जीवन की ढलती साँझ में
गीत मेरे सुनने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
हो जाए शायद आँखें नम
गुज़र यादों के गलियारों से,
टीस उभरेगी पतझड़ की
कर सामना बीती बहारों से;
दुनियादारी से ना मिलना
याद आये तब मिलने आना!
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
सुन लेना हर दर्द मन का
बन सखा घनश्याम तुम
थके प्राणों को दे छाँव अपनी
देना तनिक आराम तुम;
कलुषता हर अंतस की
भाव मधुर भरने आना !
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
लिख जिन्हें पास अपने
छिपा रख लेती हूँ मैं
एकांत में कभी इन्हें
पढ़ रो कभी हँस देती हूँ मैं
ख़त तुम्हारे नाम के
चुपके से कभी पढने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
स्वरचित
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार राकेश जी और मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है|
हटाएंजब जी चाहा निहार लिया
जवाब देंहटाएंकर बंद पलकें भीतर तुम्हें
कहाँ ये नसीब मेरा
देख लूँ छूकर तुम्हें
अनंत भाव समेटे बड़ी प्यारी रचना सखी ,सादर नमन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 12 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय यशोदा दीदी |
हटाएंरेणु दी बिल्कुल सही कहा जीवन की संध्याकाल में ही किसी मीत अथवा मनमानी की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।
जवाब देंहटाएंजब वासना से मनुष्य ऊपर उठ चुका होता है
तब प्रेम का वह गीत मीरा को कृष्ण
में समाहित कर देता है।
रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हार्दिक आभार शशि भाई |
हटाएंआखिरी मोहब्बत कभी विकल्प नहीं देती
जवाब देंहटाएंवो यादें बनाती
जो अंत में याद आये
जो आज तक कहा नहीं गया शायद वो भी सुना जाता है.
प्रेम रस में डुबकी लगाती रचना.
आपकी लेखनी के कायल हम.
बहुत खूब , प्रिय रोहित !!! हार्दिक आभार इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंजीवन की ढलती साँझ में
जवाब देंहटाएंगीत मेरे सुनने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
बेहद सुन्दर भावाभिव्यक्ति रेणु जी !!
हार्दिक आभार प्रिय मीना जी |
हटाएंख़त तुम्हारे नाम के
जवाब देंहटाएंचुपके से कभी पढने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
बहुत ही सुंदर भावों में सजी रचना ,लाज़बाब ,सादर स्नेह सखी
हार्दिक आभारm प्रिय सखी कामिनी |
हटाएंसुन लेना हर दर्द मन का
जवाब देंहटाएंबन सखा घनश्याम तुम
थके प्राणों को दे छाँव अपनी
देना तनिक आराम तुम;
कलुषता हर अंतस की
भाव मधुर भरने आना !
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
वाह !!!सखी हमेशा की तरह एक और बहुत ही सुन्दर खूबसूरत गीत....बहुत ही भावपूर्ण....
लाजवाब सृजन
प्रिय सुधा जी , रचना के मर्म तक पहुंचना आपकी समीक्षा की सबसे बड़ी विशेषता है |आपकी स्नेह भरी व्यापक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंकलुषता हर अंतस की
जवाब देंहटाएंभाव मधुर भरने आना !
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
प्रिय अनुराधा जी सस्नेह आभार और शुक्रिया |
हटाएंदुनियादारी से ना मिलना,
जवाब देंहटाएंयह बहुत ही कठोर दीवार है,
इसे कभी भूले से भी पार नहीं करना।
प्रिय गुरमिंदर जी , स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपने रचना पढ़ी जिसके लिए अत्यंत आभार |
जवाब देंहटाएंसीपी को तो स्वाति के, स्वादों की लत बस होती है।
जवाब देंहटाएंचाहे सांझ हो, चाहे सवेरा, बूँद-बूँद मुख मोती है।।.... बहुत सुंदर। आभार और बधाई।
आपकी काव्यात्मक मधुर टिप्पणी मेरे ब्लॉग के लिए अमूल्य उपहार है आदरणीय विश्वमोहन जी ।सादर आभार आपके अनमोल शब्दों का । 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर , सस्नेह आभार प्रिय ज्योति जी 🙏🙏🙏
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
प्रिय ध्रुव , आपके इन निस्वार्थ प्रयासों की सराहना करती हूँ | सस्नेह आभार और शुभकामनाएं आपके लिए |
हटाएंलिख जिन्हें पास अपने
जवाब देंहटाएंछिपा रख लेती हूँ मैं
एकांत में कभी इन्हें
पढ़ रो कभी हँस देती हूँ मैं
ख़त तुम्हारे नाम के
चुपके से कभी पढने आना
मन के तटपर यादों की
सीपियाँ चुनने आना !
जी दी कितना सुंदर लिखा है आपने..हर शब्द पावन प्रेम के समर्पित भावों की खुशबू से सुवासित है।
अंतस को छूती बेहद सुंदर अभिव्यक्ति दी।
प्रिय श्वेता , तुम्हारे जैसी प्रबुद्ध कवयित्री को मेरी रचना पसंद आई , समझो मेरा लिखना सार्थक हुआ | सस्नेह आभार और शुभकामनाएं |
हटाएंख़त तुम्हारे नाम के
जवाब देंहटाएंचुपके से कभी पढने आना
बहुत सुंदर रचना।
प्रिय जोया जी , सस्नेह आभार आपके मेरे ब्लॉग पर आने का |
हटाएंमन के तटपर यादों की
जवाब देंहटाएंसीपियाँ चुनने आना !
.........बेहद खूबसूरत
प्रिय संजय , आपके स्नेह की आभारी हूँ | हार्दिक आभार और शुभकामनाएं आपके लिए |
जवाब देंहटाएंजीवन की ढलती साँझ में ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मधुर ... पढ़ते हुए अपने आप में जैसे खो गया ...
शब्द जैसे मन से स्वतः बह निकले हों ...
आस डूबती शाम की नदी में चप्पुओं जैसी आवाज़ ...
एक चाह जो झूलती है नाव जैसी ...
आतुर है किनारा छूने को ...
ढलती शाम से पहले ...
गहरा अहसास उपजता है रचना पढ़ने के बाद ... लाजवाब रचना ...
आदरणीय दिगम्बर जी . आप जैसे सशक्त रचनाकार की सराहना मेरा गर्व है | आपने इतना भावपूर्ण आकलन किया है रचना का जिसके लिए कोई आभार नहीं , बस मेरी शुभकमनाएं आपके लिए | सादर |
हटाएंबहुत सुंदर ! भावभीनी एवम् हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है यह आपकी रेणु जी |
जवाब देंहटाएंआपने अपना बहुमूल्य समय मेरे ब्लॉग को दिया , आभारी हूँ जितेन्द्र जी | रचना पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया इसकी सार्थकता की परिचायक है | पुनः आभार |
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना। इस रचना को पढ़ कर माँ का श्लोक याद आ गया जो वो नित्य पढ़तीं हैं:- ।।अनायसेन मरनम विना देहे न जीवनम देहावसने तव सनिद्ध्यम देहि मे परमेश्वरम।।
मैं जानती हूँ कि इस कविता के और भी भाव हैं जो मुझे स्पष्ट नहीं पर जन्माष्ठमी के अवसर पर बहुत सुंदर रचना पढ़ने को मिल गयी।
भगवान कृष्ण हम सब के सखा बन कर सदैव हमारे साथ रहें।
प्रिय अनन्ता , तुम्हारी ते बालसुलभ प्रतिक्रिया मुझे अभिभूत कर गयी | आपकी माँ ने आपकी जो परवरिश की है उसकी बानगी तुम्हारे सुंदर संस्कारों में दिखाई पड़ रही है | मुझे बहुत दुःख है मैं कभी संस्कृत ना पढ़ पायी | बस प्रातःकालीन प्रार्थनाओं तक मेरा ज्ञान सीमित है | तुम्हें ये रचना शायद कुछ साल बाद समझ आये , अभी नहीं | तुमने अपनी स्नेहिल , निश्छल प्रतिक्रिया से इसे ख़ास बना दिया | आभार क्या कहूं बस मेरी शुभकामनाएं और प्यार |
हटाएंआदरणीया मैम,
हटाएंआपका स्नेह अमूल्य है। यह आपका स्नेह ही है की आप हर समय मुझे प्रोत्साहित करतीं हैं। संस्कृत पढ़ने का अभ्यास हमें भी नहीं है, हम लोग वही श्लोक पढ़तें हैं जो मेरी नानी ने हम दोनों को सिखाया है। मेरी संस्कृत सीखने की इच्छा है। माँ कहतीं हैं की अभी समय अच्छा है पर ऑनलाइन सीखना कितना सही रहेगा, इस बात को ले कर असमंजस में हूँ।
मैं ने परसों ही अपनी कविता "स्वातन्त्र गाथा " डाली है। पहले भी डाली थी पर अब एडिट करके , उसके साथ साथ ऑडियो भी प्रस्तुत किया है जिस में मैंने अपनी कविता बोल क्र सुनाई है। मेरा अनुरोध है की उसे भी पढ़िए। थोड़ी लम्बी है पर फिर भी...
ह्रदय से आभार।
प्रिय अनन्ता, तुम्हें अपनी रचनाओं के लिए विशेष अनुरोध करने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। इन दिनों मेरा कंप्यूटर खराब है और दूसरे जरूरी कार्यों की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ पारही हूँ। तुम संस्कृत जरूर सीखो अगर सीख सकती हो तो। online अगर सीख सकते हो तो जरूर सीखो पर साथ में अपने आसपास किसी भी जानकार से मदद भी ले सकती हो। छात्र जीवन से उपयुक्त कोई समय नहीं है कुछ सीखने का और मैंने तुम्हारे ब्लॉग पर सब देख लिया है पर किसी कारणवश लिख नही पाई। एक दो दिन में आती हूँ। तुम्हें विशेष आग्रह की जरूरत नहीं। अब तुम ब्लॉग जगत का जाना- पहचाना नाम हो। सब स्नेही पाठक खुद आयेंगे तुम्हारे ब्लॉग पर और मैं भी। बस तुम्हें तो पाठकों का आदर- सत्कार करना है अपने ब्लॉग पर। हमेशा आगे बढती रहो यही कामना है।
हटाएंलाज़वाब।
जवाब देंहटाएंकैसे कर पाती हैं आप ऐसी रचनाओं का जन्म !!
प्रिय रोहित, रचना को मनोयोग से पढ़ने के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत अच्छा लिखती हैं आप । सृजन सतत प्रवाहित होना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंजी प्रिय अमृता जी,आजकल नियमित लेखन कर नही पा रही पर जल्द ही पुनः सक्रिय होने की कोशिश कर रही हूँ। हार्दिक आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियाओं के लिए ❤❤🙏🌹🌹
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