फागुन मास में उस साल
मेरे आँगन की क्यारी में ,
हरे - भरे चमेली के पौधे पर
नज़र आई थी जब ,
शंकुनुमा कलियाँ
पहली बार !
तो ,मैंने कहा था कलियों से चुपके से
"कि चटकना उसी दिन
और खोल देना गंध के द्वार ,
जब तुम आओ !''
आकाश में भटकते ,
आवारा काले बादलों से गुहार
लगाई थी मैंने ,
'' हलके से बरस जाना !
जब तुम आओगे,
और शीतलता में बदल देना
आँगन की उष्मता की हर दिशा को - - -''
अचानक !एक दिन खिलखिलाकर
हँस पड़ी थीं चमेली की कलियाँ ,
और आवारा काले बादल
लग गये थे - --
झूम - झूम कर बरसने !
देखा तो, द्वार पर तुम खड़े थे
मुस्कुराते हुए !
जिसके आने की आहट
मुझसे पहले
जान गए थे ,
अधखिली कलियाँ और आवारा बादल ,
जैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं
धूप में भी आने वाली
बारिश का पता
और नहाने लग जाती हैं
सूखी रेत में--------- !!
स्वरचित --रेणु
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है। जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"
प्रिय ध्रुव -- आपका सहयोग अनमोल है | सस्नेह आभार |
हटाएंजय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 020/02/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
पांच लिंकों का आनंद
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....
आदरणीय कुलदीप जी -- आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन | आपके सहयोग के लिए सादर आभार |
हटाएंबहुत सुन्दर रेनू जी. खासुल-ख़ास मेहमान का खैर-मक़दम हो तो बस इस तरह !
जवाब देंहटाएंआदरणीय गोपेश जी -- सादर आभार और नमन आपको |
हटाएंजैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं -
जवाब देंहटाएंधूप में भी आने वाली -
बारिश का पता
और नहाने लग जाती हैं
सूखी रेत में--------- !!!!!!!!!!!------ वाह! सुन्दर!!!
आदरणीय विश्वमोहन जी -आपके शब्द अनमोल हैं | सदर आभार |
हटाएंWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
जवाब देंहटाएंOnline Book Publisher India
सादर आभार आदरणीय |
हटाएंरेणु जी, अत्यन्त सुन्दर भावों से युक्त सुन्दर सी रचना.
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी --सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी सादर आभार |
हटाएंमैंने कहा था कलियों से चुपके से -
जवाब देंहटाएं"कि चटकना उसी दिन
और खोल देना गंध के द्वार ,
जब तुम आओ !
बहुत सुंदर ! इंतजार की विकलता और पाने का विश्वास, दोनों ही भावनाओं का खूबसूरत चित्रण ! प्यारी अभिव्यक्ति।
प्रिय मीना बहन -- रचना के आंतरिक भावों की सार्थक समीक्षा के लिए सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमन को भा गई ....शानदार
प्रिय नीतू जी -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंदेखा तो द्वार पर तुम थे
जवाब देंहटाएंमुस्कराते हुए!!!!
वाह!!!!
बहुत खूबसूरत... मनमोहक रचना...
आदरणीय सुधा जी -- आपके स्नेह के लिए सादर आभार |
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- सस्नेह आभार |
हटाएंआदरणीय रेनू दी , इतनी सुन्दर कविता और इतने सुंदर भाव। प्रतीक्षा के कितने कोमल भाव। कविता पढ़ कर दरवाजे पर उनके आने का दृश्य साक्षात् हो गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बिम्ब संयोजन। लाज़वाब।
सादर
प्रिय अपर्णा | आपके स्नेह भरे शब्द मेरे लिए अनमोल हैं | आपने रचना के आंतरिक को पहचान जो लिखा वह आभार से परे है | बस मेरा प्यार हैं |
हटाएंवाह बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
आदरणीय सर -- सादर आभार और नमन |
हटाएंरचना सुन्दर है भाई,प्राकृतिक प्रेम रखना भाई। खग मृग सब कुछ भूल चले, अन्न पानी के लाले आई।भौतिकता में संस्कृति पाली, सभ्यता खाली जाई।माता को नेता लतियाये, सीमा कौन रखाई।बतकही में देश है भाई, हमके कौन बचाई।।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर - सबसे पहले स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपका मेरे ब्लॉग पर आ मेरी रचना पढना मेरा सौभाग्य है | सादर आभार और नमन आपको |
हटाएंहार्दिक शुक्रिया Renu Ji
हटाएंआपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दी -- आपके सहयोग के लिए सादर आभार आपका |
हटाएंजिसके आने की आहट -
जवाब देंहटाएंमुझसे पहले -
जान गए थे ,
अधखिली कलियाँ और आवारा बादल ;
जैसे चिड़ियाँ जान जाती हैं -
धूप में भी आने वाली -
बारिश का पता
और नहाने लग जाती हैं
सूखी रेत में--------- !!!!!!!!!!!
बहुत सुन्दर रेनू जी ।
आदरणीय पल्लबी जी ---- सबसे पहले स्वागत करती हूँ आपका मेरे ब्लॉग पर | आपने रचना पढ़ी और उत्साहवर्धक शब्द लिखे जो मेरे लेखन के लिए प्रेरक हैं | सादर , सस्नेह आभार आपका | स्नेह बनाए रखिये |
हटाएंवो जब आएँ उनका आना ही फागुन हो जाता है ...
जवाब देंहटाएंखिल उठता है आँगन महक उठती है बयार ... सुंदर प्रेम मयी रचना ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- सादर आभार आपका इन प्रेरक शब्दों के लिए |
हटाएंVERY NICE
जवाब देंहटाएंLOVE TO RESHARE
आदरणीय भारत जी---- सादर आभार और स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर |
हटाएंअति सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार दीपा जी |
हटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार रवीन्द्र जी |
हटाएंवाहः
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
आपका आभार है लोकेश जी 🙏🙏
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर । 🙏🙏🙏
हटाएंअचानक !एक दिन खिलखिलाकर -
जवाब देंहटाएंहँस पड़ी थीं चमेली की कलियाँ ,
और आवारा काले बादल --
झूम - झूम कर बरसने लग गए थे !
देखा तो द्वार पर तुम खड़े थे -
मुस्कुराते हुए !! बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌👌
प्रिय अनुराधा जी , हार्दिक आभार आपके स्नेह भरे शब्दों का । 🙏🙏🙏
हटाएंअकथनीय बेहतरीन लेखन शैली। सपने बाँधती और सपने सवाँरती सुन्दर अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंरंग लगे, अबीर लगे, संग अपनों संग आप संगें,
वो फिर आएँ द्वार,
फगुनाहट हो, फागुन हो, उम्मीदें हो,
रंगों को हो, आपसे प्यार....
आपको फागुन व फगुनाहट की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया रेणु जी।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी । मूल रचना से कहीं बेहतर आपकी स्नेहिल काव्यात्मक टिप्पणी के सादर आभार 🙏🙏🙏
हटाएंओह रेणु बहन आत्ममुग्ध कर ग्रे आपकी रचना के भाव ।
जवाब देंहटाएंसमर्पण और प्रेम की भावों के साथ यह त्रिवेणी बहुत बहुत मनभावन है ।
अभिनव सृजन।
आपके स्नेह और सहयोग के लिए कोटि आभार प्रिय कुसुम बहन 🙏🙏🙏
हटाएंगये पढे
जवाब देंहटाएंअद्भुत अनुरोध!...अद्भुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर , आपके ब्लॉग भ्रमन और इन अनमोल शब्दों के लिए आभारी हूँ 🙏🙏🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंरेणु दी आपकी या रचना बढ़कर एक गीत का स्मरण हो आया..
दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे
रंग जीवन में नया लायो रे
देख रे घटा घिरके आई रस भर-भर लाई
छेड़ ले गोरी मन की बीना रिमझिम रुत छाई-
प्रेम की गागर लाए रे बादर बेकल मोरा जिया होय-
यदि प्रतीक्षा आशा पर खरी उतरती है तो मन कुछ इसी तरह प्रफुल्लित हो जाता है जैसा कि आपके इस सुंदर और मधुर सृजन में है।
प्रिय शशि भैया, आपने अहलादित् हो रचना को अपना जो विशेष स्नेह दिया उसके लिए आभार शब्द बेमानी है। बस मेरी शुभकामनायें आपके लिए 🙏🙏
हटाएंवाह!बहुत सुंदर आदरणीया दीदी जी।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम 🙏
बहुत बहुत प्यार और आभार प्रिय आंचल 🥰🥰
हटाएंतो मैंने कहा था कलियों से चुपके से -
जवाब देंहटाएं"कि चटकना उसी दिन
और खोल देना गंध के द्वार ,
जब तुम आओ
इंतज़ार के सुखद पलों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ,लाज़बाब सखी
बहुत - बहुत आभार सखी , तुम्हें मेरी ये रचना अच्छी लगी | सस्नेह --
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10 -3-2020 ) को " होली बहुत उदास " (चर्चाअंक -3636 ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
तुम्हारा और चर्चा का आभार है सखी |
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार ओंकार जी |
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