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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

सुन जोगन !--- कविता [ Hindi poem]

  

सुन जोगन हुए किसके जोगी ,
ये व्यर्थ लगन मत मन कर रोगी । 

पग जोगी के काल का फेरा, 

एक जगह कहाँ उसका डेरा । 

कहीं दिन तो कहीं रात बिताये ,

बादल सा उड़ लौट ना आये । 

झूठा  अपनापन जोगी  का, 
तन उजला ,मैला मन जोगी का  ।   

मत सजा  ये  मिथ्या सपने, 
बेगाने कब हुये हैं अपने  ? 

क्यों ले जीवन भर का रोना,

ना जोगी ने तेरा होना  । 

जिसने  जोगी संग प्रीत लगायी ,

करी विरह  के संग सगाई  । 
  
  

73 टिप्‍पणियां:

  1. वाह दी अत्यंत हृदयस्पर्शी,गहन भावों से गूँथी सुंदर कृति👌

    जिसने जोगी संग प्रीत लगायी -
    करी विरह के संग सगाई !!

    सारयुक्त प्रभावशाली पंक्तियाँ दी।
    लिखती रहें मेरा असीम स्नेह और शुभकामनाएं दी।

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    1. प्रिय श्वेता, ये रचना तुम्हारी रचना पर प्रतिक्रिया स्वरूप लिखी गई थी। आजकल लिखना नहीं हो पा रहा, सोचा यही साझा कर दूँ। हार्दिक आभार तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए🌹❤

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  2. वाह!सखी रेनु जी ,बेहतरीन सृजन ।

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  3. बहुत सुन्दर ,मार्मिक सृजन प्रिय रेनू जी।

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  4. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, रेणु दी।

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. दार्शनिक अंदाज..गहन भावों को शब्दों में निरूपित कर दिया आपने रेणु जी..सुन्दर कृति..

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    1. हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय जिज्ञासा जी ❤🌹

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  7. वाह रेणु बहन मनभावन चेतावनी , बहुत सुंदर सृजन ।
    सुंदर आध्यात्मिक दृष्टि से भी गहन भाव लिए अभिनव सृजन।
    सस्नेह।

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    1. रचना के मर्म को स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए आभार और अभिनंदन प्रिय कुसुम बहन ❤🌹

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  8. भावपूर्ण और प्रभावी रचना
    बहुत सुंदर
    बधाई

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  9. जोगन तो प्रभु से लौ लगाती है, ना की जोगी से ! जिसने योग अपना लिया वह तो हर चीज से विरक्त हो जाता है

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  10. आपने सत्य कहा गगन जी। एक जोगन ईश्वर से प्रीति लगाती है ना कि किसी जोगी से। पर लोक जीवन में ऐसी अनेक कहानियाँ कही सुनी जाती हैं जिनमें जोगी के प्रति सांसारिक प्रेम का वर्णन मिलता है। और ये रचना ऐसे ही प्रेम को समर्पित रचना पर काव्यात्मक टिप्पणी स्वरूप लिखी गयी थी। यहाँ जोगन का तात्पर्य उस भगवाधारी जोगन से नहीं है।मात्र जोगी के प्रति अनुराग रखने वाली पात्र को प्रतीकात्मक रूप में जोगन कहा गया है। बहुत - बहुत आभार आपकी बेबाक प्रतिक्रिया के लिए।

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  11. हम उत्तर प्रदेश के वासी हैं. हम जोगी-योगी के खिलाफ़ एक शब्द भी सहन नहीं कर सकते.

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    1. 😄😄आपने सत्य कहा । योगी जैसे जोगी की पावर का अंदाजा हमें भी है 😄😃सादर आभार आपकी रोचक, बेबाक प्रतिक्रिया के लिए🙏🙏

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  12. जोगन प्रतीक को बड़े सुंदर ढ़ंग से उपयोग किया है आपने।

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  13. सरल सहज विन्यास मे बुनी सच्ची कविता, साधु !

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  14. वह बहुत खूब, दार्शनिक अंदाज़ ...

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  15. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-3-21) को "बहुत कठिन है राह" (चर्चा अंक-3993) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  16. सुन जोगन हुए किसके जोगी ?
    ये व्यर्थ लगन मत मन कर रोगी !

    पग जोगी के काल का फेरा
    एक जगह कहाँ उसका डेरा ?

    "प्रेम-मगन जोगन को कहाँ समझ आती है ये समझदारी की बातें "

    लाज़बाब सृजन,हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति सखी

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    1. हार्दिक आभार सखी तुम्हारी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए🌹🌹

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  17. भले ही कितना ही समझा लो , मन लगना होगा तो लग ही जायेगा । सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. संगीता जी, सबसे पहले मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। आभारी हूँ आपने रचना पढ़ी और प्रतिक्रिया दी ❤❤🙏🌹🌹

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  18. बहुत ही खूबसूरती से सच्चाई को दिखाती हुई खूबसूरत पंक्ति जिसे आपने बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है

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    1. प्रिय मनीषा, बहुत -बहुत आभार आपका ❤🌹

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    2. मैम इसकी कोई जरूरत नहीं आप तारीफ के योग्य हैं,
      पर हां मैंने नई पोस्ट डाली तो कृपया एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त कीजिए!कि क्या त्रुटि है और क्या खूबी!

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  19. आध्यात्मिकता और सांसारिकता का समन्वय लिए अत्यंत सुन्दर
    सृजन ।

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    1. हार्दिक आभार मीना जी आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए🌹🌹

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  20. झूठा अपनापन जोगी का,
    तन उजला ,मैला मन जोगी का !

    मत सजा ये मिथ्या सपने,
    बेगाने कब हुये हैं अपने ?? ---बहुत अच्छी रचना है...।

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  21. खूबसूरती से सच्चाई को दिखाती हुई खूबसूरत रचना

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    1. सस्नेह आभार प्रिय संजय | बहुत दिनों बाद तुम्हारा ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगा |

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  22. बहुत ही सुन्दर व दिव्य भावों से ओतप्रोत मुग्ध करती कविता - - साधुवाद सह।

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    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति के लिए सादर आभार शांतनु जी |

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  23. बहुत खूबसूरत

    जोगी जैसा मन भी है चंचल
    आसमाँ ओढ़े बादल सा अंचल

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    1. सादर आभार आपका | ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |

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  24. जिसने जोगी संग प्रीत लगायी -
    करी विरह के संग सगाई !! वाह! निर्गुण का अविरल प्रवाह !!!!

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    1. सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी | आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए |

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  25. आध्यात्म औऱ दर्शन का खूबसूरत चित्रण
    जोगन का आलौकिक प्रेम ही उसकी साधना का प्रतीक है, इस प्रेम को मनुष्य को समझना होगा

    बहुत अच्छी रचना
    बधाई

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    1. सादर आभार आदरणीय सर |आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया अनमोल है |

      हटाएं
  26. "झूठा अपनापन जोगी का..." इन दो पंक्तियों में गजब का विरोधाभास देखने को मिला है, सार है, जान ये पंक्तियां।
    उत्तम कृति।
    आपके कहने पर नई रचना डाली है आइयेगा गुजरे वक़्त में से...

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    उत्तर
    1. प्रिय रोहित बहुत -बहुत आभार और अभिनन्दन | जरुर आ रही हूँ तुम्हारी रचना पढने | देर हो गयी आते आते |हार्दिक स्नेह |

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  27. बहुत अच्छा गीत।बधाई और शुभकामनाएं।आप यशस्वी हों

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  28. बहुत सुंदर भाव 🙏 भोलेबाबा की कृपादृष्टि आप पर सदा बनी रहे।🙏 महाशिवरात्रि पर्व की आपको परिवार सहित शुभकामनाएं

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  29. सस्नेह आभार सवाई जी | ब्लॉग पर आपका स्वागत है |

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  30. पग जोगी के काल का फेरा
    एक जगह कहाँ उसका डेरा ?

    कहीं दिन तो कहीं रात बिताये -
    बादल सा उड़ लौट ना आये !

    बहुत ही सटीक ....
    पर जोगन भी कहाँ सोच समझ कर प्रीत करती है
    और एक बार प्रीत जो हुई तो विरह में जीवन भर जलती है
    पर किसी के भी समझाये कहाँ पीछे हटती है
    बहुत ही लाजवाब गीत।

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    1. रचना के मर्म को छूती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय सुधा जी।

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  31. सुंदर अभिव्यक्ति, अति उत्तम,सत्य का आभास कराती हुई एक बेहतरीन रचना, बधाई हो आपको सादर नमन

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    1. प्रिय ज्योति जी, ब्लॉग पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। आपके ब्लॉग भ्रमन से मन आह्लादित है। कोटि आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए।

      हटाएं
  32. कमाल का हर शेर ... आध्यात्म, फकीराना अंदाज़ और जोगी का भाव लिए ...
    हर बंध में अलग भाव ... सटीक, बिम्ब उतार के रख देती है जोगन का यस कमाल की अभिव्यक्ति ...

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Yes

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