कहो शिव! क्यों लौट गए खाली
मुझ अकिंचन के द्वार से तुम ?
क्यों कर गए वंचित पल में,
करुणा के उपहार से तुम!
दावानल-सी धधक रही,
विचलित उर में वेदना!
निर्बाध हो कर रही भीतर
खण्डित धीरज और चेतना!
सर्वज्ञ हो कर अनभिज्ञ रहे,
मेरे भीतर के हाहाकार से तुम!
आए जब तुम आँगन मेरे,
क्यों न तुम्हें पहचान सकी!
तुम्हीं थे चिर-प्रतीक्षित पाहुन
थी मूढ़ बड़ी ,ना जान सकी!
क्यों ठगा मुझे यूं छल-बल से
भर गए क्षणिक विकार से तुम!
एक भूल की न मिली क्षमा,
कर-कर हारी हरेक जतन!
कैसे इस ग्लानि से उबरूं ?
बह चली अश्रु की गंग-जमन!
ये क्लांत प्राण हों जाएं शांत,
जो कर दो मुक्त उर-भार से तुम!
ॐ नमः शिवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंशिव से आज ऐसी शिकायत भला क्यों ? मन के उद्विग्न होने से ये ज़रूरी नहीं कि शिव तुमको उसी अवस्था में खाली छोड़ गए । क्यों कि मन के भावों को तुमने शब्दप्रवाह में बहने के लिए छोड़ दिया है तो अवश्य ही उर का हाहाकार शांत हुआ होगा ।
फिर भी एक भक्त ही भगवान से प्रश्न कर सकता है । गहन अभिव्यक्ति ।
प्रिय दीदी, आपकी इस त्वरित प्रतिक्रिया से मन को बहुत सुकून और खुशी मिली। उद्विग्नता की स्थिती में कुछ प्रश्न उमड़े और अभिव्यक्ति के रूप में सब लिखा गया। हार्दिक आभार आपकी स्नेहिल उपस्थिति का। प्रणाम और पुनः आभार 🌷🌷❤️❤️🙏
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आहत अन्तर मन की
जवाब देंहटाएंसादर आभार और प्रणाम आदरणीय आलोक जी। आपकी उपस्थिति सदैव विशेष है मेरे लिए 🙏🙏💐💐
हटाएंरेणु दी,जिनके मन में ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा होती है वो अपनी हर बात चाहे वह शिकायत ही क्यों न हो ईश्वर से ही शेयर करते है। दी सच मे हम कोई बात जब ईश्वर से शेयर करते है न तब दिल को एक अलग ही तरह का सकून मिलता है। यह मैं अपने अनुभव से कह सकती हूँ।
जवाब देंहटाएंआपने तो अपनी व्यथा को शब्दों का अमली जामा भी पहना दिया तो अवश्य ही अब आपका मन शांत हो गया होगा। ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि आप हमेशा हंसती रहे। एक बार मेरे कहने पर हंसिए न। अं ह ऐसे नहीं खुल कर। हैं ऐसे।
प्रिय ज्योति जी, आपकी इस स्नेहिल थपकी से मन भीग गया। आपने सच कहा, कि अपनी व्यथा ईश्वर से साझा करने के बाद बहुत सुकून मिलता है। आपकी उपस्थिति और स्नेह से मन को बहुत अच्छी अनुभूति हुई। और निश्चित रूप से एक हंसी आती फूट पड़ी अंतर्मन से😀😀😀😃 बहुत-बहुत आभार इस आत्मीयता के लिए 😀😀❤️🌷🌷🙏
हटाएंइश्वर के प्रति समर्पण ही ऐसी भावना को जन्म देता है ... उसके प्रति प्रेम, क्षोभ, सुख, दुःख सब खोल के रख देता है इंसान ... उसकी शिकायत भी उसी से, अपनी शिकायत भी उसी से ...
जवाब देंहटाएंयही तो शिव हो जाना है ...
हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका दिगम्बर जी।🙏🙏🌷🌷
हटाएं
जवाब देंहटाएंजटा में गंगा खाती बल है।
नंदीश्वर, नीरज, निर्मल हैं।।
विषधर कंठ बने माला हैं।
ग्रीवा गिरीश गरल हाला हैं।।
भक्त पुकारे मन डोले हैं।
अनिरुद्ध, अभदन भोले हैं।।
ॐ कार की उमा काया हैं।
शिव तो बस उनकी छाया हैं।।
पार कराते सागर भव से।
हो जाते शक्ति बिन शव-से।।
मुख मद्धिम न करो भवानी।
अर्द्धनारीश्वर औघड़ दानी।।
तुम श्रद्धा विश्वास हैं अंतक।
अर्हत, अत्रि, अनघ, परंतप।।
गौरी से शंकर नहीं छूटेंगे।
भोले भला तुमसे रूठेंगे!!
आदरणीय विश्वोहन जी, आपकी उपस्थिति और भगवान शिव को समर्पित इस भावमयी काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए क्या लिखूं?? निशब्द हूं! इतनी सुन्दर और भावपूर्ण शिव-अभ्यर्थना के लिए हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका 🙏🙏💐🌷
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4351 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
दिलबाग
हार्दिक आभार चर्चा मंच और दिलबाग जी।💐💐🌷💐🙏
हटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण कविता !
जवाब देंहटाएंभोले भंडारी में दया, क्षमा और भक्तों के प्रति अपार ममता है.
फिर कवि-ह्रदय भक्त पर तो उनका वरद-हस्त सदैव रहेगा.
जी गोपेश जी, आप जैसे उदारमना लोगो से मिलना भी आदिशिव की कृपा ही है। कोटि आभार आपका 🙏🙏
हटाएंभावों से ओतप्रोत बहुत ही भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और प्यार प्रिय मनीषा 🌷🌷❤️❤️
हटाएंआए जब तुम आँगन मेरे,
जवाब देंहटाएंक्यों न तुम्हें पहचान सकी!
तुम्हीं थे चिर-प्रतीक्षित पाहुन
थी मूढ़ बड़ी ,ना जान सकी!
क्यों ठगा मुझे यूं छल-बल से
भर गए क्षणिक विकार से तुम... वाह!बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय रेणु दी।
सादर
शुक्रिया और आभार प्रिय अनीता 🌷🌷❤️🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुक्रिया और आभार प्रिय श्वेता 🌷🌷❤️🙏
हटाएंबेहद उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंआभार और प्रणाम प्रिय दीदी 🙏🙏🌷🌷❤️❤️
हटाएंएक भूल की न मिली क्षमा,
जवाब देंहटाएंकर-कर हारी हरेक जतन!
कैसे इस ग्लानि से उबरूं ?
अप्रतिम
सादर...
हार्दिक आभार और प्रणाम दीदी 🙏🙏
हटाएंकहो शिव! क्यों लौट गए खाली
जवाब देंहटाएंमुझ अकिंचन के द्वार से तुम ?
क्यों कर गए वंचित पल में,
करुणा के उपहार से तुम!
भगवान शिव को समर्पित भक्तिमय भावपूर्ण कृति ।
मीना जी ,आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ 🙏🙏
हटाएंहृदय को द्रवित करती हुई आर्त्त पुकार अवश्य सुनी जाती है। श्रद्धा से आप्लावित भाव तिरोहित हो रहा है। अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और प्यार प्रिय अमृता जी 🙏🙏
हटाएंकहो शिव! क्यों लौट गए खाली
जवाब देंहटाएंमुझ अकिंचन के द्वार से तुम ?
ये पहली दो पंक्तियां मुझे आश्चर्य से भर गई रेणु बहन ।
योगीश्वर द्वार तक आ गये की अनुभूति मात्र ही अलख आनंद है, फिर कैसे स्वयं को
विचलित या विकार से पीड़ित मानते हो आप, योगीश्वर तो योगेश्वर बाल कृष्ण के द्वार पर गये थे उनके दर्शन करने ,वरना तो भक्त ही उन तक दौड़ लगाते हैं। जिस द्वार शिव आजाए चाहे पहचानों या न पहचानोगे अनंत कल्याणकारी है कि उन दो आंखों ने उनको देखा है।
पता नहीं क्या लिख गईं हृदय स्पर्शी रचना आपकी पढ़कर।
वेदना से प्रस्फुटित शब्द गहन हृदय तक उतरते।
प्रिय कुसुम बहन,योगेश्वर को पहचानने में जो आँखें विफल रह जाएँ,उनका पश्चाताप क्या कभी कम हो सकता है? हार्दिक आभार मन को छूती हुई इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए 🙏❣
हटाएंआध्यात्मिकता से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचना। बहुत बधाई रेणु जी ।
जवाब देंहटाएंमेरी पंक्तियां इस सुंदर सृजन को समर्पित हैं 👏💐
वक्ष पे ओढ़े हुए है वो दुशाला
अंग में भस्मी लपेटे सा दिखे
अलख सी जलने लगी, चारों दिशा में
शंखध्वनि करताल भी बजने लगे ।
डम डमा डम डमरुओं के मधुर धुन पे
झूम कर के नृत्य सब करने लगे ।।
गूंजती आवाज़ मेरे कान में,
आ गए तिरकाल दर्शी द्वार मेरे ।
देखते वो नयन भर सर्वस्व मेरा
बंद आँखें हम उन्हें कैसे निहारें ।।
उठ रही हूं गिर रही हूं लड़खड़ा के
भागती हूं खोल आंखें दरस को ।
आज कैसा दिव्य दर्शन दे रहे प्रभु
भर नहीं पाऊं मैं झोली में सुयश को ।।
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प्रिय जिज्ञासा जी,आपकी भावपूर्ण शिव वन्दना मूल रचना से कहीं बेहतर है।निशब्द हूँ आपकी आशु-लेखन प्रतिभा के समक्ष।कोटि-कोटि धन्यवाद और आभार इस काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए।विलम्बित प्रतिउत्तर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ❣🙏
हटाएंसघन पीड़ा में भी, तुमपर से न डिग सका विश्वास
जवाब देंहटाएंप्रश्न पूछता है हृदय हजार, नाम जपती शिव ही श्वास
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प्रिय दी,
आपकी रचना पढ़कर हर बार निःशब्द ही लौट गयी..बेहद उद्विग्न मन की आर्त अभिव्यक्ति जो शब्दशः महसूस हो रही।
सस्नेह प्रणाम।
अखण्ड विश्वास से भरी बहुत सुन्दर और भावपूर्ण पंक्तियाँ प्रिय श्वेता। हार्दिकआभार और स्वागत ❣
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनंदन मुकेश जी 🙏🙏
हटाएंमन की उद्विग्नता को शिव को ही सौंप दीजिए। वे स्वयं हलाहल पीकर जगत को अमृत बाँटते हैं। गंगा का भार जटा में धारण कर लेते हैं ताकि वह भागीरथी आसानी से धरती पर प्रवाहित हो सके एवं मानव मात्र का उससे कल्याण ही हो, कोई हानि ना हो। यदि किसी पीड़ा में डूबकर आपने महादेव को याद किया है, तो वह पीड़ा, वह व्याकुलता तो गई समझो।
जवाब देंहटाएंशिव ही जानें शिव की माया!!
प्रिय मीना, यही कोशिश कर रही हूँ। सच है कि शिव ही जानें शिव की माया! हार्दिक आभार इस भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए 🙏❣
जवाब देंहटाएंसही कहा मीना जी ने शिव ही जाने शिव की माया...
जवाब देंहटाएंफिर भी शिव सत्य और सुन्दर सभी रूप एक साथ लिए पधारेंगे फिर कभी आँखें धोखा नहीं खा सकेंगी जिस द्वार में इतना स्वागत और सम्मान हो जिस मन में इतनी आस्था और प्यार हो वहाँ तो शिव स्वयं विराजमान हो जाते हैं बस धैर्य से प्रतीक्षा करनी हैं बाकी सब शिव सम्भालेंगे...
भालविभोर करता लाजवाब सृजन।
प्रिय सुधा जी,आपकी वाणी माँ शारदे की प्रिय सुता की वाणी है ।बस यही प्रार्थना है शिव विकल हृदयों की पुकार सुनें।अत्यंत आभार आपकी आत्मीयता भरी प्रतिक्रिया का 🙏❤
हटाएंशिव जी ने निराश किया हो लगता नहीं फिर भी भक्त भगवान से निवेदन तो कर ही सकता है सुंदर निवेदन।🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विमल भाई 🙏
हटाएंक्यों कर गए वंचित पल में,
जवाब देंहटाएंकरुणा के उपहार से तुम!
भगवान शिव को समर्पित भक्तिमय भावपूर्ण कृति ।
हार्दिक आभार और शुभकामनाएँ प्रिय संजय।
हटाएंआदरणीया मैम, ब्लॉग जगत पर वापसी आपके ही ब्लॉग से शुभारंभ किया है । सच कहूँ तो मन आनंदित है, आपकी ब्लॉग पर इतने दिनों बाद आ कर । आपकी यह रचना मेरी प्रिय रचनाओं में से एक है । मैं इसे बार-बार पढ़ती हूँ । इतनी सुंदर परंतु व्याकुल मनोदशा से की गई स्तुति पढ़ कर हेक तरफ होंठों पर मुस्कान भी आती है और आँखें भीग भी जाती हैं । जब मन दुखी होता है, तब ऐसा लगता है की भगवान जी हमसे रूठ गए हों , पर आपके शिव- शंभू आपसे कैसे रूठ सकते हैं भला ।भगवान जी कभी आपके द्वार से लौट नहीं सकते, वे चुपके से आपके घर और हृदय में घुस गए होंगे और आपको पता भी नहीं चला होगा।
जवाब देंहटाएंआपको मेरा प्रणाम और इतनी सुंदर रचना पढ़ाने का आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता, तुम्हारी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आभार शब्द कहाँ पर्याप्त है! कई बार कोई शिव रूप में जब द्वार पर आता है तो हम मूढ प्राणी उसे पहचान ही नहीं पाते हैं।शेष तो ईश्वर की माया वो ही जाने।हार्दिक स्नेह।हमेशा खुश रहो ♥️
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