'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
मेरी प्रिय मित्र मंडली
सोमवार, 28 अगस्त 2017
बीते दिन लौट रहे हैं -------- नवगीत
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशेष रचना
आज कविता सोई रहने दो !
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
कसक है इक निश्छल आशा -
जवाब देंहटाएंहाथ अपनों के छली गई ;
छद्म वैरी गए पहचाने -
जिनके अपनों के भेष रहे हैं !!
अपने ही छल जाया करते है अपनों को, तब उनकी असली पहचान हो पाती है। इससे तो गैर भले जो अपनापन देकर साथ निभाते है। सुंदर रचना।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी ----- आभारी हूँ -- आपने रचना के अंतर्निहित भाव को पहचाना |
हटाएंपावन , निर्मल प्रेम सदा ही --
जवाब देंहटाएंरहा शक्ति मानवता की ,
जग में ये नीड़ अनोखा है -
जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;
युग आये - आकर चले गए ,
पर इसके रूप विशेष रहे हैं !!
रेणुजी, आपकी कलम से नहीं अंतर्मन से
निकले ये कोमल भाव सीधे हृदय में उतर गए हैं !!! प्रेम की सुंदर व्याख्या।
आदरणीय मीना जी ---- मनोबल बढाते स्नेहासिक्त शब्दों के लिए आभारी हूँ आपकी -------
हटाएंउन राहों में फूल खिल गए
जवाब देंहटाएंजिनमे कांटे बहुत रहे हैं !!
उम्मीद पर ही जीवन है। बहुत सुंदर अभव्यक्ति, रेणु।
हार्दिक आभार आपका आदरणीय ज्योति जी --
हटाएंवाह्ह्ह् रेणु जी अति सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन में.पुनः.खुशियों की दस्तक
अत्यंत मधुर लगती है।
वक्त शत्रु और वैरी का अंतर खूब
पहचान करवाता है
प्रेम और मानवता की शक्ति हमेशा विशेष रही हैं।
सुंदर रचना रेणु जी।
आदरणीय श्वेता जी -- आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं --- हार्दिक आभार आपका -----
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंवाहहह
सादर आभार आदरणीय लोकेश जी |
हटाएंबीते दिन लौट रहे हैं,अच्छे वाले दिन जो बीत गये लौट रहे हैं वाह सुंदर सकारात्मक आशावादी भविष्य का आश्वासन देती अप्रतिम सुंदर रचना रेणू जी
जवाब देंहटाएंप्रिय कुसुम जी आपके मधुर शब्द बहुत प्रेरक हैं |
हटाएंक्या खूब एहसास पिरोये आप ने। मन को भा गई आप की रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत .....लाजवाब !!!
प्रिय नीतू -- आपके मधुर शब्दों के लिए आपका सस्नेह आभार |
हटाएंभारतीय संस्कृति की खूबसूरत झलक संजोए हुये हैं.आपढ
हटाएंआदरणीय शशि जी -- स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपको रचना पसंद आई मेरा सौभाग्य !!सादर आभार आपका |
हटाएंवाह!!रेनु जी ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- सस्नेह आभा आपका |
हटाएंउत्तम लेखन
जवाब देंहटाएंप्रिय संध्या जी --सादर आभार |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्बेता -- आपके सहयोग की आभारी हूँ |
हटाएंवाह!!रेनु जी ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार शुभा जी |
हटाएंवाह बेहद खूबसूरत रचना,पावन निर्मल प्रेम ही.... लेखनी से मानों फूल ही निकलते हैं आपके मन हर्षित कर देने वाली रचनाएं होती हैं,शब्द हंसते मुस्कुराते आपके हृदय से पाठकों के हृदय तक सीधा पहुंचते हैं.. सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंप्रिय सुप्रिया -- आपके मीठे शब्द बहुत ही हृदयस्पर्शी है | ह्रदय तल से शुक्रिया |
हटाएंखुशी का भाव शब्दों से बयाँ हो रहा है.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.
खैर
प्रिय रोहितास जी -सादर आभार आपका |
हटाएंपावन , निर्मल प्रेम सदा ही --
जवाब देंहटाएंरहा शक्ति मानवता की ,
जग में ये नीड़ अनोखा है -
जहाँ जगह नहीं मलिनता की
वाह रेनू जी! क्या कमाल लिखा है आपने...
निशब्द हूँ आपकी रचना पर....बहुत लाजवाब...
नमन आपकी लेखनी को नमन आपको....
आदरणीय सुधा जी -- हमेशा की तरह अत्यंत स्नेह भाव प्रदर्शित करते आपके प्रेरक शब्दों के लिए आभारी रहूंगी | रचना का मर्म समझने में आपका कोई सानी नही |सादर और सस्नेह --
हटाएंचिर प्रतीक्षा सफल हुई -
जवाब देंहटाएंयत्नों के फल अब मीठे हैं ,
उतरे हैं रंग जो जीवन में-
वो इन्द्रधनुष सरीखे हैं
मिटी वेदना अंतर्मन की --
खुशियों के दिन शेष रहे हैं -!!...बहुत ही सुन्दर आदरणीया रेणु जी
सादर
प्रिय अनिता जी सस्नेह आभार इस स्नेहिल सहयोग के लिए |
हटाएंवाह आदरणीया दीदी जी जिस प्रकार भोर नयी आशा नयी उम्मीद नयी उमंग उसी प्रकार आपकी रचना भी रात अँधेरे को भेद कर नयी सुबह के स्वागत को खड़ी है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई
सादर नमन सुप्रभात
प्रिय आंचल -- बहुत ख़ुशी हुई कि तुम्हे रचना पसंद आई | रचना का अंतर्निहित भाव पहचानने के लिए हार्दिक आभार और स्नेहासिक्त शब्दों के लिए अआभर नहीं मेरा प्यार |
हटाएंबीते दिन क्यों याद करू,
जवाब देंहटाएंउनकी मैं क्या बात करूँ।
बीत गया जब वो लम्हा
फिर उसकी क्यों फरियाद करूँ।।
आने वाले कल की सोचूँ,
उसकी ही मैं बात करूँ।
आने वाला कल हो रौशन,
उससे नयी सुरुआत करुँ।।
सुस्वागतम और आभार आपकी सुंदर काव्य रचना के लिए |
हटाएं