बिन- माँ के बच्चे की पीड़ा को बहुत गहराई से दर्शाया है। ऐसे में बच्चे के पिता उसे अपना सारा स्नेह देकर उसके दुःख को कम करने का प्रयास तो करते हैं पर माँ की कमी पूरी नहीं कर पाते। दूध पिलाने वाला स्वामी उसी पिता का प्रतीक है।
    ह्रदय से आभार।

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    उत्तर
    1. प्रिय अनंता , तुमने रचना के मर्म को भली - भांति पकड़ा है, जिसके लिए कहना चाहूंगी कि तुम बहुत अच्छी पाठिका और समीक्षक हो | सचमुच किसी भी स्वामी के लिए उसका पशुधन बहुत विशेष और अनमोल होता है | ये रचना मेरे गाँव के एक भाई के बछड़े की व्यथा -कथा है | मैं उन दिनों अपने गाँव गयी हुई थे कि मेरे सामने ही मेरे उन भाई की गाय की , पशु चिकित्सक की एक गलती की वजह से, इस बछड़े को जन्म देते ही मौत हो गई | यद्यपि भाई ने बहुत कोशिश की बछडा जीवित रहे पर उनके भरसक प्रयत्नों के बावजूद वह आठ या नौ दिन ही जी पाया | इतने दिन मैं उसे रोज देखती रही | उसकी निरीह और असहाय मुद्रा से मेरा मन बहुत विचलित हुआ तभी ये रचना लिखी गयी | तुमने बहुत सही समीक्षा से अपने अतिसंवेदनशील होने का परिचय दिया है | | इस सह्र्द्यता और निश्छलता से तुम हमेशा परिपूर्ण रहो ,मेरी कामना है | शुभकामनाएं और हार्दिक प्यार |

      हटाएं

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