हुआ शुरू दो प्राणों का -- मौन -संवाद- सत्र !
मन प्रश्न कर रहे - स्वयम ही दे रहे उत्तर !!
हैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?
कोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ?
न कोई पाया जान सृष्टि का राज ये गहरा-
राग- प्रीत गूंज रहा चतुर्दिश रह- रह कर !!
समझ रहे एक दूजे के मन की भाषा -
जग पड़ी भीतर सोयी अनंत अभिलाषा -
सुध - बुध बिसरी - बुन रहे नये सपन सुहाने
विदा हुई हर पीड़ा-- जीवन से हंसकर !!
नयी सोच , उमंग नयी .शुरू हुई नई कहानी
आज कहाँ चल पाई - जग की मनमानी ;
दोहरा रहे हैं फिर से --वही वचन पुराने -
जागी है भोर सुहानी -सो गयी रात थककर !!
अनगिन भाव अनायास प्राणों से पिघले -
सजे अधर पे हास -कभी नम हो गयीं पलकें -
दो तनिक तो साथ -थमो !ऐ समय की लहरों !
आई ख़ुशी अनंत -दुःख तुम चलो सिमटकर!!
स्वरचित -- रेणु
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उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आप ने...लाजवाब
प्रिय नीतू जी -- सस्नेह आभार उत्साहवर्धन के लिए |
हटाएंहुआ शुरू दो प्राणों का -- मौन -संवाद- सत्र !
जवाब देंहटाएंमन प्रश्न कर रहे - स्वयम ही दे रहे उत्तर !!
बेसतरीन रचना।
दूर से आता वो मौन स्वर,
करुण क्रंदन करता वो स्वर,
वेदना से पिघलते वो ज्वर,
समाहित होते हैं हृदय में टकराकर....
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपकी काव्यात्मक टिप्पणी ने रचना को विस्तार तो दिया ही -- साथ में इसकी शोभा को कई गुना बढ़ा फिया है | आपके शब्द आभार से प्रे हैं | बस सादर नमन |
हटाएंस्वयं का स्वयं से संवाद ही प्रश्न के सही उत्तर की और ले जाता है ...
जवाब देंहटाएंदिल जहाँ भाव विहोर होता है ... सुंदर रचना ...
आदरणीय दिगंबर जी -- ब्लॉग पर आपका विचरण और उत्साहवर्धक शब्दों से भरा सार्थक चिंतन मन को आह्लादित कर गया | क्या लिखूं ? आप जैसे कलम के धनी विद्वान के अनमोल शब्दों से गदगद हूँ | सादर आभार और नमन आपको |
हटाएंहैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?
जवाब देंहटाएंकोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ?
सुंदर स्वप्न,जो जल्दी ही टूट जाते हैं और एक मृगमरीचिका में उलझाकर छोड़ देते हैं ! जब तक ये भ्रम टूटता है तब तक आप खुद को खो चुके होते हैं !
बेहतरीन शब्द शिल्प के लिए बधाई,बहुत सुंदर कल्पना !
प्रिय मीना बहन -- रचना पर आपके भावनात्मक चिंतन ने रचना के अंतर्निहित भाव की सार्थक विवेचना की है | आपके शब्द आभार से कहीं परे और भावुक कर देने वाले हैं | बस मेरा प्यार ------
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी सादर आभार |
हटाएंआपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दी -- आपके सहयोग के लिए आभारी हूँ आपकी |
हटाएंहैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?
जवाब देंहटाएंकोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ?
वाह!!!!
बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब.....
आदरणीय सुधा जी-- आपके शब्द प्रेरक हैं |
हटाएंवाह बहना बहत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंअलब्ध सा एकाकार होता मन का अविचल भाव ।
अपअप्र अद्भुत
आदरणीय कुसुम बहन -- आपके शब्दों से मन आह्लादित है | सस्नेह आभार |
हटाएंवाह!!सुंंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत ही सुंदर पंक्तियां रेणु जी
जवाब देंहटाएंप्रिय दीपाली जी -- सस्नेह आभार आपका |
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