'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
मेरी प्रिय मित्र मंडली
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशेष रचना
आज कविता सोई रहने दो !
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...

आन मिले अनजान पथिक-सा
जवाब देंहटाएंसाथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
विरह के आनंद में बह जाता
बन कर अंसुवन धारा !....
प्रिय रेणु, प्रेम की दो अवस्थाएँ जैसे चित्र में दिखाई गई हैं, उनसे आपकी कविता ने संपूर्ण न्याय किया है। मैंने भी इसी चित्र को देखकर कल कुछ लिखने की कोशिश की थी परंतु लिखना कुछ था और लिखा कुछ और !!!
प्रेम के सुकोमल, सरल, सहज रूप को चित्रित करती मन छू जानेवाली कविता। बहुत सारा स्नेह आपको।
प्रिय मीना, आपकी प्रतिक्रिया से अपार हर्ष हुआ।अनायास लिखा गया और मन यहाँ प्रकाशित करने का हो आया।हर किसी के अपने भाव होते हैं।आपसे मेरा आग्रह है कि आप वो रचना अवश्य पूरी करें।हार्दिक आभार और प्यार ♥️
हटाएंअद्भुत लेखन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार है आपका।कृपया अपना नाम भी लिखें ताकि मैं अपने प्रिय पाठक के बारे में कुछ जान सकूँ।
हटाएंचित्र के भावों को शब्दों में उतार दिया है । प्रेम किसी बंधन को स्वीकार नहीं करता , अपनी राह बनाता जाता है भले ही किसी और की राह अवरुद्ध हो जाये ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन ।
आपकी प्रतिक्रिया से सन्तोष हुआ प्रिय दीदी।हार्दिक आभार और प्रणाम 🙏🙏
हटाएंव्वाहहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंशानदार भाव दे दिया आपने चित्र को
इस अफगानीस्तानी चित्र के दिन बदल गए
आभार
आपकी वाह मेरा सौभाग्य है।हार्दिक आभार और प्रणाम प्रिय दीदी 🙏🙏
हटाएंविरह के आनंद में ....
जवाब देंहटाएंअद्भुत। .... बहुत सुन्दर भाव
जय श्री कृष्ण जी !
ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है तरुण जी।राधे-राधे 🙏🙏
हटाएंनायाब सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत- बहुत शुक्रिया प्रिय मनोज 🙏🌹
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार प्रिय श्वेता
हटाएंप्रेम के रूप अनेक
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय कविता जी 🙏🌹
हटाएं
जवाब देंहटाएंआन मिले अनजान पथिक-सा
साथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
विरह के आनंद में बह जाता
बन कर अंसुवन धारा !
वाह!!!
चित्राभिव्यक्ति कमाल की है रेणु जी ! इस चित्र पर इससे बे तर और क्या लिखा जा सकता है , निःशब्द हूँ मै तो आपकी रचना से...
लाजवाब बस लाजवाब।
विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय सुधा जी 🌹🌹
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका देवेन्द्र जी 🙏
हटाएंमीठा ना तुझसा छ्न्द कोई.
जवाब देंहटाएंना बाँध सके अनुबंध कोई!
उन्मुक्त गगन के पाखी-सा ,
सह सकता नहीं प्रतिबंध कोई
प्रेम के स्वरूप को परिभाषित करती अत्यंत सुन्दर कृति । लाजवाब चित्राभिव्यक्ति प्रिय रेणु जी !
विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ मीना जी।🙏🌹
हटाएंआन मिले अनजान पथिक-सा
जवाब देंहटाएंसाथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
सही कहा "सबके हिस्से कहां आता है ये"
और "प्रेम" की अभिव्यक्ति इतने सरल और सहज शब्दों में तुमसे अच्छा कोई कर भी नहीं सकता सखी, हमेशा की तरह लाजबाव सृजन
सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय सखी🌺🌹🌹❤
हटाएंवाह! रेणु बहन प्रेम जैसे अबूझ तत्व को अपने सहजता से भावना की डोरी में मोतियों सा पिरोया है।
जवाब देंहटाएंहृदय को आलोडित करता सुंदर सार्थक सृजन।
बस अहा!!
सस्नेह।
हार्दिक आभार प्रिय कुसुम बहन🙏🌹
हटाएंवाह!प्रिय सखी रेणु ,बहुत खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय शुभा जी 🙏🌹
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हार्दिक आभार प्रिय दीदी 🙏🌹🌹
हटाएंआत्मिक प्रेम की आभा बिखराता सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय अनीता जी 🙏🌹
हटाएंप्रिय रेणु दी, चित्र देख कर उस पर अपने भाव प्रगट करना एक असाध्य सा कार्य है। आपने इस कार्य को बहुत ही खूबसूरती से अंजाम दिया है। प्रेम के8 अभिव्यक्ति बहुत ही सरल और सुंदर शब्दो मे की है आपने। बहुत बढ़िया दी।
जवाब देंहटाएंआपके प्रेरक शब्दों के लिए आभार आपका प्रिय ज्योति जी 🙏🌹
हटाएंप्रेम तो शाश्वत है रहता है किसी न किसी रूप में …
जवाब देंहटाएंये है तो बहता समीर है, साँस है …
बखूबी प्रेम में इस आलौकिक संसार को शब्दों में बांधा है आपने …
स्वागत और आभार दिगम्बर जी 🙏
हटाएंकिसी भी चित्र को देखने के पश्चात मन में कोई न कोई भाव हर किसी को आते हैं, पर उनको शब्दों में पिरोना आसान नहीं। आपने अनोखे शब्दों से इस चित्र को काव्य में पिरो दिया।
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन !!
आभार और अभिनन्दन प्रिय रूपा जी 🙏🌹
हटाएंप्रभावी अभिव्यक्ति, बधाई आपको
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सतीश जी 🙏🌹
हटाएंशब्दातीत, कालातीत,
जवाब देंहटाएंज्ञानातीत तू ही!
इश्क मुर्शिद का तुझसे,
राधा की प्रीत तू ही !
चमक रहा कब से क्षितिज पे
बनकर ध्रुव तारा!
. जितना सुंदर गीत, उतना ही सुंदर शब्द शौष्ठव और भाव है।
चित्र पर बेहतरीन भावाभिव्यक्ति है, चित्र पर लिखना आपके गहन अवलोकन और अनुभूति को दर्शाता है, जिसमें आप सफ़ल रही हैं ,बहुत सुंदर सार्थक रचना के लिए बधाई।
नव वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई प्रिय सखी 🌹🌹❤️❤️
आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय जिज्ञासा जी 🌹🌹
हटाएंआन मिले अनजान पथिक-सा
जवाब देंहटाएंसाथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
अदृश्य और अरूप, प्रेम का सच्चिदानंद स्वरुप! वाह!!! अप्रतिम और पूज्य भाव। नमन!!!
हार्दिक आभार और प्रणाम आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏
हटाएंलाजवाब सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक अभिनन्दन है प्रिय मनोज |
हटाएं