जग में हर वस्तु का मोल
पर भैया तुम हो अनमोल !
रहे हमेशा कायम तू
माँगूं यही विधाता से ,
तुम सा कहाँ कोई स्नेही -सखा मेरा
मेरा तो गाँव तेरे दम से ;
सुख- दुःख साझा कर लूँ अपना
रख दूँ तेरे आगे मन खोल !!
बचपन में जब तुमने गिर -गिर
जब ऊँगली पकड चलना सीखा ,
नीलगगन में चंदा भी
तेरे आगे लगता फ़ीका ;
धरती पर मानों देव उतरे
सुनकर तेरे तुतलाते बोल !
बाबुल की बैठक की तुम शोभा
तुमसे माँ का उजला अँगना ,
भाभी की माँग सजी तुमसे
हो तुम उसकी प्रीत का गहना ,
ना धन मेरा तुमसे बढ़कर
चाहे जग दे तराजू तोल !
लेकर राखी के दो तार ,
आऊँ स्नेह का पर्व मनाने ,
घूमूँबचपन की गलियों में
पीहर देखूँ तेरे बहाने ,
बहना माँगे प्यार तेरा बस
ना माँगे राखी का मोल !
माँगूं यही विधाता से ,
तुम सा कहाँ कोई स्नेही -सखा मेरा
मेरा तो गाँव तेरे दम से ;
सुख- दुःख साझा कर लूँ अपना
रख दूँ तेरे आगे मन खोल !!
बचपन में जब तुमने गिर -गिर
जब ऊँगली पकड चलना सीखा ,
नीलगगन में चंदा भी
तेरे आगे लगता फ़ीका ;
धरती पर मानों देव उतरे
सुनकर तेरे तुतलाते बोल !
बाबुल की बैठक की तुम शोभा
तुमसे माँ का उजला अँगना ,
भाभी की माँग सजी तुमसे
हो तुम उसकी प्रीत का गहना ,
ना धन मेरा तुमसे बढ़कर
चाहे जग दे तराजू तोल !
लेकर राखी के दो तार ,
आऊँ स्नेह का पर्व मनाने ,
घूमूँबचपन की गलियों में
पीहर देखूँ तेरे बहाने ,
बहना माँगे प्यार तेरा बस
ना माँगे राखी का मोल !
जग में हर वस्तु का मोल
पर भैया तुम हो अनमोल !
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पर भैया तुम हो अनमोल !
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आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (27-08-2018) को "प्रीत का व्याकरण" (चर्चा अंक-3076) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय सर -- सादर आभार |
हटाएंवाह !!!बहुत खूबसूरत।मन को छू गई आप की रचना। लाजवाब शब्द चयन। रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय नीतू जी |
हटाएंप्रेम से पगी रची बहुत सुंदर अनमोल रचना ।
जवाब देंहटाएंप्रिय कुसुम बहन- आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए आभार |
हटाएंबेहद सुंदर मन छूती भावपूर्ण रचना दी..👌
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/08/84.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- मेरा हर आभार कम है आपके सहयोग के लिए | बस नमन |
हटाएंभावभीने उद्गारों से भरपूर बहुत ही सुन्दर सृजन रेणु जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना जी ---- सस्नेह आभार आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए |
हटाएंलेकर राखी के दो तार -
जवाब देंहटाएंआऊँ स्नेह का पर्व मनाने ,
घूमूं बचपन की गलियों में -
पीहर देखूं तेरे बहाने ;
Waaah.
बहुत सुंदर रचना भाई बहन के स्नेह के तारो का ताना बाना बहुत खूब व्यक्त किया हैं।मेरी कोई सगी बहन नही थी।हम सब भाई बहुत भावुक हो जाते थे बहन का प्यार पाने को।वो एहसास ताज़े हो गए।धन्यवाद और बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए।
प्रिय जफर जी -- रचना के बहाने आपके मन के उदगार जान कर बहुत अच्छा लगा | आपको रचना पसंद आई - ये मेरा सौभाग्य है | सचमुच बहनों के लिए अगर भाई अनमोल है तो भाइयों के लिए बहन का रिक्त स्थान बहुत मर्मान्तक होता है | सस्नेह आभार आपका ब्लॉग पर आकर आमने विचार साझा कने के लिए |
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २७ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
प्रिय ध्रुव - -- आज आपने अपने मंच पर जो मेरा मान बढ़ाया वह आभार से परे है उसके लिए कोई आभार शब्द पर्याप्त नहीं | सस्नेह --
हटाएंबहना मांगे प्यार तेरा बस -
जवाब देंहटाएंना मांगे राखी का मोल !!
जग में हर वस्तु का मोल -
पर भैया तुम हो अनमोल
सुंदर भावपूर्ण रचना है रेणु दी
प्रिय शशि भाई --आपको रचना पसंद आई - मेरा सस्नेह आभार स्वीकार हो |
हटाएंभावभीनी ...
जवाब देंहटाएंमाँ को अंतस तक भिगोती ... प्रेम के पवित्र बंधन को अनंत विस्तार देती
बहुत ही लाजवाब रचना ...
दिन को सार्थक करती ... भाई बहन के रिश्ता सबसे ऊँचा रिश्ता ...
आदरणीय दिगंबर जी -- आपके प्रेरक शब्दों के लिए सादर आभार |
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंवाह!!प्रिय बहन रेनू ,बहुत खूबसूरत रचना ..।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा बहन -- हार्दिक आभार आपका |
हटाएंरक्षाबंधन के अवसर पर इससे खूबसूरत प्रस्तुति और क्या हो सकती है ! बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ आदरणीया ।
आदरणीय राजेश जी -- आप बहुत दिनों बाद मेरे ब्लॉग पर आये , हार्दिक स्वागत है आपका | रचना पर आपके उत्साहवर्धन करते शब्दों के लिए सादर आभार |
हटाएंप्रिय अमित---------- आपकी इस सारगर्भित टिप्पणी ने मुझे अभिभूत कर दिया | अत्यंत स्नेह भरे आपके शब्दों का कोई आभार नहीं कहूंगी , बस मेरी हार्दिक शुभकामनाये आपको | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुशील जी |
जवाब देंहटाएंआपकी रचना भावों से भरी है.
जवाब देंहटाएंसच में राखी का तो एक मोल है लेकिन ये बंधन का तो अनमोल है.
जब को कोई अमूल्य हो तो उसके सामने करोड़ों का मोल भी तुच्छ नजर आता है.
आदरणीय रोहित जी -- रचना पर आपके स्नेह भरे विश्लेषण से मन को अपार हर्ष हुआ और संतोष भी | आपको अपने ब्लॉग पर पाकर अत्यंत हर्ष हुआ | स्वागतम और आभार |
हटाएंजग में हर वस्तु का मोल -
जवाब देंहटाएंपर भैया तुम हो अनमोल !
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.....
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
प्रिय सुधा जी -- ना जाने कितने दिन बाद अपने ब्लॉग पर आपके अनमोल शब्द पाकर मन बहुत आह्लादित हुआ | ये शब्द मेरे ब्लॉग की शोभा हैं | आभार नहीं सुस्वागतम और
हटाएंमेरी हार्दिक शुभकामनायें आपको
माननीया रेणु जी, आज मेरा सौभाग्य कि आपके ब्लॉग तक पहुंची। प्रेममय कर दिया आपने अपने स्नेहिल शब्दों से, अभिभूत हो गई मैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेम का वर्णन किया है।
शुभकामना और बधाई एक और खूबसूरत रचना के लिए।
प्रिय अभिलाषा जी | ना जाने कैसे मेरी आँखों से आपकी ये सुंदर टिप्पणी ओझल रही | कोटि आभार सखी आपके स्नेहिल उद्गारों के लिए |
जवाब देंहटाएंसचमुच अनमोल रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय अयंगर जी | आपके शब्द मेरे लिए अनमोल हैं |
हटाएंबहना माँगे प्यार तेरा बस -
जवाब देंहटाएंना मांगे राखी का मोल !!
जग में हर वस्तु का मोल -
पर भैया तुम हो अनमोल !!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, रेणु दी।
सस्नेह आभार प्रिय ज्योति जी , आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रया के लिए |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार प्रिय कामिनी |
हटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना सखी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय अनुराधा जी |
हटाएंवाह बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार और अभिनन्दन विमल जी |
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण और प्यारभरी रचना है जो सब के मन को स्नेह और अपनत्व से भर देती है।
भाई- बहन का आयु और समय के साथ घर होता सम्बन्ध बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया आपने। बचपन में भी हमारे भाई बहन एक दूसरे के बहुत अच्छे मित्र होते हैं पर जब हम बड़े होते हैं तो उनके होने का महत्व बढ़ और भी बढ़ जाता है।
अंत की पंक्ति जहाँ अपने ये कहा कि बहन को रराखि का मोल नहीं चाहिए, मेरी प्रिय पंक्ति है क्योंकि अब हम हर रिश्ते को पैसों से आंकते हैं या फिर धन कमाने को अपनों के साथ एमी बिताने से ज्यादा जरूरी मानते हैं परन्तु एक बात बोलूँ..... भाई से राखी का उपहार मांगने में एक अलग ही आनंद है। अत्यंत मधुर सुंदर रचना के लिए हृदय से आभार और सादर नमन।
प्रिय अनता तुम्हारी इस भावपूर्ण प्रतिकिया ने ना जाने क्यों मेरी आँखें नम कर दीं| कैसे समझ पाती हूँ इतना कुछ कि मैं उत्तर देने में निरुत्तर हो जा जाती हूँ | आभार नहीं मेरी शुभकामनाएं और प्यार तुम्हारे लिए |
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