न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे ,
खा -खा ठोकर जीवन -पथ पर
खुद संभलने दो मुझे !
बहुत दूर तक तुम ना
आ सकोगे साथ मेरे ,
शून्य मैं ,शिखर हो तुम
कब आ पाओगे हाथ मेरे ,
मरीचिका में व्यर्थ की
ना खुद को छलने दो मुझे !
बरसे थे बादल से तुम
थी तपती धरा - सी मैं ,
धधकने लगी और ज्यादा
हुई जो शीतल जरा -सी मैं ,
नियति से मिली अगन में
यूँ ही जलने दो मुझे !
पढ़ना खुद को शब्दों में मेरे
जो तुमसे तुम तक जाते हैं,
कहाँ सदा संग रहता कोई
क्षणभंगुर सब नाते हैं,
दूर छूटी तनहाइयों से
फिर से जुड़ने दो मुझे !
एकाकी रहने की जिद नहीं
ये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूँगी,
यही अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस गहरे भँवर से
अब निकलने दो मुझे !
चित्र - निजी संग्रह
ओह्ह दी.बेहद हृदयस्पर्शी, भावपूर्ण सृजन।
जवाब देंहटाएंबेहद लाजवाब।
स्मृतियों के सुनहरे धागों का एक छोर पकड़े हुए
अकेले चलना नियति नहीं स्वयं की पहचान की यात्रा की प्रगति है।
्ब्हुत अंतराल पर आपकी रचना पढ़ी दी।
सच में निःशबद हूँ इतने जीवंत भावों के स्पर्श से।
प्रणाम दी।
सादर।
तुम्हारी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार प्रिय श्वेता। पिछले दिनों की व्यस्ताएँ कुछ लिखने नहीं दे रही थी ।आशा है कुछ बाद सब नियमित होगा ❤❤🙏🙏🌹
हटाएंबरसे थे बादल से तुम ,
जवाब देंहटाएंथी तपती धरा - सी मैं ;
धधकने लगी और ज्यादा
हुई जो शीतल जरा -सी मैं
नियति से मिली अगन में
यूँ ही जलने दो मुझे
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे ..सुन्दर अभिव्यक्ति,
मन की वीथियों को धीरे-धीरे खोलती पंक्तियाँ..
कोई शिकवा नहीं.बस शिकवे के अहसासों में भिगोती पंक्तियाँ..
आपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार प्रिय जिज्ञासा जी। आपके प्रेरक शब्द अनमोल है ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंहृदयस्पर्शी कविता है यह रेणु जी ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार जितेंद्र जी🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 18 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका और मुखरित मौन का हार्दिक आभार
हटाएंप्रिय दिव्या जी ❤❤🙏🌹🌹
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
"कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
चर्चा मंच और आपका सस्नेह आभार प्रिय मीना जी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पांच लिंक मंच की आभारी हूँ प्रिय श्वेता।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर मन को छूने वाली रचना |
जवाब देंहटाएंसादर आभार आलोक जी। ब्लॉग पर आपका निरंतर आना मेरा सौभाग्य है🙏🙏🙏🙏
हटाएंकाफी दिनों बाद तुम्हे फिर से सक्रिय देख कितनी ख़ुशी हो रही है सखी,ये मैं शब्दों में नहीं बता सकती
जवाब देंहटाएंतुम लौट आई इस ब्लॉग की महफ़िल में इसके लिए दिल से शुक्रिया तुम्हारा
तुम्हारी कविता की तारीफ क्या करना, वो तो हमेशा से प्रशंसा से परे होती है
हाँ,चंद पंक्तियाँ
"पढ़ना खुद को शब्दों में मेरे
जो तुमसे तुम तक जाते हैं,
सदा कहाँ संग रहता कोई
क्षणभंगुर सब नाते हैं, "
जो जीवन सत्य है, इसे हमारा मन जितनी जल्दी स्वीकार ले उतना अच्छा
"मरीचिका में व्यर्थ की
ना खुद को छलने दो मुझे "
मरीचका में भटकना सचमुच व्यर्थ है,ढेर सारा स्नेह सखी
तुम्हारी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार सखी। तुम्हारा स्नेह अनमोल है 🌹🌹🙏❤❤
हटाएंनि:शब्द!!!
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार 🙏🙏
हटाएंएकाकी रहने की जिद नही
जवाब देंहटाएंये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस गहरे भंवर से
अब निकलने दो मुझे !
बहुत सुंदर रचना, रेणु दी।
आपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार ज्योति बहन ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंसांसारिक जटिलताओं से निकलकर खुद को पा लेने की..आत्मनिर्भरता को महसूस करने को प्रेरित करती आपकी रचना हृदय सुलभ है..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम आपको..
आपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार प्रिय अर्पिता जी।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार और अभिनंदन सुमन जी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय सर🙏🙏
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनंदन ओंकार जी🙏🙏
हटाएंवाह! रेणु बहन बहुत दिनों बाद आपकी रचना देखी, यूं तो पहले भी लाजवाब थे आप पर आज कुछ और चमक बढ़ गई है सितारों में,इतनी सुंदर प्रस्तुति है आपकी कि उस पर कुछ लिखना ...बस निशब्द।
जवाब देंहटाएंआत्मा के स्वरूप को समझने जब चल पड़ता है सच्चे मन से कोई तो ऐसे उदगार फूटते हैं जो खुद स्वर्णिम अक्षर में लिख दिए जाते हैं,यूं धीरे से दूर होना संसार से।
अद्भुत भाव सृजन।
प्रिय कुसुम बहन, आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया से रचना पर संतोष हुआ। आपके प्रेरक शब्दों में रचना के मर्म तक पहुँचने की क्षमता है। जीवन के अनुभव बहुत कुछ सिखा जाते हैं।हार्दिक आभार आपके मनोबल ऊँचा करते शब्दों के लिए🌹🌹🙏 ❤❤
हटाएंभावपूर्ण व हृदयस्पर्शी रचना शुभकामनाओं सह।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति मेरा सौभाग्य है। सादर आभार आपका 🙏🙏
हटाएंएकाकी रहने की जिद नही
जवाब देंहटाएंये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस गहरे भंवर से
अब निकलने दो मुझे !
सुंदर आशावादी एवं स्वाभिमानी रचना...
आपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार प्रिय शरद जी। मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका।
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार अनुराधा जी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन मन को छूते भाव।
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार अनीता जी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंकहीं न कहीं अकेले ही सफर तय करना होता है इंसान को
जवाब देंहटाएंठोकरे कुछ इंसानों को कमजोर भले ही करती हों लेकिन बहुत लोग उनसे मजबूत होना सीख ही जाते हैं
बहुत अच्छी प्रस्तुति
आपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार कविता जी 🌹🌹🙏❤❤
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंदीपक जी, हार्दिक अभिनंदन और आभार आपका 🙏🙏💐💐
हटाएंप्रिय रेणु, आपकी इस कविता को आपके ब्लॉग पर लौट लौट कर पढ़ा। इस रचना की गहराई को नापना मेरे शब्दों के बस का नहीं है। बस, निस्तब्ध हूँ। अपने भावों को शब्दों की सरिता में इसी तरह बहने दीजिए। बहुत सारे स्नेह के साथ।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना, ये आप सखियों का स्नेह है बस। सस्नेह आभार ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंएकाकी रहने की जिद नही
जवाब देंहटाएंये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस गहरे भंवर से
अब निकलने दो मुझे !,,,,,,,,बहुत ही गहरे भाव लिए आप की ये रचना
प्रिय मधुलिका जी, ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंबहुत सुंदर, लाजवाब
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मनोज जी 💐💐🙏💐💐
हटाएंखुद से ठोकर खाकर सीखना ही अनमोल पाठ है- उम्दा रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम और हार्दिक आभार समीर जी🙏🙏
हटाएंएकाकी रहने की जिद नही
जवाब देंहटाएंये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस गहरे भंवर से
अब निकलने दो मुझे !-------------बधाई
हार्दिक आभार संदीप जी |
जवाब देंहटाएंवाह...लाजवाब ❤️
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार रवींद्र जी।
हटाएंबहुत ही खूबसूरत और हिम्मत देने वाली पंक्ति!
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय मनीषा।
हटाएंआदरणीया मैम ,
जवाब देंहटाएंइतने दिनों बाद आपकी रचना पढ़ी, बता नहीं सकती कितनी ख़ुशी हो रही है मुझे।
अत्यंत भाव-पूर्ण करुण अनुभूतियों से भरी हुई रचना। माँ और नानी को भी पढ़ाया।
आपसे हम तीनों का अनुरोध है कि अपनी कविताओं की पुस्तक बनवा लें।
आपकी यह रचनाएँ मात्र कविताएं नहीं पर सुंदर और शाश्वत अनुभूतियाँ हैं।
हार्दिक आभार इस सुंदर रचना के लिए वआपको प्रणाम।
प्रिय अनन्ता इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत प्यार और शुभकामनाएं। और पुस्तक के विषय में जरूर सोचूँगी इस साल।
हटाएंहार्दिक प्रसन्नता हुई लेखनी की चमक देख कर । चरैवेति चरैवेति ... पुनः हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार अमृता जी।
हटाएंएकाकी रहने की जिद नही
जवाब देंहटाएंये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस गहरे भंवर से
अब निकलने दो मुझे...दीदी आप.इतना प्यारा कैसे लिख लेती हैं
प्रिय शकू , ये सब आप सब सखियों का स्नेह है | इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंभ्रम के इस गहरे भंवर से
जवाब देंहटाएंअब निकलने दो मुझे !
.......... सुंदर रचना,तमाम भावनाओं को समेटे हुए रेणु दी।
प्रिय संजय आभार और अभिनंदन।
हटाएंबहुत दूर तक ना तुम
जवाब देंहटाएंआ सकोगे साथ मेरे
शून्य मैं ,शिखर हो तुम
कब आ पाओगे हाथ मेरे ;
मरीचिका में व्यर्थ की
ना खुद को छलने दो मुझे
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे !
एक बार जब साथ छूट जाये भावनाओं के तार टूट जायें तो तो शून्य से शिखर तक दूर हो जाता है मन...फिर बार बार साथ का भ्रम और हाथ का यूँ छूटना सहने की शक्ति नहीं रहती...फिर मन यही कहता है
अकेले ही चलने दो मुझे
खा -खा ठोकर जीवन -पथ पर
खुद संभलने दो मुझे !
चरम और मर्म को छूती लाजवाब भावाभिव्यक्ति।
रचना का भावार्थ स्पष्ट करती स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी। आपका ब्लॉग पर सदैव अभिनंदन है।
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