मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

फागुन में उस साल-- कविता |

फागुन    में  उस  साल
फागुन मास   में उस साल 
मेरे आँगन की क्यारी में ,
हरे - भरे चमेली के पौधे पर  
 नज़र आई थी जब ,
शंकुनुमा कलियाँ
पहली बार !
तो ,मैंने कहा था कलियों से चुपके से  
"कि चटकना उसी दिन
और खोल देना गंध के द्वार ,
जब तुम आओ  !''
आकाश में भटकते ,
आवारा काले बादलों से गुहार 
लगाई थी मैंने  ,
'' हलके से बरस जाना !
जब तुम आओगे,
और शीतलता में बदल देना
आँगन की उष्मता की हर दिशा को - - -''
अचानक !एक दिन खिलखिलाकर  
हँस पड़ी थीं चमेली की कलियाँ ,
और आवारा काले बादल  
लग गये थे - -- 
झूम - झूम कर बरसने !
देखा तो, द्वार पर तुम खड़े थे 
मुस्कुराते हुए ! 
जिसके आने की आहट  
मुझसे पहले  
जान गए थे ,
अधखिली कलियाँ और आवारा बादल  ,
जैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं 
धूप में भी आने वाली 
बारिश का पता
और नहाने लग जाती हैं
सूखी रेत में--------- !!

स्वरचित --रेणु

 चित्र --  गूगल  से साभार |---------------

   ****अनमोल  टिप्पणियाँ  --  गूगल  से साभार *****

 तो मैंने कहा था कलियों से चुपके से -



 







कृष्ण राघव
15 फरवरी 2017
प्रिय रेणु , तुम्हारी योग्यता पर मुझे कभी संदेह नहीं रहा किन्तु इस बार तो तुमने कमाल ही कर दिया. बिना लाग- लपेट के कहूँ तो ये बड़ी ही उत्कृष्ट और उच्चकोटि की कविता है. बधाई और आशीष!



64 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है। जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"

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    1. प्रिय ध्रुव -- आपका सहयोग अनमोल है | सस्नेह आभार |

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  2. जय मां हाटेशवरी....
    हर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
    दिनांक 020/02/2018 को.....
    आप की रचना का लिंक होगा.....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर......
    आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....

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    1. आदरणीय कुलदीप जी -- आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन | आपके सहयोग के लिए सादर आभार |

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  3. बहुत सुन्दर रेनू जी. खासुल-ख़ास मेहमान का खैर-मक़दम हो तो बस इस तरह !

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    1. आदरणीय गोपेश जी -- सादर आभार और नमन आपको |

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  4. जैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं -
    धूप में भी आने वाली -
    बारिश का पता
    और नहाने लग जाती हैं
    सूखी रेत में--------- !!!!!!!!!!!------ वाह! सुन्दर!!!

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    उत्तर
    1. आदरणीय विश्वमोहन जी -आपके शब्द अनमोल हैं | सदर आभार |

      हटाएं
  5. रेणु जी, अत्यन्त सुन्दर भावों से युक्त सुन्दर सी रचना.

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  6. मैंने कहा था कलियों से चुपके से -
    "कि चटकना उसी दिन
    और खोल देना गंध के द्वार ,
    जब तुम आओ !
    बहुत सुंदर ! इंतजार की विकलता और पाने का विश्वास, दोनों ही भावनाओं का खूबसूरत चित्रण ! प्यारी अभिव्यक्ति।

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    1. प्रिय मीना बहन -- रचना के आंतरिक भावों की सार्थक समीक्षा के लिए सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
  7. बेहद खूबसूरत रचना
    मन को भा गई ....शानदार

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  8. देखा तो द्वार पर तुम थे
    मुस्कराते हुए!!!!
    वाह!!!!
    बहुत खूबसूरत... मनमोहक रचना...

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    1. आदरणीय सुधा जी -- आपके स्नेह के लिए सादर आभार |

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  9. आदरणीय रेनू दी , इतनी सुन्दर कविता और इतने सुंदर भाव। प्रतीक्षा के कितने कोमल भाव। कविता पढ़ कर दरवाजे पर उनके आने का दृश्य साक्षात् हो गया।
    बहुत सुंदर बिम्ब संयोजन। लाज़वाब।
    सादर

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    1. प्रिय अपर्णा | आपके स्नेह भरे शब्द मेरे लिए अनमोल हैं | आपने रचना के आंतरिक को पहचान जो लिखा वह आभार से परे है | बस मेरा प्यार हैं |

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  10. रचना सुन्दर है भाई,प्राकृतिक प्रेम रखना भाई। खग मृग सब कुछ भूल चले, अन्न पानी के लाले आई।भौतिकता में संस्कृति पाली, सभ्यता खाली जाई।माता को नेता लतियाये, सीमा कौन रखाई।बतकही में देश है भाई, हमके कौन बचाई।।

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    1. आदरणीय सर - सबसे पहले स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपका मेरे ब्लॉग पर आ मेरी रचना पढना मेरा सौभाग्य है | सादर आभार और नमन आपको |

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    2. हार्दिक शुक्रिया Renu Ji

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  11. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय यशोदा दी -- आपके सहयोग के लिए सादर आभार आपका |

      हटाएं
  12. जिसके आने की आहट -
    मुझसे पहले -
    जान गए थे ,
    अधखिली कलियाँ और आवारा बादल ;
    जैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं -
    धूप में भी आने वाली -
    बारिश का पता
    और नहाने लग जाती हैं
    सूखी रेत में--------- !!!!!!!!!!!

    बहुत सुन्दर रेनू जी ।

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    1. आदरणीय पल्लबी जी ---- सबसे पहले स्वागत करती हूँ आपका मेरे ब्लॉग पर | आपने रचना पढ़ी और उत्साहवर्धक शब्द लिखे जो मेरे लेखन के लिए प्रेरक हैं | सादर , सस्नेह आभार आपका | स्नेह बनाए रखिये |

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  13. वो जब आएँ उनका आना ही फागुन हो जाता है ...
    खिल उठता है आँगन महक उठती है बयार ... सुंदर प्रेम मयी रचना ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर जी -- सादर आभार आपका इन प्रेरक शब्दों के लिए |

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  14. उत्तर
    1. आदरणीय भारत जी---- सादर आभार और स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर |

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  15. अचानक !एक दिन खिलखिलाकर -
    हँस पड़ी थीं चमेली की कलियाँ ,
    और आवारा काले बादल --
    झूम - झूम कर बरसने लग गए थे !
    देखा तो द्वार पर तुम खड़े थे -
    मुस्कुराते हुए !! बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌👌

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    1. प्रिय अनुराधा जी , हार्दिक आभार आपके स्नेह भरे शब्दों का । 🙏🙏🙏

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  16. अकथनीय बेहतरीन लेखन शैली। सपने बाँधती और सपने सवाँरती सुन्दर अति सुन्दर ।

    रंग लगे, अबीर लगे, संग अपनों संग आप संगें,
    वो फिर आएँ द्वार,
    फगुनाहट हो, फागुन हो, उम्मीदें हो,
    रंगों को हो, आपसे प्यार....

    आपको फागुन व फगुनाहट की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया रेणु जी।

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    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी । मूल रचना से कहीं बेहतर आपकी स्नेहिल काव्यात्मक टिप्पणी के सादर आभार 🙏🙏🙏

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  17. ओह रेणु बहन आत्ममुग्ध कर ग्रे आपकी रचना के भाव ।
    समर्पण और प्रेम की भावों के साथ यह त्रिवेणी बहुत बहुत मनभावन है ।
    अभिनव सृजन।

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    1. आपके स्नेह और सहयोग के लिए कोटि आभार प्रिय कुसुम बहन 🙏🙏🙏

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  18. अद्भुत अनुरोध!...अद्भुत सुन्दर रचना!

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    1. आदरणीय सर , आपके ब्लॉग भ्रमन और इन अनमोल शब्दों के लिए आभारी हूँ 🙏🙏🙏

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  19. रेणु दी आपकी या रचना बढ़कर एक गीत का स्मरण हो आया..

    दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे
    रंग जीवन में नया लायो रे
    देख रे घटा घिरके आई रस भर-भर लाई
    छेड़ ले गोरी मन की बीना रिमझिम रुत छाई-
    प्रेम की गागर लाए रे बादर बेकल मोरा जिया होय-

    यदि प्रतीक्षा आशा पर खरी उतरती है तो मन कुछ इसी तरह प्रफुल्लित हो जाता है जैसा कि आपके इस सुंदर और मधुर सृजन में है।

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    1. प्रिय शशि भैया, आपने अहलादित् हो रचना को अपना जो विशेष स्नेह दिया उसके लिए आभार शब्द बेमानी है। बस मेरी शुभकामनायें आपके लिए 🙏🙏

      हटाएं
  20. वाह!बहुत सुंदर आदरणीया दीदी जी।
    सादर प्रणाम 🙏

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  21. तो मैंने कहा था कलियों से चुपके से -
    "कि चटकना उसी दिन
    और खोल देना गंध के द्वार ,
    जब तुम आओ

    इंतज़ार के सुखद पलों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ,लाज़बाब सखी

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    उत्तर
    1. बहुत - बहुत आभार सखी , तुम्हें मेरी ये रचना अच्छी लगी | सस्नेह --

      हटाएं
  22. सादर नमस्कार ,



    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10 -3-2020 ) को " होली बहुत उदास " (चर्चाअंक -3636 ) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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