ब्लॉग की सातवीं वर्षगाँठ पर मेरे स्नेही पाठकों को कोटि आभार और प्रणाम जिन्होंने मुझे विगत साल में ब्लॉग पर सक्रिय ना होने पर भी खूब पढ़ा |आप सब के स्नेह की सदैव ऋणी हूँ |🙏🙏🌹🌹
मौन तोड़ हो रही गुँजित
जो अवनि और अम्बर में ,
कहो कोकिल!पीर कौन
छिपी तुम्हारे स्वर में !
गाती हो अनुराग-राग
या फिर विरह का गीत कोई?
अहर्निशं मथती जाती कदाचित
विस्मृत अधूरी प्रीत कोई !
गाती जाती बस अपनी धुन में
ना कहती कुछ उत्तर में !
नज़र ना आता नीड़ कोई
गपचुप करती सब क्रीड़ा
क्या बाँटती चतुर्दिश, ओ पगली !
बेघर होने की पीड़ा?
क्यों ना मिल पाया तुम्हें बसेरा
सृष्टि के प्रीतनगर में ?
अबूझ तुम्हारी व्यथा कथा
कोई भी समझ नहीं पाता!
क्यों हर कोई तुम्हारे सुरीले
इस गायन में खो जाता ?
पीर भरी ये प्रचंड लहरी
भरती स्पंदन पत्थर में !
जब अमराई बौराती तो
तुम पंचम -सुर में गाती !
ये तान तुम्हारी अनायास
बिरहन का मन मथ जाती !
तपता मनुवा प्रेम अगन में
धीर धरता न किसी पहर में !
कहो कोकिल!पीर कौन
छिपी तुम्हारे स्वर में !
चित्र गूगल से साभार
