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मंगलवार, 9 जुलाई 2024

कहो कोकिल!



ब्लॉग की सातवीं   वर्षगाँठ पर मेरे स्नेही पाठकों को कोटि आभार और प्रणाम जिन्होंने मुझे  विगत  साल में ब्लॉग पर सक्रिय ना होने पर भी खूब पढ़ा |आप सब के स्नेह की सदैव  ऋणी हूँ |🙏🙏🌹🌹



मौन तोड़ हो रही गुँजित
जो अवनि और अम्बर में ,
कहो कोकिल!पीर कौन 
छिपी तुम्हारे स्वर में !

 गाती हो अनुराग-राग 
या फिर विरह का गीत कोई?
अहर्निशं मथती जाती कदाचित 
विस्मृत अधूरी प्रीत कोई !
गाती जाती बस अपनी धुन में
ना कहती  कुछ उत्तर में !
 

नज़र ना  आता नीड़ कोई 
गपचुप करती  सब क्रीड़ा
क्या  बाँटती चतुर्दिश, ओ पगली !
बेघर होने की पीड़ा?
क्यों ना मिल पाया तुम्हें  बसेरा 
सृष्टि के प्रीतनगर में ?
 

 

अबूझ तुम्हारी व्यथा कथा 
कोई भी   समझ नहीं पाता!
 क्यों हर कोई तुम्हारे सुरीले 
 इस गायन में खो जाता ?
 पीर भरी ये प्रचंड लहरी 
 भरती स्पंदन पत्थर में !
 

  जब अमराई   बौराती तो 
  तुम पंचम -सुर में गाती !
 ये  तान तुम्हारी अनायास
बिरहन का मन मथ जाती !
 तपता  मनुवा  प्रेम अगन में
धीर धरता  न किसी पहर में !
कहो कोकिल!पीर कौन 
छिपी तुम्हारे स्वर में !


चित्र  गूगल से साभार 

 




 

20 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक बधाई और अशेष मंगल कामनाएँ!! कोकिल की गूँज जीवन के प्रांगण में गूँजती रहे!!!

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    1. आपकी उपस्थिति और आशीष के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विश्वमोहन जी🙏

      हटाएं
  2. आपका एक सुदीर्घ अंतराल के उपरान्त पुनः ब्लॉग पर सक्रिय होना आपके असंख्य प्रशंसकों हेतु एक शुभ सूचना है। आशा है, आप सकुशल हैं तथा आपकी पुस्तक को भी वह सफलता प्राप्त हुई है जिसकी वह अधिकारिणी है। प्रस्तुत कविता भावपूर्ण एवं अति-सराहनीय है, इसमें सन्देह नहीं।

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    उत्तर
    1. जी जितेंद्र जी हार्दिक स्वागत है आपका! आपकी उत्साहित प्रतिक्रिया आहलादित् कर गई! धीरे धीरे ब्लॉग पर सक्रिय होने की कोशिश कर रही हूँ! आशा है आप सबका सहयोग रहेगा 🙏

      हटाएं
  3. लिखते रहें.. शुभकामनायें

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  4. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं सखी ! आज लम्बे समय बाद आपके अप्रतिम लेखन का आस्वादन एवं क्षितिज की रौनक से मन आल्हादित है ।बहुत ही लाजवाब लिखा है आपने ।
    नज़र ना आता नीड़ कोई
    गपचुप करती सब क्रीड़ा
    क्या बाँटती चतुर्दिश, ओ पगली !
    बेघर होने की पीड़ा?
    क्यों ना मिल पाया तुम्हें बसेरा
    सृष्टि के प्रीतनगर में ?
    ये पंक्तियां तो दिल को छू गई । शायद यही नियति है कोकिल की ।
    इंतजार रहेगा आपकी अगली रचना का ...बस अब लौट आओ सखी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उत्साहवर्धक प्रति क्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय सुधा जी! रचना का मर्म आपसे बेहतर कौन समझ सकता है! कोशिश कर रही हूँ कि ब्लॉग पर नियमित रूप से आ सकूँ 🙏

      हटाएं
  5. अति मनमोहक , इतनी सुरीली तान से ब्लॉग जगत गुंजित हो उठा है दी।
    आपकी अनुपस्थिति ने मंचों मेऔ व्याप्त उदासीनता और नीरवता को और
    गहन कर दिया है। दी फिर से सक्रिय हो जाइये न।
    सस्नेह प्रणाम।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता, पांच लिंक मंच के साथ तुम्हें भी हार्दिक आभार या! ईश्वर ने चाहा तो ब्लॉग पर नियमित लेखन होता रहेगा! तुम्हें रचना अच्छी लगी मुझे संतोष हुआ! 🌹🌷🌷🌹

      हटाएं
  6. सर्वप्रथम आपको बधाई।
    आपकी रचनाएं अप्रतिम होती है बहन
    आप लिखते रहिए शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके उत्साह भरे शब्दों से अपार हर्ष हुआ अभिलाषा जी! हार्दिक आभार आपका! 🙏

      हटाएं
  7. बहुत बहुत शुभ कामनाएं, बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  8. स्वागत और आभार आदरणीय डॉ साहब🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहद सुंदर सृजन
    और ढेरों शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  10. आभार और अभिनंदन प्रिय भारती जी🙏

    जवाब देंहटाएं

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