व्हाट्सअप 'में मुस्काती माँ .
नयनों से लाड़ जताती माँ ,
खुरदरे हाथ उठा मानो
प्यार से सर सहलाती माँ!
कब आओगी ?कब आओगी ?
क्यों नित पूछा करती हो ?
दुनियादारी के झंझट अनगिन
इतना ही नहीं समझती हो !
बिन मेरे गृहस्थी की गाड़ी
एक दिन भी चल ना पाती माँ !
ले बैठी जिद बच्चों -सी
सब कुछ इतना आसान है क्या?
क्या-क्या है मेरी मजबूरी
माँ मेरी अनजान है क्या!
नदिया सा नारी का जीवन
प्रवाह संग बहती जाती माँ!
देख पाऊँ तुम्हें दूर से
यही बात कहाँ कम है ?
स्नेहामृत के प्राण ऋणी हैं
देख तुम्हें भीगा मन है ,
धीर बंधाते तभी तुझे ,
आँखें भर- भर आती माँ!
मेरी मुन्नी , मेरी लाड़ो,
बिटिया मेरी प्यारी तू ,
भले है अब बच्चों की माँ
पर मेरी राजदुलारी तू ,
रह-रह भूले नाम पुकारे
बचपन मेरा सहलाती माँ |
दूभर हुई साँझ जीवन की
जर्जर- सी देह काँप रही ,
जाने कैसी संभल रही है
साँसों की लय हाँफ रही ,
वक्त की आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!
बड़ी अच्छी और संवेदनशील कविता रची है रेणु जी आपने। आप स्वयं कम लिखती हैं, दूसरों को प्रोत्साहन अधिक देती हैं; यह आपका बड़प्पन है। यदा-कदा अपनी भी रचनाएं पोस्ट करती रहें, यही मेरा आग्रह है आपसे।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन जितेंद्र जी।🙏🙏
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन आदरणीय आलोक जी!🙏🙏
हटाएंहटाएं
रेणु दी, माँ की ममता और स्नेह को शब्दों में व्यक्त करना नामुमकिन है। फिर भी आपने इसे बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन ज्योति जी।🙏🙏💐
हटाएंअहा, जब वात्सल्य उमड़ता है तो लगता है कि सामने ही खड़ी है माँ। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन प्रवीण जी 🙏🙏
हटाएंदूभर हुई साँझ जीवन की
जवाब देंहटाएंजर्जर- सी देह काँप रही ,
जाने कैसी संभल रही है
साँसों की लय हाँफ रही ,
वक्त की आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!
अपनी संतान में जीवन का आलोक भरने में अहर्निश लगी माँ के अपने जीवन पथ की संध्या वेला का सजीव चित्र खिंचती अद्भुत पंक्तियाँ। अपनी भोली भाली बोली में विलक्षण शब्द चित्र खींचने में माहिर रेणुजी गागर में सागर भरने की कहावत को चरितार्थ करती हैं। बहुत सुंदर भाव। बधाई और आभार।
रचना के सूक्ष्मावलोकन और भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार और अभिनंदन विश्वमोहन जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंदूभर हुई साँझ जीवन की
जवाब देंहटाएंजर्जर- सी देह काँप रही ,
जाने कैसी संभल रही है
साँसों की लय हाँफ रही ,
वक्त की आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!रेणु जी आपने सुंदर भावों द्वारा एक मां और बेटी के रिश्ते को सुंदर लड़ियों में पिरो दिया है,बेटी और मां का रिश्ता इतना अनमोल और प्यारा होता है कि उसे पूरी तरह किसी को समझाया भी नही जा सकता,शब्दो में भी नही बांधा जा सकता,परंतु आपने संवाद शैली में मां के ममत्व को बहुत सहज और व्यावहारिक परिभाषा दी है, जब बेटियां अपनी जिम्मेदारियों में फंसी होती हैं और बुजुर्ग मां बाप को समय नहीं दे पाती, उस वक्त माता पिता और बेटी का रिश्ता बड़े ही दर्द भरे मोड़ से गुजरता है, हम सभी उस दर्द से गुजरते हैं,बहुत हृदय स्पर्शी शब्दचित्र। शुभकामनायें आपको ।💐💐🙏🙏
प्रिय जिज्ञासा जी, रचना के मर्म को छूती आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार।
हटाएंओह्ह्ह दी मन भींगा गयी आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंमाँ शब्द ही भावनाओं का मधुर और पवित्र ज्वार है जिसके स्पर्श से जीवन की साँसें सुकून पाती हैं।
माँ के आँचल से दूर होकर भी ममता की छाँव महसूस करती बेटियों के मन के उद्गार-
तेरे तन पर गढ़ियाती उम्र की लकीर
मेरी खुशियों की दुआ करती है
तू मौसम के रंगों संग घुल-घुलकर
मेरी मुस्कान बनकर झरती है
तेरे आशीष के जायदाद की वारिस
तेरे नेह की पूँजी सँभाल नहीं पाती हूँ
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
चाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।
----
प्रणाम दी
सप्रेम
सादर।
प्रिय श्वेता, मेरी रचना के अधूरे भावों को पूरा करती बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियां लिखी तुमने !इस मधुर काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार!
हटाएंबहुत सहृदयता से मन के भाव उकेरे हैं!!
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार और अभिनंदन अनुपमा जी।
हटाएंबेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंमनोजजी,सस्नेह आभार और अभिनंदन आपका।
हटाएंइस सृष्टि में नहीं है, प्रसव-पीड़ा सम कोई भी प्रीत।
जवाब देंहटाएंउससे ही दूर कर देना, विधना है कैसी तेरी यह रीत।।
इस चिंहुक के लिए क्या कहना जब शब्द ही चुप हो जाए । अति सुन्दर भाव सृजन ।
जी अमृता जी, इस अनुत्तरित प्रश्न से तो नारी सदियों से जूझ रही है। आत्मीय आभार आपकी भावपूर्ण काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए।
जवाब देंहटाएंइस बच्चे का ख्याल और वात्सल्य भाव से परिपूर्ण रचना ...... माँ के लिए बेटी हमेशा नन्ही ही रहेगी और बेटी जो स्वयं माँ बन चुकी है अपनी गृहस्थी में किस कदर फँस जाती है कि चाहते हुए भी पास नहीं आ पाती बस विडिओ कॉल पर देख एक दूसरे को ढाढस बँधा रहीं हैं . बहुत जीवंत और मर्मस्पर्शी रचना लिखी है .
जवाब देंहटाएंसस्नेह
प्रिय दीदी . अपने रचना के अंतर्निहित भाव को खूब पहचाना |आत्मीय आभार आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमाँ रूपी दिए की लौ तो तेल-बाती बिना भी दुःख के आंधी-तूफ़ान में खुशियों की रौशनी बिखेरती ही रहती है.
आदरणीय गोपेश जी , आभार और अभिनंदन आपका।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना सखी।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुराधा जी . सस्नेह आभार आपका |
हटाएंले बैठी जिद बच्चों -सी
जवाब देंहटाएंसब कुछ इतना आसान है क्या?
क्या-क्या है मेरी मजबूरी
माँ मेरी अनजान है क्या!
नदिया सा नारी का जीवन
प्रवाह संग बहती जाती माँ!
आँखें नम हो गयी पढकर रेणु जी! सब जानती है माँ फिर भी सानिध्य चाहती है अपनी बेटियों का.....
वक्त की आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!
शायद बुझने का डर होगा लौ को...बस इसीलिए...
चलो आज के जमाने ने व्हाट्सएप तो है वीडियो कॉल पर देख तो लेते हैं
बहुत ही भावपूर्ण हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।
जी सुधा जी , हम लोग निश्चित रूप से भाग्यशाली हैं जो हमने फोन के जरिये दूरियाँ मिटते देखी हैं पर कुछ पल का दूरदर्शन माँ जैसी हस्ती विशेष के लिए पर्याप्त कहाँ होता है ! | रचना के मर्म को छूती आपकी प्रतिक्रिया सदैव निशब्द करती है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्रिय श्वेता , पाठकों तक मेरी रचना पहुँचाने के लिए हार्दिक आभार |
हटाएं"देख पाऊँ तुम्हें दूर से
जवाब देंहटाएंयही बात कहाँ कम है ?" ... सच में जो काम हम अपने मन से गढ़े मानस-पटल पर कर के अपनों को क़रीब पाते थे, आज उसे विज्ञान ने सहज-सुलभ 'वीडियो कॉलिंग' के मार्फ़त ज्यादा आसान क्र दिया है .. वैसे भी अगर मन में प्यार लबालब भरा हो तो भौगोलिक दूरी मायने नहीं रखती शायद .. आस्तिकों को आस्था से सराबोर होकर जब अनदेखे भगवान भी दिख जाते हैं, तो फिर माँ के तो कोख़ की ही उपज होती है बेटी (या बेटा भी)..
(आपकी ये मार्मिक, संवेदनशील रचना मुझे माँ-बेटी की आपसी "वार्तालाप" के रूप में लगी, मैं सही हूँ या गलत ?)
सुबोध जी , रचना पर आपके इस स्नेहिल अवलोकन से अभिभूत हूँ | निश्चित रूप से ये रचना माँ बेटी के वार्तालाप के ही रूप में है |पिछले दिनों मेरी बहन ने हमारी अस्वस्थ माँ के साथ फोन पर हुए संवाद के बारे में बताया | हार्दिक आभार आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए | ब्लॉग प पर आपका सदैव अभिनन्दन है|
हटाएंवक्त की आँधी से लड़ती
जवाब देंहटाएंबुझती लौ सी लहराती माँ !!
–माँ का बेहद खूबसूरत चित्रण
–उम्दा रचना
प्रिय दीदी , हार्दिक आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का |
हटाएंबहुत ही भावात्मक और बहुत ही प्यारी रचना!
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार प्रिय मनीषा | !
हटाएंबहुत सुंदर मां की ममता सी अंतर्मन भिगो गई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार भारती जी | आपका सदैव अभिनन्दन है |
हटाएंमाँ की ममता उनकी उम्र के साथ बढ़ती जाती है अपनी संतानों के लिए । अंतस् को छूती अप्रतिम रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय मीना जी | आपका ब्लॉग पर सदैव स्वागत है |
हटाएं| बुढ़ी माँँ मेरी माँँ हम सबकी माँ |
जवाब देंहटाएंमाँँ आकृति के समान है जो जितनी पुरानी होती है उतनी किमती होती जाती है ।
माँँ की ममता सर्वोपरिय !
आभार और अभिनन्दन आतिश जी
हटाएंमां तो हमेशा मां ही रहती है,बच्चे चाहे जितने बड़े हो जाएं। मां का हृदय वह सरिता है जो कभी अपनी धार नहीं बदलती और न ही उसका जल कम होता है।
जवाब देंहटाएंमां पर लिखी गई कविताओं में एक खास स्थान है इसका।
सादर
हार्दिक आभार प्रिय अपर्णा | ब्लॉग पर आपको देखकर बहुत प्रसन्नता हुई |
हटाएंमाँ-बेटी का ये संवाद आँखें नम कर गई। माँ को तो शब्दों बंधा ही नहीं जा सकता पर उनकी यादें,उनकी बातों को जो तुमने शब्दों में रचा है वो सराहना से परे है ,अद्भुत सृजन सखी ,सादर
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी , रचना का मर्म तुमसे बढ़कर कौन समझ सकता है ? अत्यंत आभार सखी इन स्नेह भरे शब्दों के लिए |
हटाएंमाँ से जुड़ी हर बात निराली ही होती है ... माँ से संवाद, खुद ही दोनों तरफ बैठ कर दिया हुआ जवाब, उसमें भी माँ ही नज़र आती है ... सच में माँ का सम्बन्ध ऐसा ही की सोचते हुवे भी इंसान बच्चा हो जाता है ... मचल जाता है ...
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली रचना है ... बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति ...
आपका हार्दिक आभार आदरणीय दिगंबर जी |
हटाएंआदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना जिसे पढ़ते- पढ़ते आँखें भीग जातीं हैं । माँ और बेटी का सेहील संबंध बहुत ही विशेष होता है। माँ- बेटी एक दूसरे की सबसे अच्छी सहेलियाँ होतीं हैं और उन्हें एक- दूसरे की जरूरत भी सदा ही होती है। समय के साथ माँ और बेटी के इस गहरे होते संबंध और दोनों के बीच दूरी (न मिल पाने की विवशता ) बहुत ही भावुक कर देती है । आपकी यह रचना एक एवर्ग्रीन रचना है जिस में हर माँ और हर बेटी अपने आप को सहज ही देख सकेगी। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता , रचना पर तुम्हारे जैसी संवेदनशील पाठिका की भावपूर्ण प्रतिक्रिया किसी उपहार से कम नहीं | ढेरों प्यार और शुभकामनाएं तुम्हारे लिए |सदैव खुश रहो!
हटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनन्दन मुकेश जी |
हटाएंसुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक आभार सन्जु जी 🙏🙏
हटाएंनिशब्द रेणु बहन! आंखें नम कर दी आपने जैसे मेरे ही भाव है जो कभी लिख नहीं पाई कभी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी रचना।
हार्दिक आभार प्रिय कुसुम बहन 🙏❤
हटाएंदिल को छूती बहुत सुंदर रचना, रेणु दी।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार प्रिय ज्योति जी 🙏🙏
हटाएं