चंचल नैना . फूल सी कोमल ,
कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी ?
रूप - माधुरी का महकता उपवन -
लगे निश्छल गाँव की छोरी सी !
मिटाती मलिनता अंतस की
मन प्रान्तर में आ बस जाए ,
रूप धरे अलग -अलग से
मुग्ध, अचम्भित कर जाए ,
किसी पिया की है प्रतीक्षित
लिए मन की चादर कोरी सी !
तेरी चितवन में उलझा मनुवा -
तनिक चैन ना पाए,
यही ज्योत्स्ना चुरा के चंदा
प्रणय का रास रचाए ;
रंग ,गंध , सुर में वास तेरा
तू सृष्टि की रंगीली होरी सी !
अनुराग स्वामिनी मनु की
तुम नटखट शतरूपा सी,
शारदा तुम्हीं लक्ष्मी , सीता,
शिव की शक्तिस्वरूपा सी ,
अपने श्याम सखा में उलझी
तुम्हीं राधिका गोरी सी !!
सृष्टा की अनुपम रचना
तुझ बिन सूना जग का आँगन ,
सदा धरे धरा सा संयम
है विकल जिया का अवलम्बन ,
शुचिता . तुम्हीं स्नेह ,करुणा,
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!
चित्र - गूगल से साभार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-04-2019) को "भाषण हैं घनघोर" (चर्चा अंक-3299) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय सर हार्दिक आभार आपका |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
८ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता -- आपका हार्दिक आभार इस सहयोग के लिए |
हटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंअनुराग स्वामिनी मनु की -
तुम हो नटखट शतरूपा सी
शारदा तुम्हीं लक्ष्मी , सीता-
शिव की शक्ति स्वरूपा सी ;
अपने श्याम सखा में उलझी
तुम्हीं राधिका गोरी सी !!
लाजवाब सृजन
प्रिय रवीन्द्र जी सस्नेह आभार आपके स्नेहिल शब्दों के लिए |
हटाएंइस बेहतरीन रचना हेतु नमन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय रेणु जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत सुन्दर ! जावेद अख्तर का नग्मा - 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' याद आ गया.
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरनीय गोपेश जी |
हटाएंबहुत सुन्दर रचना रेणू जी ! मन पुलकित हुआ !
जवाब देंहटाएंआदरनीय साधना जी -- ब्लॉग पर आपका आना मेरा सौभाग्य है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना रेणू जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सखी | आपका सहयोग अनमोल है |
हटाएंसृष्टा की अनुपम रचना
जवाब देंहटाएंतुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी
बहुत ही सुंदर.... सखी,स्नेह
प्रिय सखी -- हर आभार से परे है सखी आपका ये स्नेह जिसके लिए बस मेरा प्यार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंमिटाती मलिनता अंतस की
मन प्रान्तर में आ बस जाए
रूप धरे अलग -अलग से -
मुग्ध, अचम्भित कर जाए
बहुत ही सुंदर,सजीव, शालीन और भावपूर्ण रचना है रेणु दी।
और अंंतिम पंक्ति
माँ की मीठी लोरी सी...
ने इस रचना को सम्पूर्णता प्रदान कर दी है।
प्रिय शशि भैया -- आपने सच कहा माँ बनकर नारी सम्पूर्णता पाती है | सस्नेह आभार और शुभकामनायें |
हटाएंतुम माँ की मीठी लोरी सी ...
जवाब देंहटाएंतुम ही माँ, तुम शक्ति, अर्चना, तप साधना
चरण वंदन, भक्ति, शुभ-चरणों में प्रीत प्रार्थना ...
आपकी रचना पढने के बाद स्वतः निकले मन के भाव जो समर्पित हैं इस रचना को, माँ को, सगत नारी संसार को ...
आदरणीय दिगम्बर जी आ --- रचना पर आपकी त्वरित काव्यात्मक टिप्पणी आपकी नारी के प्रति अप्रितम सम्मान को इंगित करती है | आपके सहयोग की सदैव आभारी रहूंगी | सादर शुभकामनायें और आभार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंसृष्टा की अनुपम रचना
तुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, रेणु दी।
सस्नेह आभार आपका प्रिय ज्योति जी |
हटाएंआदरणीया रेणु जी, सुंदर तत्सम शब्दों से गुम्फित भावना प्रधान रचना के लिए हार्दिक साधुवाद!
जवाब देंहटाएंमेरा पहला कविता संग्रह "कौंध" नाम से अमेज़ॉन के किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग पर ई बुक के रूम में प्रकाशित हो गया है।
नीचे दिए गए लिंक पर आप क्लिक करेंगें तो आपको अमेज़ॉन के किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग के साइट पर ले जाएगा। वहाँ आप "Buy now with one click"पर जैसे ही क्लिक करेंगें, आपको पेमेंट ऑप्शन पर स्क्रीन खुलेगा। आप अपने क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, या वालेट जैसे paytm, फ़ोनपे या bheem app से भी ₹69 या विदेशी मुद्रा में $1 पेमेंट कर डाऊनलोड कर सकते हैं। इसके लिए आप अमेज़न का किंडल app डाउनलोड कर लें। डाउन लोड होते ही किंडल अप्प पर read now पर क्लिक करें और पूरी किताब कभी भी पढ़ें, हमेशा के लिए ।
अगर आप को दिक्कत हो तो मेरे मेल आई डी brajendra.nath.mishra@gmail.com मुझे मेल करें या मेरे मोबाइल न 9234551852 पर सम्पर्क कर सकती है।
सादर आभार!
ब्रजेंद्रनाथ
कौंध: हिंदी कविता संग्रह (Hindi Edition) https://www.amazon.in/dp/B07Q4HTTPF/ref=cm_sw_r_cp_apa_i_A94NCbHC5GHGR
सादर आभार
ब्रजेंद्रनाथ
आआआड्णीय़ सर -- आपके उत्साहवर्धन करते शब्द बहुत विशेष है मेरे लिए |आपको आपके कविता संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बधाई | मैं जरुर आपकी दी गई जानकारी से आपकी पुस्तक मंगवाऊँगी | सादर आभार आपका |
हटाएंतेरी चितवन में उलझा मनुवा -
जवाब देंहटाएंतनिक चैन ना पाए,
यही ज्योत्स्ना चुरा के चंदा
प्रणय का रास रचाए ;
रंग ,गंध , सुर में वास तेरा -
तू सृष्टि की रंगीली होरी सी ! ! ! !
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...
वाह!!!!
लाजवाब बस लाजवाब रेणु जी इतनी शानदार रचना कि निशब्द हूँ मैं....बहुत बहुत बधाई सखी सुन्दर सृजन हेतु...
प्रिय सुधा जी -- रचना पर आपका विस्तृत और भावपूर्ण अवलोकन रचना को सम्पूर्णता प्रदान करता है | आपके सहयोग के लिए आभार नहीं बस मेरा प्यार सखी |
हटाएंनारी के विविध गुणों और स्वरूपों का बड़ा मनमोहक चित्रण करती अनुपम रचना । लाजवाब और सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंरेणु जी ।
प्रिय मीना बहन -- रचना पर आपके विस्तृत और स्नेहिल अवलोकन के लिए आभारी हूँ | ये स्नेह बनाये रखिये |
हटाएंबहुत ही सुन्दर रेणु दी
जवाब देंहटाएंसादर
प्रिय अनीता -- आपके स्नेहिल शब्दों के लिए आभार के साथ मेरा प्यार भी |
हटाएंवाह , बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआदरनी कविराज -- आपकी वाह मेरे लिए विशेष पुरस्कार सरीखी है | सादर आभार और अभिनन्दन |
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा बहन - हार्दिक आभार आपके स्नेहिल शब्दों के लिए |
हटाएंसचमुच रेनु बहन आपकी यह कृति सृष्टा की अनुपम कृति ही है
जवाब देंहटाएंइस में सुरभी है, सरसता है ,सौंदर्य है अलंकार है और प्राजंलता है
और मेरे पास इतने शब्द नही की इस सृजन की तारीफ कर सकूं ।
अभिराम ।
सदा मां शारदे आपकी लेखनी पर आशीष बरसाती रहे ।
सस्नेह ।
प्रिय कुसुम बहन -- आपकी रचना पर प्रतिक्रिया मुझे विशेष अनुभूति देती है |आपकी शुभकामनायें और उत्सावर्धन करते शब्द मेरी लेखनी की ऊर्जा हैं | आभार नहीं मेरा प्यार सखी |
हटाएंसृष्टा की अनुपम रचना
जवाब देंहटाएंतुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!.... वाह , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आदरणीय वन्दना जी ---- गूगल प्लस के जाने के बाद आपको अपने ब्लॉग पर देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है | रचना पर आपके स्नेहिल शब्द अनमोल हैं | सस्नेह आभार आपका |
जवाब देंहटाएंसृष्टा की अनुपम रचना
जवाब देंहटाएंतुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!
...सच में अनेक रूप संजोये हैं सृष्टा की एक कृति ... लाज़वाब अभिव्यक्ति..
आदरणीय सर सुस्वागतम और हार्दिक आभार आपका |
हटाएंसृष्टा की अनुपम रचना
जवाब देंहटाएंतुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!.....सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना का सार्वभौमिक सत्य. अद्भुत रचना, वाह!
आदरणीय विश्वमोहन जी ०-- सादर आभार आपकी सुंदर भावपूर्ण टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 14 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार - आदरणीय दीदी और मुखरित मौन मंच |
हटाएंसृष्टा की अनुपम रचना
जवाब देंहटाएंतुझ बिन सूना जग का आँगन -
धरे धरा सा संयम -
है विकल जिया का अवलम्बन
शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
तुम माँ की मीठी लोरी सी !!
वाह वाह
वाह वाह
इसके अतिरिक्त कुछ कहने की योग्यता नही मुझमें
नमन आपकी कलम को आदरणीय दीदी जी
शुभ संध्या 🙏
प्रिय आँचल , आज तो तुमने सारी वाह वाह मेरी ही झोली में डाल दी | तुम्हारी सराहना को सम्मान है | खुश रहो | मेरी शुभकामनायें तुम्हारे लिए |
हटाएंआपके लिंक से यहाँ पहुँचने का अवसर मिला..बहुत ही खूबसूरत,महान टिप्पणियों के बाद मैं क्या लिखूँ,कुछ समझ नहीं आ रहा..बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इन्ही सुंदर भावों को आप सृजित करती रहें और हमारी प्रेरणा बनती रहें..आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ एवं नमन..
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी , मेरी रचना से कहीं बढ़कर है आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया | ब्लॉग पर आपके आगमन का हार्दिक आभार और शुक्रिया |
हटाएंआपकी लिखी रचना आज सोमवार 8 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी सादर आमंत्रित हैं आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्या जी , मुखरित मौन मंच और आपकी आभारी हूँ |
हटाएंनारी के भिन्न भिन्न स्वरूपों को बखूबी शब्दों में बांधा है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति ।
आदरणीय दीदी , आपने कविता के अस्फुट स्वरों को सराहा मेरा प्रयास सफल हुआ | ब्लॉग पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए कोटि आभार आपका |
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