'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
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विशेष रचना
आज कविता सोई रहने दो !
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
अरे वाह्ह्ह....अद्भुत भाव औ शब्द विन्यास के तो क्या कहने...बहुत सुंदर रचना रेणु दी।
जवाब देंहटाएंबुद्ध का अंतस भी भीगा होगा --
देख तुम्हारा सूना तन - मन
चिर विरहणी, अनंत मन -जोगन --
विरह अग्न में तप हुई कुंदन ! !
बुद्ध की करुणा में सराबोर हो
तू बनी अनंत महाभागा
अप्रतिम 👌👌👌
प्रिय श्वेता -- आपकी त्वरित और शुभ टिप्पणी ने मन को अपार ऊर्जा से भर दिया | आपने रचना के मर्म को जाना और मेरा लेखन सार्थक किया जिससे मन को संतोष हुआ | आभार नहीं बस मेरा प्यार |
हटाएंअनुपम रचना रेणू बहन शब्द शब्द मंथन कर रहा है यशोधरा के अंतर की पीड़ा । बहुत सुंदर अप्रतिम सौन्दर्य लिये आपकी रचना नारी के आत्मसम्मान का उच्च तम प्रतिमान।
जवाब देंहटाएंकुछ पंक्तियाँ गुप्त जी की यहां बनती है...
जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
प्रिय कुसुम बहन -- इस मंच पर आप जैसी विदुषी पारखियों की सराहना मेरे लिए अनमोल पूंजी के समान है | यशोधरा की पीड़ा को हर संवेदनशील नारी ने अपनी पीड़ा जाना है और अनुभव किया है | कितना कठिन होता है एक नारी के लिए प्रिया से त्राज्या होने की वेदना | मेरी कोशिश को आपने सराहा मन आह्लादित है | आदरणीय गुप्त जी की पंक्तियों का स्मरण बहुत ही हृदयस्पर्शी है | पुरुष होते हुए भी उन्होंने वेदना के लाक्षागृह में तिल- तिल जलती , तपती यशोधरा की पीड़ा को अमर शब्दों में बांध दिया उसका कोई सानी साहित्य जगत में नहीं होगा | आपकी विद्वतापूर्ण टिप्पणी ने भीतर उत्साह भर दिया है | सस्नेह आभार |
हटाएंवाह अद्भुत अप्रतिम भाव रेनू जी .नारी की पावन और विशुद्ध समर्पण को सत्यापित सी करती रचना
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द मसि भाव वह रहा नारी का सदभाव कह रहा
अवर्णित नेह नारी का समर्पन काव्य भाव सहज गति बहता !
प्रिय इंदिरा जी -- आपकी विद्वतापूर्ण मार्मिक काव्यात्मक टिप्पणी ने मेरी रचना की शोभा बढा दी है |आपके शब्द अनमोल हैं | सस्नेह आभार | ये स्नेह बनाये रखिये |
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंशब्द और भाव दोनों लाजवाब
जिस तरह आप ने शब्दों के मोती पिरोये
रचना मन को छू गई
प्रिय नीतू -- मेरी विदुषी बहनों ने त्वरित रूप में मेरी रचना को पढ़ मेरा अतुलनीय उत्साहवर्धन किया है | आपके स्नेह भरे शब्द अनमोल हैं | सस्नेह आभार |
हटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंआम तौर पर यही पढ़ने को मिलता है कि सिद्धार्थ सोती हुई पत्नि और सोते हुए बेटे को छोड़ कर चले गए. पर ऐसा है नहीं. डॉ भीमराव आंबेडकर की पुस्तक 'बुद्ध और उनका धम्म' पढ़ें तो परिपेक्ष्य / perspective बेहतर हो जाए .
सिद्दार्थ का वैराग्य बचपन से ही जग जाहिर था और यशोधरा ने जब स्वयम्वर किया तो उसे भी जानकारी थी. जाते हुए सिद्दार्थ को यशोधरा ने कुछ इस तरह से कहा ( उक्त पुस्तक का पेज 23 पैरा 27) - तुम्हारा निर्णय ठीक है. तुम्हें मेरी अनुमति और समर्थन प्राप्त है. मैं भी तुम्हारे साथ प्रवजित हो जाती यदि नहीं हो रही हूँ तो इसका मात्र यहीं कारण है कि मुझे राहुल का पालन पोषण करना है.
लगभग 7/8 वर्ष बाद, सिद्धार्थ के बौद्ध हो जाने के बाद, बुद्ध फिर यशोधरा, राहुल और सभी प्रियजनों से मिले भी. वो बात और है कि वे सभी राजपाट त्याग भिक्खु हो गए और कालन्तर में अरहंत हो गए.
आदरणीय हर्ष जी -- आपका मेरे ब्लॉग पर आना मेरा सौभाग्य है |आपका हार्दिक स्वागत करती हूँ | आप मुझसे कहीं ज्यादा बुद्ध विमर्श के मर्मज्ञ हैं | आपने अपनी बात सप्रमाण कही है जो कि मेरे लिए और अन्य पाठकों के लिए बड़ी महत्वपूर्ण है | पर जैसा कि आमतौर पर हर महान व्यक्ति के जीवन के बारे में होता है , महात्मा बुद्ध के साथ भी बहुत किवदंतियां और लोककथाएं जुडी हुई हैं | ऐसा ही उनके गृह त्याग के बारे प्रचलित है कि उन्होंने सोती यशोधरा को छोड़ घर त्यागा था |मैंने भी बचपन से यही पढ़ा सुनाहै और उसी आधार पर मैंने रचना लिखी |और वैसे भी ये नारी जीवन का कटु सत्य है कोई भी नारी कभी नहीं चाहती किसी भी कारण से उसका पति उससे दूर चला जाए , फिर यशोधरा तो राजकुमारी थी और एक साम्राज्य की होने वाली महारानी |पर यदि उन्होंने बुद्ध को स्वेच्छा से जाने दिया तो यह भी मानवता पर उपकार है | मानवता युगों -युगों तक ऋणी रहेगी ऐसी पत्नी की जिसने अपने पति को अपने बंधन से मुक्त कर संसार को बुद्ध होने का उपहार दिया | आपकी आभारी हूँ कि आपने इतना समय देकर महत्वपूर्ण तथ्य साँझा किया |
हटाएंपुरुष बराबर है सबल हैं और एक दूसरे के पूरक भी. अगर यशोधरा ने महारानी बनना था तो सिद्धार्थ ने महाराज. नारी अगर नहीं चाहती कि पति उससे दूर चला जाए तो पति की भी यही ख्वाहिश रहती है.
हटाएंधन्यवाद.
आके अनमोल शब्दों की लिए आपकी आभारी हूँ आदरणीय हर्ष जी |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-04-2018) को ) "भूखी गइया कचरा चरती" (चर्चा अंक-2949) पर होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीय राधा जी -- स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | सादर आभार आपके सह्योग के लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/66.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- सादर आभार आपके निरंतर सहयोग के लिए |
हटाएंवाह वाह लाजवाब अप्रतिम सुंदर
जवाब देंहटाएंशब्द भाव का सुंदर संगम
काव्य छू गया अंतर्मन
प्रेम विरह में बंध कर फ़िर
बुद्ध ज्ञान सी मुक्ति पायी
एसी अद्भुत रचना को पढ़
आँचल भी आज मूक हो आयी
आदरणीय रेणु जी वाहवाही जितनी करूँ कम है
उत्क्रष्ट रचना 👌👌
प्रिय आँचल जी --- आपकी काव्यात्मक सराहना ने मन को आह्लादित करते हुए मेरी रचना की शोभा में चार चाँद लगा गई |आपके शब्द सर माथे पर | आभार नहीं बस मेरा प्यार |
हटाएं"बुद्ध का अंतस भी भीगा होगा --
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारा सूना तन - मन"
बहुत हृदयस्पर्शी......, सस्नेह .
आदरणीय मीना जी - सादर आभार आपका |
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
प्रिय पम्मी जी -- आपके सहयोग के लिए आभारी हूँ | सस्नेह --
हटाएंवाह रेनू जी क्या काव्य लिखा है आपने!!!!!!!
जवाब देंहटाएंयशोधरा के माध्यम से पति के जीवन में पत्नी का स्थान....
बुद्ध को सम्पूर्ण करने वाली -
एक नारी बस तुम थी ,
थे श्रेष्ठ बुद्ध भले जग में -
बुद्ध पर भारी बस तुम थी ;
एक माँ की ममता कर्तव्य और त्याग अपने पुत्र के लिए...
इतिहास झुका तेरे आगे --
देख उजला मन का दर्पण
एक मात्र पूंजी पुत्र जब
किया बोधिसत्व को अर्पण ;
आत्म गर्वा माँ बन तुमने -
अधिकार अपने पुत्र का मांगा !!
अपने सम्पूर्ण सुखोंं का त्याग कर अपने मातृत्व को सर्वोपरि कर्तव्य समझकर अपने पुत्र का पालन पोषण करना....
अन्त में यशोधरा के विकटता और अनन्य दुख को परिभाषित किया.......
बुद्ध का अंतस भी भीगा होगा --
देख तुम्हारा सूना तन - मन
चिर विरहणी, अनंत मन -जोगन --
विरह अग्न में तप हुई कुंदन ! !
वाह!!!!!रेनू जी बहुत बहुत बधाई इस अद्भुत अविस्मरणीय रचना के लिए...... सस्नेह शुभकामनाएं।
आदरणीय सुधा जी -- आपकी स्नेहासिक्त सशक्त टिप्पणी से अभिभूत हूँ | आपने मनोयोग से रचना पढ़ी और इसके अंतर्निहित भावों को आत्मसात किया इससे बढ़कर मेरे लिए ख़ुशी की बात क्या होगी | मेरी रचना यात्रा में आप जैसी विदुषी काव्य - रसिक सहयोगी का साथ -साथ चलना मेरा सौभाग्य है | सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात है कि मेरी दूसरी विदुषी बहनों ने भी यशोधरा विमर्श में बहुत रूचि और उत्साह दिखाया और विषय को विस्तार देते हुए रचना में व्याप्त करुणा को अनुभव किया और सार्थक शब्द लिखे | इस सहयोग के लिए मेरा आभार नाकाफी है | बस मेरा प्यार |
हटाएंवाह रेनू जी ! आपकी इस रचना ने मन मोह लिया ! कौन सी ऐसी संवेदनशील नारी होगी जिसने यशोधरा की व्यथा वेदना को अपने अंतर में अनुभूत न किया होगा ! उसकी पीड़ा को उसके दुःख को आपने जिस ऊँँचाई पर पहुंचाया है वह अनुपम है ! भूरि-भूरि साधुवाद आपको इस अनुपम अभिव्यक्ति के लिए ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआदरणीय साधना जी -- सबसे पहले मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है | आपके मेरे ब्लॉग पर आकर मेरी रचना पढने से मुझे अभूतपूर्व ख़ुशी हुई | आपके सार्थक और चितन परक शब्द अनमोल हैं मेरे लिए | आपने सही कहा - कौन नारी ऐसी होगी जिसने यशोधरा के अंतस की पीड़ा को अपने भीतर अनुभव ना किया हो | एक माँ का अपने तपस्वी वेशधारी पति को अपना इकलौता पुत्र अर्पण करने का प्रसंग सदियों से समय के माथे पर ठहरा करुणतम प्रसंग है जो युगों - युगों तक मानव मात्र को प्रेरित करता रहेगा | यशोधरा आत्मगर्वा और आत्माभिमानी
हटाएंका अप्रितम स्वरूप हैं जो नारी के अनेक आदर्श रूपों को साकार करती है | सादर आभार आपका इन सराहना भरे अनमोल शब्दों के लिए | सस्नेह
प्रिय अमित -- सस्नेह स्वागत आपका मेरे ब्लॉग पर | आपने रचना पढ़ी और अपने अनमोल शब्द लिखे बहुत आभारी हूँ आपकी | आशा है ये सहयोग और स्नेह बना रहेगा |
जवाब देंहटाएंnice lines
जवाब देंहटाएंpublish your lines in book form with Online Book Publisher India
आभार !!!!!
हटाएंबुद्ध का अंतस भी भीगा होगा --
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारा सूना तन - मन
संवेदनापूर्ण
बेहतरीन रचना
आदरणीय लोकेश जी -- सदैव आभारी रहूंगी आपके निरंतर सहयोग के लिए | सादर आभार --
हटाएंयशोधरा है तो बुद्ध है नहि तो उसका अस्तित्व कहाँ बुध सा रह पाता ...
जवाब देंहटाएंकिसी का त्याग शाद ही नज़र आता है पर उसे भी जाना ... क्यों ...
गहरी रचना .... सोचने को मजबूर करती ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- रचना पर आपके अनमोल विचार का हार्दिक स्वागत है | आप जैसे प्रखर विद्वान को रचना पसंद आई मेरा परम सौभाग्य है | सादर आभार आपका |
हटाएंवाह ! खूबसूरत अभिव्यक्ति ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरनीय राजेश जी |
हटाएंप्रिये सखी रेणु ,यशोधरा के ह्रदय की पीड़ा को कितनी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आपने ,स्नेह
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी -- आपने रचना पढ़ी मुझे अपार ख़ुशी हुई | बहुत - बहुत आभार और मेरा प्यार |
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जवाब देंहटाएंHarsh Wardhan Jog
बढ़िया लेख. इसी जीवन में दुःख से मोक्ष का सही रास्ता बताया बुद्ध ने.
( बुद्ध होने से पहले जो व्यक्ति खोज में लगा हो वह बोधिसत्व कहलाता है और ज्ञान प्राप्त होने पर बुद्ध. सिद्धार्थ गौतम भी पहले बोधिसत्व थे फिर बुद्ध हुए.)
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Renu
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आदरणीय हर्ष जी------ आभारी हूँ कि आपने अपने कीमती समय स कुछ पल निकाल मेरे लेख को पढ़ कर अपनी राय दी | बहुत ही महत्व पूर्ण बात की ओर ध्यान दिलाया आपने | मैंने तो यही पढ़ा था कि बुद्धत्व के समस्त नियमों का कठोरता से पालन करने वालों को बोधिसत्व की संज्ञा दी जाती है | पर आपने सही बात बताई | सादर आभार |
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१८ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता -- पांच लिंकों के सहयोग के लिए सदैव आभारी रहूंगी |
हटाएंबुद्ध का अंतस भी भीगा होगा --
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारा सूना तन - मन
चिर विरहणी, अनंत मन -जोगन --
विरह अग्न में तप हुई कुंदन ! !
करुणा में बुद्ध की सराबोर हो
तू बनी अनंत महाभागा !!!!!!!!!!!!!!!
वाह रेणु बहन,बहुत ही सुन्दर रचना ,हमेशा जो दिखता है या दिखाया जाता है वहीं सत्य नहीं होता,पूर्ण सत्य हम देख ही नहीं
पाते।
बहुत ही सही लिखा आपने अभिलाषा बहन | सस्नेह आभार आपके सुंदर शब्दों के लिए |
हटाएंअति उत्तम भावपूर्ण रचना ,सादर
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी -- आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर |आपको रचना पसंद आई मेरा सौभाग्य | सस्नेह आभार |
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी --सादर आभार |
हटाएंवाह!!प्रिय सखी रेनू जी , यशोधरा के अन्तर्मन की पीडा को सुंदर शब्दों में जिस तरह आपने पिरोया है ,वो आप ही कर सकती है ...!! लाजवाब ..!
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा बहन -- आपके इस स्नेहासिक्त विश्वास का हार्दिक अभिनन्दन और साथ में मेरा प्यार |
हटाएंप्रिय रेणु बहन हालांकि मेरी टिप्पणी यहां पहले से मौजूद है फिर भी कुछ रचनाएं जब पढ़ो आत्मा को झकझोर देती है,कालजयी समय की परीधी से ऊपर और मुह से वाह निकले बिना नही रहता।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अद्भुत।
प्रिय कुसुम बहन -- आपके स्नेह भरे शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं | आपने रचना पर आकर दुबारा लिखने का समय निकाला और रचना का मान बढ़ाया | उसके लिए आभार नहीं बस मेरा प्यार
हटाएंबुद्ध का अंतस भी भीगा होगा --
जवाब देंहटाएंदेख तुम्हारा सूना तन - मन
चिर विरहणी, अनंत मन -जोगन --
विरह अग्न में तप हुई कुंदन ! !
करुणा में बुद्ध की सराबोर हो
तू बनी अनंत महाभागा !
प्रिये रेणु ,तुम्हारी रचनाये जितनी बार पढ़ो आत्मविभोर कर देती है मैंने तो तुम्हारी रचना पर पहले भी टिप्पणी की थी लेकिन आज भी वाह -वाह करने से खुद को रोक नहीं पाई ,लाजबाब ,तुम्हारी लेखनी यूँ ही चलती रहे यही प्रार्थना हैं.
प्रिय कामिनी -- इस स्नेह के लिए कोई आभार नहीं बस मेरा स्नेह सखी |
हटाएंबहुत ही उत्कृष्ट सृजन है ये आपका रेणु जी...अनन्त शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंप्रिय सुधा जी -- हार्दिक आभारी हूँ इन स्नेहिल उद्गारों के लिए |
हटाएंवाह....बहुत खूब .....बेहतरीन सृजन आदरणीया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय रविन्द्र जी |
हटाएंबहुत सुन्दर रेणु दी 👌
जवाब देंहटाएंहृदय नारी के प्रेम अंकुर सींचे निष्ठा छोर .....
प्रिय अनिता आपके मधुर शब्दों के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंयशोधरा की व्यथा को बहुत ही खूबसूरत शब्दों में व्यक्त किया हैं आपने रेणु दी। बहुतभी सुंदर।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी सस्नेह आभार |
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंमाता यशोधरा को समर्पित बहुत ही सुंदर भावपूर्ण कविता। माँ यशोधरा की पीड़ा और महानता, दोनों का इतना सुंदर वर्णन, पढ़ कर उनके प्रति मन नतमस्तक हो गया। पर मुझे जो आपकी कविता में सब से अच्छा लगा की आपने उन्हें केवल एक पति वियोग में दुखी स्त्री नहीं दिखाया पर उनकी अध्यात्म बद्धि और आत्मबल का वर्णन किया। बहुत ही प्रेरणादायक कविता मैम, प्रेरणा और दृढ़ता के भाव से बरी हुई रचना है। मन आनंदित हो गया।
हृदय से अत्यंत आभार उस सुंदर रचना के लिये। माँ और नानी को भी पढ़ कर सुनाया, उन्हें भी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
प्रिय अनंता , तुमने इस रचना को पढ़कर अपने अनन्य साहित्य प्रेम का परिचय दिया है | आपकी मम्मी और नानी को रचना पसंद ई , ये मेरा सौभाग्य है | |दोनों को मेरा सस्नेह आभार और शुभकामनाएं| यशोधरा इतिहास की एक करुण पात्र हैं जो सदा मेरे लिए प्रेरणा रही हैं | निकट भविष्य मेंउन पर एक लेख भी लिखने की इच्छा है | तुम्हें बहुत आभार और प्यार इतनी सुंदर स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर कविता ! किन्तु मेरा यह मानना है कि यशोधरा पर त्याग और बलिदान थोपे गए थे. राजकुमार सिद्धार्थ ने उसके साथ अन्याय किया था किन्तु सिद्धार्थ के बुद्ध बनने के बाद उस अन्याय को महिमामंडित करने के लिए उसे यशोधरा का त्याग बताया गया.
जवाब देंहटाएंआदरणीय गोपेश जी , आप जैसे विद्वान इतिहासविद का रचना पर गंभीर चिंतन मेरे लिए अमूल्य है | आप इतिहास के उत्तम जानकार है और ये भी जानते होंगे कि बुद्ध के घर से पलायन के विषय में अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं | कोई कहानी कहती है उन्होंने , ज्ञान की तलाश में जाने के लिए यशोधरा को सोती छोड़ दिया था तो कोई कहानी यशोधरा के बुद्ध को स्वेच्छा से जाने देने की बात कहती है | हां , यशोधरा पर त्याग और बलिदान थोपा गया लगता है पर मुझे लगता है यशोधरा सर्वसमर्थ नारी थी | वह एक समृद्ध राज्य की राजकुमारी और संपन्न प्रान्त की राजवधू थी | वह चाहती तो बुद्ध को बलात वापिस आने के लिए बाध्य कर सकती थी पर उसने बुद्ध के ज्ञान की तलाश को महत्व देते हुए उनकी तलाश नहीं करवाई |यह उसके चरित्र का विराट मानवीय पक्ष है | क्योंकि उसे कहीं ना कहीं पता होगा कि सिद्धार्थ गौतम किस प्रवृति के इंसान थे | औ प्रचलित कथाओं में से एक के अनुसार स्वेच्छा से जाने देने वाली पत्नी के रूप में यशोधरा का मानवता पर अतुलनीय उपकार है | इस दशा में उनका त्याग और समर्पण नितांत सराहनीय और पूजनीय है | आपकी इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ |
हटाएंबहुत गहन भाव लिए यशोधरा के मन को पढ़ते हुए लिखे ।
जवाब देंहटाएंसुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
मैंने भी तथागत और यशोधरा पर कुछ लिखा था । देखती हूँ । लिंक शेयर करूँगी मिल गयी तो ।।
प्रिय दीदी, आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार | आपका ब्लॉग पर नियमित भ्रमण से अपार ख़ुशी होती है |
हटाएंबहुत सुंदर,ऐसी रचनाएं ऐतिहासिक बन जाती है
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनन्दन भारती जी |
हटाएं