मेरी प्रिय मित्र मंडली

सोमवार, 18 मई 2020

क्षमा करना हे श्रमवीर!


औरंगबाद के दिवंगत   श्रमवीरों के नाम -- 

 Father Who Lost Two Sons In Aurangabad Train Accident Is Broken ...
  ऐसे सोये- सोते ही रहे
भला! ऐसी भी क्या आँख लगी ?
पहचान सके ना मौत की आहट,
 अनमोल जिन्दगी गयी ठगी |


फूलों का बिस्तर तो ना था,
क्यों  लेट गये मौत की पटरी ?
 लेकर  चले थे शहर से  जो ,
 बिखर गयी  सपनों की  गठरी  |
ना ढली  स्याह रात पीड़ा की,
जीवन की  ना नई भोर उगी
 |

क्या मोल मिला तुम्हें   श्रम का ?
हाथ   रहे सदा ही   खाली, 
देह  गयी मिटती पल-पल 
मिटी  ना दुर्भाग्य की छाया काली |
 रहा सदा  मृगतृष्णा  बन  जीवन,
 सोई  हुई ना  आस जगी |

 परदेशी थे ,  परदेशी  ही रहे,
अपना पाया  ना शहर तुम्हें  |
गले लगाने  कोई मसीहा, 
ना आया किसी भी  पहर तुम्हें |
 भूले   निष्ठा  अगाध तुम्हारी,
 उठेगी  ना ये नज़र    झुकी |


रौंदा  रफ़्तार ने कसर ना छोड़ी,
लील गए रस्ते जिंदगानी |
सनीं लाल लहू    से सड़कें, 
पग -पग दारुण हुई कहानी|
मौत लिपट दामन से  चल दी,
 अनगिन टुकड़ों में    देह   बंटी |
 
शर्मिन्दा  थी पहले ही मानवता ,
 तुम्हारे  पाँव के छालों से |
कहाँ बच पाएगा  इतिहास,
कटी  देहों  के  इन सवालों से |
क्यों मुख मोड़  चली जिंदगी,
 टूटी   साँसों इतिहास  की  चाल सधी |


क्षमा करना ,हे   श्रमवीर ! 
दे सके   ना तुम्हें संबल  कोई | 
जोखिम उठा  जिस  ओर चले,  
मिल सकी   ना   मंजिल कोई |
 ना  चूम सके  घर -गाँव की चौखट
छू पाए ना माटी स्नेह  पगी |

53 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. उत्तर
    1. सर्वप्रथम ,आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है , प्रतिभा जी🙏🙏। आपने सच कहा , श्रमिक वर्ग की बेबसी और विवशता की कहानियाँ मन को विचलित कर रहीं हैं। सादर🙏🙏

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  3. श्रमिक जीवन की यही विडंबना है, स्नेह और माटी से भी ऊपर पेट की ज्वाला है।
    और जब गांव-घर छूटा तो वह भी अपना नहीं फिर तो सिर्फ़ भगोड़ा है ।
    जहां है वही जीना है और मरना है .
    घर वापसी पर सब कुछ आसान हो जाए ,ऐसा संभव नहीं है।

    तीन दशक पूर्व मैंने पेट के लिए घर छोड़ा और मैं भगोड़ा हो गया। पैतृक संपत्ति में भी मेरा कोई अधिकार नहीं रहि और जहाँँ हूँँ वहाँँ भी कोई अपना नहीं, श्रमजीवी पत्रकार जो ठहरा, तो कौन अपना होता ?
    भावपूर्ण रचना रेणु दी, नमन।

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    1. शशि भैया, श्रमिक वर्ग की पीड़ा आपसे बेहतर कौन समझ सकता है ? आप उनके सुख - दुख के प्रत्यक्ष साक्षी रहे हैं। रचना पर आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार🙏🙏

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  4. रेणु दी, श्रमिकों की व्यथा को बहुत ही अच्छे से व्यक्त किया हैं आपने। बधाई।

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  5. श्रमवीरों के शोक संतप्त जीवन की यह कारुणिक कहानी कहीं न कहीं समाज की शर्मिंदगी पर गहरे सवाल उठा रही है। सच कहूँ तो अब कुछ लिखना औपचारिकता मात्र ही रह गया है। इसलिए बेहतर यहीं है- मन लाचार, आँखे भींगी और मुख नि:शब्द!!!

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    1. जी, आपने सच कहा आदरणीय विश्वमोहन जी, इस विषय पर लिखना औपचारिकता मात्र रह गया है। रचना पर आपके अनमोल विचारों के लिए हार्दिक आभार 🙏🙏

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना "     (चर्चा अंक-3707)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आदरणीय गुरु जी, आपकी और चर्चा मंच की आभारी हूँ 🙏🙏🙏

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  7. बेहद मर्मस्पर्शी रचना सखी

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  8. फूलों का बिस्तर तो ना था -
    क्यों लेट गये मौत की पटरी ?

    ये बात तो तुमने बिलकुल सही कहा सखी, आखिर " रेल की पटरी के बीच " क्योँ सोये, क्या वो बेघर होने का दर्द और अंतहीन सफर से थक कर , हमेशा के लिए आराम करने की चाह में सो गए थे? श्रर्मिकों के दर्द को तुमने जुबां दे दी हैं सखी ,मार्मिक सृजन

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    1. प्रिय कामिनी, तुमने रचना के मर्म को बखूबी समझा है सखी। तुम्हारे स्श्योग की आभारी रहूँगी। 🙏🙏🌹🌹

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  9. रेणु दीदी,

    व्यथित है मन इस कोरोना काल में भी यह सब देखते हुए, कभी किसी ने यह न सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है ....

    क्या इस काल को भी,
    ऐसा नृत्य करना था।

    मृत्यु ने तांडव रचा,
    कब किसने सोचा था।।

    क्या यहां भी कोई सोता है,
    कब किसने सोचा था।

    पर इस देश की विडंबना यही है जो नही होना चाहिए, वह हो रहा है। एक मजदूर की व्यथा का दिल झकजोर देने वाले वृतांत का चित्रण किया है आपने।

    🙏🏻🙏🏻

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    1. प्रिय अनुज मुकेश, रचना के अधूरे भावों को विस्तार देती आपकी काव्यात्मक टिप्पणी अनमोल है। कौन है जो इन हालात के मारे इन बेबस
      मजदूरों की व्यथा कथा से विचलित ना हुआ हो। आपका हार्दिक आभार । 🙏💐💐

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    2. प्रिय अनुज मुकेश . आपकी अनमोल काव्यात्मक टिप्पणी ने रचना के अधूरे भावों को विस्तार दिया है | आपने सच कहा जो नहीं होना चाहिए था वो ही इन वक्त के मारों के साथ हुआ | हार्दिक आभार विषय पर आपकी सशक्त प्रतिक्रिया के लिए |

      हटाएं
  10. फूलों का बिस्तर तो ना था -
    क्यों लेट गये मौत की पटरी ?
    लेकर चले थे शहर से जो -
    बिखर गयी सपनों की गठरी ,
    ना ढली स्याह रात पीड़ा की
    जीवन की ना नई भोर उगी !
    मन में यही प्रश्न आता है कि क्यों ...रेल की पटरी पर क्यों.....आहट भी न सुन पाये ...आखिर क्यों..
    पर अब किसी भी प्रश्न का कोई औचित्य नहीं...
    बेहद मर्मस्पर्शी घटना पर हृदयस्पर्शी रचना लिखी है आपने सखी! सबके मन के प्रश्न श्रमिकों की दशा एवं अमानवीयता की हद दर्शाती लाजवाब कृति।

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    उत्तर
    1. प्रिय सुधा जी , जब मैंने भी प्रथम बार इस दर्दनाक हादसे के बारे में सुना तो यही प्रश्न विचलित मन में कौंधा कि वे मौत की इस भयंकर आहट को भी क्यों सुन ना सके !!यही प्रश्न हर संवेदनशील प्राणी के मन में उठ रहा है | रचना पर आपकी सशक्त प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार |

      हटाएं
  11. हृदय स्पर्शी रचना रेणु बहन अंदर तक दहला गये ये हादसे, कैसी विडम्बना है ,कभी लगता है सच ही कहा है
    शास्त्रों में कि मृत्यु समय स्थान और साधन सभी निश्चित और शाश्वत है पर
    संवेदनशील मन कैसे स्वीकारें कि ये सब विधवा का विधान है???
    संघातिक

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    उत्तर
    1. आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहवर्धक और अनमोल है प्रिय कुसुम बहन | सस्नेह आभार , रचना पर आपके संवेदनशील चिंतन के लिए |

      हटाएं
  12. विधवा को विधना पढ़ें कृपया।

    जवाब देंहटाएं

  13.   ऐसे सोये- सोते ही रहे- -- ,

    भला! ऐसी भी क्या आँख लगी ?
    पहचान सके ना मौत कीआहट-
     अनमोल जिन्दगी गयी ठगी !

    बहुत मार्मिक रचना रेणु दी... 
    अत्यंत दुखद...
    आहत हुआ था मन बड़ा जिस दिन खबर देखी थी।
    नियति के खेल भी निराले हैं बड़े

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    1. आपकी सशक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका सस्नेह आभार प्रिय सुधा जी | हर संवेदनशील मन के यही प्रश्न कि नियति भी क्या इन्ही साधनविहीनों की खराब होनी थी ?

      हटाएं
  14. जिस देश में मजदूर अपनी भूख को मिटाने दर दर भटकें और बिन मौत मरें उस देश के नेताओं को क्या कहें
    मन नम हो जाता है
    मन को द्रवित करती रचना
    बधाई
    पढ़े--लौट रहे हैं अपने गांव

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    1. आदरनीय सर , आपकी सशक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका सस्नेह आभार | भगवान् और इंसान दोनों ने इन असहाय लोगों को बड़ी पीड़ा दी है | उनके पलायन की तस्वीरें सदी की सबसे दर्दनाक तस्वीरें हैं | सादर --

      हटाएं
  15. मार्मिक अभिव्यक्ति ...
    सच में क्षमा मांगने का समय है .... निर्माण के सहभागी है जो, हमारे लिए निर्माण करते हाथ गला देते हैं ... आज हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं उनके लिए ... दर दर भटक रहे हैं ये लोग ... राजनीति का शिकार हो रहे हैं ... कितने अफ़सोस की बात है ...
    आपकी लेखनी की संवेदना को नमन करता हूँ रेनू जी ...

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    उत्तर
    1. आपकी सशक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका सस्नेह आभार दिगम्बर जी | अर्थ व्यवस्था के इन स्तंभों को दोहरी मार पड़ी है एक प्रकृति और दूसरे व्यक्ति की असंवेदनशीलता की | सादर

      हटाएं
  16. भला! ऐसी भी क्या आँख लगी ?
    पहचान सके ना मौत कीआहट-
    अनमोल जिन्दगी गयी ठगी

    हृदय स्पर्शी... हृदय को द्रवित करती रचना

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

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    उत्तर
    1. आपकी सशक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका सस्नेह आभार ज़ोया जी |

      हटाएं
  17. अत्यन्त मॉर्मिक ह्रदयस्पर्शी रचना

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    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका सस्नेह आभार आदरणीय दीदी|

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  18. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २२ "मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी" (चर्चा अंक-३७११) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय अनीता| चर्चा मंच का हिस्सा बनना मेरा सौभाग्य है |

      हटाएं
  19. प्रिय रेणु,आपकी यह रचना रीडिंग लिस्ट में आते ही पढ़ ली थी किंतु वास्तव में मन इन सब दुर्घटनाओं और इन पर चल रही गंदी राजनीति से इतना व्यथित था कि कुछ कहने की स्थिति ना रही। आपने इतने मार्मिक शब्दों में इन हालातों का चित्रण किया है जिसे पढ़कर मन और भी व्यथित हो उठा था और कभी कभी लगता है कि धिक्कार है हम पर !!!

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  20. प्रिय मीना , आपकी भावपूर्ण सशक्त प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार| सच है मासूमों की जान पर कुत्सित राजनीति असंवेदनशीलता की परिचायक है | सदी की सबसे करूणाभरी और पीड़ादायक तस्वीरें इन श्रमवीरों के पलायन के रूप में सारी दुनिया ने देखी |पर बात यहीं तक रह जाती तो फिर भी ठीक थी इन मासूमों की राह्बीच दर्दनाक मौतों ने स्तब्ध कर दिया और रेल की पटरी पर मौतें
    दहला गयी , साथ में अनगिन प्रश्न खड़े कर गयी | आखिर ऐसा क्यों हुआ होगा ?

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  21. उन अभागे निरीह मजदूरों की अकाल मृत्यु की पीड़ा को आपकी पंक्तियों ने जीवंत कर दिया रेणु जी!॥ बहुत व्यथित कर दिया आपकी इन मार्मिक पंक्तियों ने!

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    1. आदरणीय सर , ऐसी मर्मान्तक रचना ने सुनने वालों के ह्रदय को विदीर्ण कर दिया | जिन्होंने देखी अथवा भुगती है उनका दुःख शब्दों में नहीं समा सकता | हार्दिक आभार आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए |

      हटाएं
  22. आदरणीया मैम ,
    अति सुंदर और भावपूर्ण कविता। पढ़ कर आँखों में आंसू आ गए।
    उस दुखद घटना का सारा चलचित्र आँखों के आगे आ गया जब हमने न्यूज़ पर देखा था।
    मैं आपकी सभी कविताएँ बार बार पढ़ सकती हूँ पर इसे पुनः पढ़ने का सहस नहीं है।
    पर सब से दुखद विषय तो यह है की चाहे इस कविता को पढ़ने और सुनने वालों का मन विदीर्ण क्यों न हो जाये , इसके उत्तरदायी स्वार्थी सत्ताधारी व्यक्तियों के कानों में जूँ नहीं रेंगती।
    उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता, कितनी सरकारें आयीं गयीं पर हमारे श्रमवीरों के बारे में तो किसी ने विचार ही नहीं किया।
    आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर और संवेदनशील है । ह्रदय से आभार।

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  23. प्रिय अनंता , कवि मन में समस्त अनुभूतियों को ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता होती है |आप बहुत भावुकमना और उदारमना हैं| इसीलिए आप उन अभागे इंसानों की व्यथा को पहचान पाई || कविमन की यही विशेषता है , किसी का दर्द उसके भीतर से होकर बहता है | भले सत्तामद में चूर सत्ताधारियों के लिए उनकी मर्मान्तक मौतों का कोई महत्व ना हो ,पर कलमकारों का कर्तव्य है कि अपने लेखन के माध्यम से उनका दर्द जीवित रखे और दुनिया को बताये | आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार और प्यार |

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  24. आदरणीया मैम,
    आपके लिये मेरे मन में पहले भी बहुत आदर, बहुत सम्मान था, आज और चौगुना बढ़ गया। आपकी सभी बातें मेरे लिए शिक्षाप्रद होती हैं। मेरा सच में ही बहुत सौभाग्य है कि मुझे आपसे जुड़ने का अवसर मिला। आपकी सारी बातें याद तो सदैव ही रहेंगी मुझे।
    हाँ, किसी भी रचनाकार या कलाकार का यह कर्तव्य ज़रूर है और आपने अपनी कविता में इस कर्तव्य को बहुत ही सुंदर रूप दिया है।
    अत्यंत आभार

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