
माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा !
बिटिया की माँ बनकर मैंने
तेरी ममता को पहचाना है ,
माँ -बेटी का दर्द का रिश्ता
क्या होता है ये जाना है ;
बिटिया की माँ बनी हूँ जबसे
पर्वत ये तन बना है मेरा ,
उसका हँसना , रोना और खाना
यही अब जीवन बना है मेरा
जब - जब उसको सहलाती हूँ ,
रोये तो हँस बहलाती हूँ
उसकी हँसी में खो जाती हूँ
तो याद आता दुलार तुम्हारा ! !
तुम जो रोज़ कहा करती थी
धरती और माँ एक हैं दोनों ,
अपने लिए नहीं जीती
अन्नपूर्णा और नेक हैं दोनों ;
माँ बनकर मैंने जाना है
औरों की खातिर जीना कैसा है ,
जीवन - अमृत पीने की खातिर
मन के आँसू पीना कैसा है ,
और टूटा मन सीना कैसा है -?
और टूटा मन सीना कैसा है -?
खुद को मिटाया तो जाना है -
अम्बर सा विस्तार तुम्हारा ! !
खिड़की से देखा करती हूँ
पल - पल राह तका करती हूँ ,
बिटिया पढ़कर घर आयेगी
आकर गले से लग जायेगी ,
उस पल याद तुम्हारी आती है
एक छवि मुखर हो जाती है
जब थकी - थकी मेरी प्रतीक्षा में तू
आँगन में बैठी होती थी ,
देख के मेरा मुखड़ा माँ तू
ख़ुशी के आँसू रो देती थी ;
मेरी एक हँसी की खातिर माँ
कोई कमी न तू रखती थी ;
मेरा वो रूठ जाना यूँ ही माँ
और ना बंद होना मनुहार तुम्हारा ! !
महल में रहकर भी नहीं भूली हूँ
वो धूल भरा अँगना तेरा ,
पिता से सम्पूर्णता तेरी
बिंदिया , पायल , वो कंगना तेरा ;
बड़ों का सफल बुढ़ापा माँ
नन्हें बच्चों की किलकारी ,
दीवाली के हँसते दीप कहीं
होली की रंगीली पिचकारी ;
संध्या - वंदन , दिया बाती
वो छोटा सा संसार तुम्हारा ! !
माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा ! ! !