सुन जोगन हुए किसके जोगी ,
ये व्यर्थ लगन मत मन कर रोगी ।
पग जोगी के काल का फेरा,
एक जगह कहाँ उसका डेरा ।
कहीं दिन तो कहीं रात बिताये ,
बादल सा उड़ लौट ना आये ।
झूठा अपनापन जोगी का, तन उजला ,मैला मन जोगी का ।
मत सजा ये मिथ्या सपने,
बेगाने कब हुये हैं अपने ?
क्यों ले जीवन भर का रोना,
ना जोगी ने तेरा होना ।
जिसने जोगी संग प्रीत लगायी ,
करी विरह के संग सगाई ।
पग जोगी के काल का फेरा,
एक जगह कहाँ उसका डेरा ।
कहीं दिन तो कहीं रात बिताये ,
बादल सा उड़ लौट ना आये ।
झूठा अपनापन जोगी का,
बेगाने कब हुये हैं अपने ?
क्यों ले जीवन भर का रोना,
ना जोगी ने तेरा होना ।
जिसने जोगी संग प्रीत लगायी ,
करी विरह के संग सगाई ।
वाह दी अत्यंत हृदयस्पर्शी,गहन भावों से गूँथी सुंदर कृति👌
जवाब देंहटाएंजिसने जोगी संग प्रीत लगायी -
करी विरह के संग सगाई !!
सारयुक्त प्रभावशाली पंक्तियाँ दी।
लिखती रहें मेरा असीम स्नेह और शुभकामनाएं दी।
प्रिय श्वेता, ये रचना तुम्हारी रचना पर प्रतिक्रिया स्वरूप लिखी गई थी। आजकल लिखना नहीं हो पा रहा, सोचा यही साझा कर दूँ। हार्दिक आभार तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए🌹❤
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार अभिलाषा जी 🌹❤
हटाएंबहुत सुंदर रेणु जी ।
जवाब देंहटाएंसादर ,सस्नेह आभार जितेंद्र जी🙏🙏
हटाएंवाह!सखी रेनु जी ,बेहतरीन सृजन ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन शुभा जी जी 🌹❤
हटाएंबहुत सुन्दर ,मार्मिक सृजन प्रिय रेनू जी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन उर्मि दीदी❤🙏🙏 🌹
हटाएंदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, रेणु दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय ज्योति जी ❤🌹
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन बड़े भैया🙏🙏 💐💐
हटाएंदार्शनिक अंदाज..गहन भावों को शब्दों में निरूपित कर दिया आपने रेणु जी..सुन्दर कृति..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय जिज्ञासा जी ❤🌹
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित गीतिका।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन आदरणीय सर🙏🙏 💐💐
हटाएंवाह रेणु बहन मनभावन चेतावनी , बहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुंदर आध्यात्मिक दृष्टि से भी गहन भाव लिए अभिनव सृजन।
सस्नेह।
रचना के मर्म को स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए आभार और अभिनंदन प्रिय कुसुम बहन ❤🌹
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन आलोक जी🙏🙏 💐💐
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंओंकार जी,सादर आभार और अभिनंदन 🙏🙏 💐💐
हटाएंभावपूर्ण और प्रभावी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बधाई
सादर आभार और अभिनंदन आदरणीय सर🙏🙏 💐💐
हटाएंजोगन तो प्रभु से लौ लगाती है, ना की जोगी से ! जिसने योग अपना लिया वह तो हर चीज से विरक्त हो जाता है
जवाब देंहटाएंआपने सत्य कहा गगन जी। एक जोगन ईश्वर से प्रीति लगाती है ना कि किसी जोगी से। पर लोक जीवन में ऐसी अनेक कहानियाँ कही सुनी जाती हैं जिनमें जोगी के प्रति सांसारिक प्रेम का वर्णन मिलता है। और ये रचना ऐसे ही प्रेम को समर्पित रचना पर काव्यात्मक टिप्पणी स्वरूप लिखी गयी थी। यहाँ जोगन का तात्पर्य उस भगवाधारी जोगन से नहीं है।मात्र जोगी के प्रति अनुराग रखने वाली पात्र को प्रतीकात्मक रूप में जोगन कहा गया है। बहुत - बहुत आभार आपकी बेबाक प्रतिक्रिया के लिए।
जवाब देंहटाएंहम उत्तर प्रदेश के वासी हैं. हम जोगी-योगी के खिलाफ़ एक शब्द भी सहन नहीं कर सकते.
जवाब देंहटाएं😄😄आपने सत्य कहा । योगी जैसे जोगी की पावर का अंदाजा हमें भी है 😄😃सादर आभार आपकी रोचक, बेबाक प्रतिक्रिया के लिए🙏🙏
हटाएंजोगन प्रतीक को बड़े सुंदर ढ़ंग से उपयोग किया है आपने।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय मीना |
हटाएंसरल सहज विन्यास मे बुनी सच्ची कविता, साधु !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार तरुण जी |
हटाएंवह बहुत खूब, दार्शनिक अंदाज़ ...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सतीश जी |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-3-21) को "बहुत कठिन है राह" (चर्चा अंक-3993) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच की सदैव आभारी हूँ सखी 🌹🌹
हटाएंसुन जोगन हुए किसके जोगी ?
जवाब देंहटाएंये व्यर्थ लगन मत मन कर रोगी !
पग जोगी के काल का फेरा
एक जगह कहाँ उसका डेरा ?
"प्रेम-मगन जोगन को कहाँ समझ आती है ये समझदारी की बातें "
लाज़बाब सृजन,हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति सखी
हार्दिक आभार सखी तुम्हारी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए🌹🌹
हटाएंभले ही कितना ही समझा लो , मन लगना होगा तो लग ही जायेगा । सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, सबसे पहले मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। आभारी हूँ आपने रचना पढ़ी और प्रतिक्रिया दी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंबहुत ही खूबसूरती से सच्चाई को दिखाती हुई खूबसूरत पंक्ति जिसे आपने बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है
जवाब देंहटाएंप्रिय मनीषा, बहुत -बहुत आभार आपका ❤🌹
हटाएंमैम इसकी कोई जरूरत नहीं आप तारीफ के योग्य हैं,
हटाएंपर हां मैंने नई पोस्ट डाली तो कृपया एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त कीजिए!कि क्या त्रुटि है और क्या खूबी!
आध्यात्मिकता और सांसारिकता का समन्वय लिए अत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसृजन ।
हार्दिक आभार मीना जी आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए🌹🌹
हटाएंझूठा अपनापन जोगी का,
जवाब देंहटाएंतन उजला ,मैला मन जोगी का !
मत सजा ये मिथ्या सपने,
बेगाने कब हुये हैं अपने ?? ---बहुत अच्छी रचना है...।
हार्दिक आभार संदीप जी । 💐🙏💐
हटाएंखूबसूरती से सच्चाई को दिखाती हुई खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय संजय | बहुत दिनों बाद तुम्हारा ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगा |
हटाएंबहुत ही सुन्दर व दिव्य भावों से ओतप्रोत मुग्ध करती कविता - - साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति के लिए सादर आभार शांतनु जी |
हटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंजोगी जैसा मन भी है चंचल
आसमाँ ओढ़े बादल सा अंचल
सादर आभार आपका | ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
हटाएंजिसने जोगी संग प्रीत लगायी -
जवाब देंहटाएंकरी विरह के संग सगाई !! वाह! निर्गुण का अविरल प्रवाह !!!!
सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी | आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए |
हटाएंआध्यात्म औऱ दर्शन का खूबसूरत चित्रण
जवाब देंहटाएंजोगन का आलौकिक प्रेम ही उसकी साधना का प्रतीक है, इस प्रेम को मनुष्य को समझना होगा
बहुत अच्छी रचना
बधाई
सादर आभार आदरणीय सर |आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया अनमोल है |
हटाएं"झूठा अपनापन जोगी का..." इन दो पंक्तियों में गजब का विरोधाभास देखने को मिला है, सार है, जान ये पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंउत्तम कृति।
आपके कहने पर नई रचना डाली है आइयेगा गुजरे वक़्त में से...
प्रिय रोहित बहुत -बहुत आभार और अभिनन्दन | जरुर आ रही हूँ तुम्हारी रचना पढने | देर हो गयी आते आते |हार्दिक स्नेह |
हटाएंबहुत अच्छा गीत।बधाई और शुभकामनाएं।आप यशस्वी हों
जवाब देंहटाएंसादर आभार तुषार जी |
हटाएंबहुत अच्छा गीत
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार गौरव जी |
हटाएंबहुत सुंदर भाव 🙏 भोलेबाबा की कृपादृष्टि आप पर सदा बनी रहे।🙏 महाशिवरात्रि पर्व की आपको परिवार सहित शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सवाई जी | ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएंपग जोगी के काल का फेरा
जवाब देंहटाएंएक जगह कहाँ उसका डेरा ?
कहीं दिन तो कहीं रात बिताये -
बादल सा उड़ लौट ना आये !
बहुत ही सटीक ....
पर जोगन भी कहाँ सोच समझ कर प्रीत करती है
और एक बार प्रीत जो हुई तो विरह में जीवन भर जलती है
पर किसी के भी समझाये कहाँ पीछे हटती है
बहुत ही लाजवाब गीत।
रचना के मर्म को छूती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय सुधा जी।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति, अति उत्तम,सत्य का आभास कराती हुई एक बेहतरीन रचना, बधाई हो आपको सादर नमन
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी, ब्लॉग पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। आपके ब्लॉग भ्रमन से मन आह्लादित है। कोटि आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंकमाल का हर शेर ... आध्यात्म, फकीराना अंदाज़ और जोगी का भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंहर बंध में अलग भाव ... सटीक, बिम्ब उतार के रख देती है जोगन का यस कमाल की अभिव्यक्ति ...
सादर आभार और अभिनंदन दिगम्बर जी🙏🙏🙏
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