रेगिस्तान में आ यायावर
क्यों हुए तुम्हारे पलक गीले ?
रेतीले पथ पर कहाँ खोजता
खुशियों के बसंत सजीले !
ये असीम रेतीला सागर
तुझे क्या धीरज दे पायेगा ?
खुद है जो बेहाल प्यास से
तुझे क्या धीरज दे पायेगा ?
खुद है जो बेहाल प्यास से
कैसे शीतलता दे पायेगा ?
तुझको आगे बढ़ने ना देंगे
रेत के ऊँचे पर्वत , टीले !
तुझको आगे बढ़ने ना देंगे
रेत के ऊँचे पर्वत , टीले !
बारिश की बूँदें या आँसू
सब इसमें ज़ज़्ब हो जायेंगे .
सब इसमें ज़ज़्ब हो जायेंगे .
मरुधरा पर हरियाली के
कहाँ स्वप्न पनपने पायेंगे ;
बींध देंगे कोमल पांव तेरे
कहाँ स्वप्न पनपने पायेंगे ;
बींध देंगे कोमल पांव तेरे
ये राह के बबूल कंटीले !
कहाँ खोजता रेतीली राहों में -- खुशियों के रंग सजीले !
स्वरचित
चित्र गूगल से साभार --
रेगिस्तान ये एक ऐसा विषय है जिस पर मैं हर दम कुछ लिखना चाहता हूँ.
जवाब देंहटाएंया यूँ कहें कि मेरा सबसे प्रिय विषय में से एक है 'मरुधरा'...
आपने इसके एक पहलू पर बात कही है या रचना बनी है... बहुत खुबसुरत है.
छोटी सी कविता है नन्दकिशोर आचार्य जी की-
" एक बूंद भी भिगो सकती है
इस तपते मरुस्थल को -
छलक जो आये
आँखों से तुम्हारी
देख कर इस को
बस एक बूंद जल-
तुम्हारे ही कारण चाहे
वह हो गया हो मरुस्थल!
वाह प्रिय रोहित, आपका चिंतन और आचार्य जी की प्रस्तुत रचना बेमिसाल है | मैंने तो यूँ ही लिख दी , जबकि मरुस्थल केवल चित्रों में देखा है | पर आचार्य जी की रचना रेगिस्तान को तपन को मिटाती एक बूंद आसूं का स्तुति गान है | ये अप्रितम अनुराग को लक्षित कर लिखी गयी है | बहुत बहुत आभार इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए |🙏😊
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर, आपके आशीष के लिए सादर आभार और प्रणाम🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 19 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय भैया सादर आभार और प्रणाम🙏🙏
हटाएंबहुत बेहतरीन कविता। आभार और बधाई इन शब्दों में: -
जवाब देंहटाएं"फैले अम्बर के नीचे
प्यासी आकुल अवनि।
किया कपूतों ने माता के
दिल को छल से छलनी।
सूनी माँ की आंखों में
सपने सूखे-सूखे-से।
पड़े लाले प्राणों के प्राणी
तड़पे प्यासे-भूखे से।
उधर निगोड़ा सूरज भी
बस झोंके तुम पर आगी।
और कपट प्रचंड पवन का
रेत में ज्वाला जागी।
ताप पाप से दहक-दहक
धिप-धिप धँस गयी धरती।
परत-परत बे पर्दा करके
सुजला सुफला भई परती।
मत रो माँ, मरुस्थल में हम
अजर, अमर और जीवट।
जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा
कैर, बैर और कुमट।"
आदरणीय विश्वमोहन जी , मेरी रचना मात्र एक छोटा सा प्रयास थी , उससे कहीं बढ़कर है आपकी रचना | | इस रचना के माध्यम से धरती माँ की मानवजनित वेदना और उस वेदना पर मरहम रखते मरुधरा के जीवट वृक्षों के कथन का जो आपने शब्दांकन किया -- वह सराहना से कहीं परे है | स्वार्थी मानव के हाथों विराट वनसंपदा के समापन के पश्चात क्या पता जननी धरा के ये उपेक्षित
हटाएंसुत ही उसका अस्तित्व थाम लें | हार्दिक आभार इस भावपूर्ण अतुलनीय काव्यात्मक टिप्पणी के लिए जिसने मेरी साधारण सी रचना को असाधारण बना दिया | पुनः आभार और प्रणाम |🙏🙏
बहुत ही सुंदर रचना ,बधाई स्वीकारें ,नमस्कार
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी , आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर। हार्दिक आभार इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए 🙏🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-04-2020) को 'सबके मन को भाते आम' (चर्चा अंक-3677) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
अतुलनीय सहयोग के लिए आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार आदरणीय रवीन्द्र भाई🙏🙏
जवाब देंहटाएंये असीम रेतीला सागर
जवाब देंहटाएंतुझे क्या धीरज दे पायेगा ?
खुद है जो बेहाल प्यास से
कैसे शीतलता दे पायेगा ?
तुझको आगे बढ़ने ना देंगे
रेत के ऊँचे पर्वत , टीले !
वाह!सखी रेगिस्तान पर बहुत ही शानदार सृजन किया है आपने....।वहाँ की जीवटता का हूबहू सटीक शब्दचित्र !!!
सुन्दर सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई आपको।
सस्नेह आभार -- प्रिय सुधा जी | आपका स्नेह और सहयोग अनमोल है मेरे लिए |
हटाएंरेगिस्तान में आ यायावर --
जवाब देंहटाएंक्यों हुए तुम्हारे पलक गीले ?
रेतीले पथ पर कहाँ खोजता--
खुशियों के बसंत सजीले !
बहुत सुंदर सृजन, रेणु दी।
सस्नेह आभार -- प्रिय ज्योति जी | आपका सुखद सहयोग अनमोल है मेरे लिए |
हटाएंये असीम रेतीला सागर
जवाब देंहटाएंतुझे क्या धीरज दे पायेगा ?
खुद है जो बेहाल प्यास से
कैसे शीतलता दे पायेगा ?
बहुत ही सुंदर सृजन सखी
सस्नेह आभार -- प्रिय कामिनी | |
हटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंओंकार जी , सादर आभार है आपका |
हटाएंआपकी कलम से बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मुकेश जी | ये स्नेह बना रहे |
हटाएं
जवाब देंहटाएंये असीम रेतीला सागर
तुझे क्या धीरज दे पायेगा ?
खुद है जो बेहाल प्यास से
कैसे शीतलता दे पायेगा ?...
गहन भाव लिए थार से बातें करता अद्भुत चिन्तन । आपका लेखन मन को सरसता देने के साथ एक संदेश भी देता है । सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई प्रिय रेणु जी ! सस्नेह...
हार्दिक आभार प्रिय मीना जी |
हटाएंवाह ! क्या बात है ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है आदरणीया ! बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार है राजेश जी | बहुत दिन बाद आपको ब्लॉग पर देखकर बहुत अच्छा लग रहा है |
हटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंरेत के सागर में चाहे दूर दूर तक पीलापन दिखाई दे पर भावनाओं की नमी भी दिखाई देती है ... ये माना धीरज नहीं देता ... जज्ब कर लेता है हर बूँद पर जीवित रहता है प्यासा रह कर भी ... पर ये भी सच है की कोई इस पर पनप नहीं पाता ... जीवन शुष्क कर देता है ...
बहुत ही भावपूर्ण .... मन के दर्द को लिखा है इस रचना में ...
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार दिगम्बर जी। 🙏🙏🙏🙏
हटाएंमन के दर्द को लिखा है क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय संजय जी |
हटाएंबहुत अच्छी कविता है आपकी यह रेणु जी जिसे विविध संदर्भों में समझा जा सकता है, जिसकी विविध संदर्भों में व्याख्या की जा सकती है तथा जिसको विविध संदर्भों में ही अनुभूत भी किया जा सकता है क्योंकि संसार में मानवों के अपने-अपने मरूस्थल (एवं अपने-अपने मरूद्यान भी) होते हैं | सबके सुख भी अपने-अपने हैं, दुख भी अपने-अपने हैं |
जवाब देंहटाएंजी, जितेंद्र जी,आपने अपनी तरफ से रचना का जो सूक्ष्म विश्लेषण किया उसके लिये आभारी हूँ। सही है सबके अपने- अपने मरुस्थल होते हैंऔर मरुद्यान भी। सुख दुख की परिभाषा हरेक के लिए अलग अलग होतीहै आपने रचना का मान बढ़ाया,पुनः आभार 🙏🙏
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंप्रकृति से बहुत ही संवेदनशील संवाद। एक बहुत ही प्यारी कविता जिसके कई भावार्थ हो सकते हैं।
एक कि मरुभूमि उस संघर्ष के पथ का प्रतीक हैं, जहाँ केवल कठिनाई ही कठिनाई है और सुख या सफलता की आशा बहुत कम।
और वर्षा वह व्यक्ति जो उस पथ पर चलने का निर्णय लेता है।
दूसरा प्राकृतिक रूप से वर्षा और मरुधरा का सम्बंध।
तीसरा यह भी की मरुधरा वह व्यक्ति है जो स्वभाव वश या जीवन की कठिन परिस्थिति के कारण इतना निष्ठुर हो गया है कि किसी सकारात्मक घटना या व्यक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उसके निकट आते सब कुछ सूख जाता है।
बहुत ही सुंदर और मन को सन्देश देती हुई रचना । हृदय से आभार।
अब मैं ने आपको अपनी बक बक से परेशान कर दिया, अब मैं सोने जा रही हुँ, शुभ रात्रि।
प्रिय अनंता , इतनी सुंदर तो मेरी रचना भी नहीं जितनी सुंदर तुमने इसकी व्याख्या कर दी | , इतने भावार्थ तुम्हारी प्रखर मेधा के परिचायक हैं | तुम्हारे दिए मान सम्मान से अभिभूत हूँ |हमेशा खुश रहो और अनन्य साहित्य प्रेमी बनकर अपना अतुलनीय योगदान साहित्य को दो| मेरा प्यार |
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंसब से पहले तो देर से आने के लिये क्षमा माँगती हूँ। आपकी लिखी सारी बातें मेरे लिये आपका स्नेह है। वास्तव में आपकी रचना है ही इतनी सुंदर कि सरलता से सारी बातें समझा देती हैं। आशा है को जो विश्वास आपने मेरे प्रति दर्शाया है, उस पर खड़ी उतरूँ। क्या आप माँ शारदा से मेरी ओर से एक बात कहेंगी। उन से कहिये
वे मेरी कलम को निरन्तरता दें। भगवान जी मुझ से अच्छा तो लिखवा
देते हैं, परन्तु निरन्तर नहीं। आप कहेंगी तो माँ शारदे जल्दी सुनेंगी।
हृदय से आभार।
सस्नेह आभार प्रिय अनंता | तुम्हारी सारगर्भित प्रतिक्रिया रचना से कहीं सुंदर है |
हटाएंसुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय अमृता जी ❤❤🙏🌹🌹
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