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सोमवार, 28 अगस्त 2017

बीते दिन लौट रहे हैं -------- नवगीत

               बीते दिन  लौट रहे हैं ---------  नवगीत --


  • ये   सुनकर   उमंग    जागी   है  ,
  • कि   बीते    दिन   लौट  रहे   हैं  ;
  • उन  राहों  में    फूल      खिल   गए  -
  •  जिनमे  कांटे  बहुत     रहे   है   !
  •  चिर    प्रतीक्षा     सफल    हुई -
  • यत्नों    के  फल   अब   मीठे    हैं ,
  •  उतरे   हैं     रंग     जो   जीवन   में-   
  • वो     इन्द्रधनुष    सरीखे हैं  
  •  मिटी   वेदना   अंतर्मन  की --
  •  खुशियों  के  दिन  शेष    रहे   हैं   -!!  
  • वो  एक लहर   समय  की    थी साथी    -
  • आई  और   आकर   चली  गई, 
  • कसक   है  इक  निश्छल    आशा  -
  • हाथ     अपनों  के  छली  गई  ; 
  • छद्म  वैरी   गए पहचाने   -
  • जिनके     अपनों   के    भेष     रहे  हैं  !!
  • पावन ,  निर्मल    प्रेम   सदा     ही -
  •  रहा     शक्ति    मानवता   की  ,
  • जग  में   ये   नीड़   अनोखा  है -
  • जहाँ    जगह   नहीं  मलिनता   की  ;
  •  युग  आये -  आकर  चले   गए  , 
  • पर    इसके   रूप    विशेष   रहे  हैं  !!
  • उन  राहों     में  फूल  खिल    गए 
  • जिनमे    कांटे      बहुत  रहे  हैं  !!!!!!!

37 टिप्‍पणियां:

  1. कसक है इक निश्छल आशा -
    हाथ अपनों के छली गई ;
    छद्म वैरी गए पहचाने -
    जिनके अपनों के भेष रहे हैं !!
    अपने ही छल जाया करते है अपनों को, तब उनकी असली पहचान हो पाती है। इससे तो गैर भले जो अपनापन देकर साथ निभाते है। सुंदर रचना।

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    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी ----- आभारी हूँ -- आपने रचना के अंतर्निहित भाव को पहचाना |

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  2. पावन , निर्मल प्रेम सदा ही --
    रहा शक्ति मानवता की ,
    जग में ये नीड़ अनोखा है -
    जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;
    युग आये - आकर चले गए ,
    पर इसके रूप विशेष रहे हैं !!
    रेणुजी, आपकी कलम से नहीं अंतर्मन से
    निकले ये कोमल भाव सीधे हृदय में उतर गए हैं !!! प्रेम की सुंदर व्याख्या।

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    1. आदरणीय मीना जी ---- मनोबल बढाते स्नेहासिक्त शब्दों के लिए आभारी हूँ आपकी -------

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  3. उन राहों में फूल खिल गए
    जिनमे कांटे बहुत रहे हैं !!
    उम्मीद पर ही जीवन है। बहुत सुंदर अभव्यक्ति, रेणु।

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  4. वाह्ह्ह् रेणु जी अति सुंदर अभिव्यक्ति
    जीवन में.पुनः.खुशियों की दस्तक
    अत्यंत मधुर लगती है।
    वक्त शत्रु और वैरी का अंतर खूब
    पहचान करवाता है
    प्रेम और मानवता की शक्ति हमेशा विशेष रही हैं।
    सुंदर रचना रेणु जी।

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    1. आदरणीय श्वेता जी -- आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं --- हार्दिक आभार आपका -----

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  5. बहुत खूबसूरत रचना
    वाहहह

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  6. बीते दिन लौट रहे हैं,अच्छे वाले दिन जो बीत गये लौट रहे हैं वाह सुंदर सकारात्मक आशावादी भविष्य का आश्वासन देती अप्रतिम सुंदर रचना रेणू जी

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  7. क्या खूब एहसास पिरोये आप ने। मन को भा गई आप की रचना।
    बहुत खूबसूरत .....लाजवाब !!!

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    1. प्रिय नीतू -- आपके मधुर शब्दों के लिए आपका सस्नेह आभार |

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    2. भारतीय संस्कृति की खूबसूरत झलक संजोए हुये हैं.आपढ

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    3. आदरणीय शशि जी -- स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपको रचना पसंद आई मेरा सौभाग्य !!सादर आभार आपका |

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  8. वाह!!रेनु जी ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ...

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  9. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. प्रिय श्बेता -- आपके सहयोग की आभारी हूँ |

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  10. वाह!!रेनु जी ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..।

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  11. वाह बेहद खूबसूरत रचना,पावन निर्मल प्रेम ही.... लेखनी से मानों फूल ही निकलते हैं आपके मन हर्षित कर देने वाली रचनाएं होती हैं,शब्द हंसते मुस्कुराते आपके हृदय से पाठकों के हृदय तक सीधा पहुंचते हैं.. सादर अभिवादन

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    1. प्रिय सुप्रिया -- आपके मीठे शब्द बहुत ही हृदयस्पर्शी है | ह्रदय तल से शुक्रिया |

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  12. खुशी का भाव शब्दों से बयाँ हो रहा है.

    सुंदर कविता.
    खैर 

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  13. पावन , निर्मल प्रेम सदा ही --
    रहा शक्ति मानवता की ,
    जग में ये नीड़ अनोखा है -
    जहाँ जगह नहीं मलिनता की
    वाह रेनू जी! क्या कमाल लिखा है आपने...
    निशब्द हूँ आपकी रचना पर....बहुत लाजवाब...
    नमन आपकी लेखनी को नमन आपको....

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    1. आदरणीय सुधा जी -- हमेशा की तरह अत्यंत स्नेह भाव प्रदर्शित करते आपके प्रेरक शब्दों के लिए आभारी रहूंगी | रचना का मर्म समझने में आपका कोई सानी नही |सादर और सस्नेह --

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  14. चिर प्रतीक्षा सफल हुई -
    यत्नों के फल अब मीठे हैं ,
    उतरे हैं रंग जो जीवन में-
    वो इन्द्रधनुष सरीखे हैं
    मिटी वेदना अंतर्मन की --
    खुशियों के दिन शेष रहे हैं -!!...बहुत ही सुन्दर आदरणीया रेणु जी
    सादर

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    उत्तर
    1. प्रिय अनिता जी सस्नेह आभार इस स्नेहिल सहयोग के लिए |

      हटाएं
  15. वाह आदरणीया दीदी जी जिस प्रकार भोर नयी आशा नयी उम्मीद नयी उमंग उसी प्रकार आपकी रचना भी रात अँधेरे को भेद कर नयी सुबह के स्वागत को खड़ी है
    बहुत सुंदर रचना पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई
    सादर नमन सुप्रभात

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    उत्तर
    1. प्रिय आंचल -- बहुत ख़ुशी हुई कि तुम्हे रचना पसंद आई | रचना का अंतर्निहित भाव पहचानने के लिए हार्दिक आभार और स्नेहासिक्त शब्दों के लिए अआभर नहीं मेरा प्यार |

      हटाएं
  16. बीते दिन क्यों याद करू,
    उनकी मैं क्या बात करूँ।
    बीत गया जब वो लम्हा
    फिर उसकी क्यों फरियाद करूँ।।
    आने वाले कल की सोचूँ,
    उसकी ही मैं बात करूँ।
    आने वाला कल हो रौशन,
    उससे नयी सुरुआत करुँ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुस्वागतम और आभार आपकी सुंदर काव्य रचना के लिए |

      हटाएं

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