'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ नवंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार प्रिय श्वेता।अनगिन पाठकों तक रचना पहुँचाने के लिये पाँच लिंकों के भागीरथ प्रयासों को नमन है।
जवाब देंहटाएंजी ! रेणु जी ! नमन संग आभार आपका .. इस तरह सूफ़ियाना अंदाज़ को हिंदी भाषा में रूबरू कराने के लिए .. "प्रियवर" शब्द .. अपने आप में गहन गूढ़ता समेटे हर पाठक की अपनी-अपनी मानसिकता के अनुरूप प्रतिबिम्बित होता प्रतीत हो रहा .. यशोदा जी की भाषा में कहूँ तो .. "साधुवाद" आपको .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंसुबोध जी आपकी इस भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ ।ये सच है रचनाकार अपने भाव लिखता है तो प्रबुद्ध पाठक उसे अपनी दृष्टि से आँकते हैं।वैसे ये रचना अमृता तन्मय जी की रचना पर काव्यात्मक प्रतिक्रिया के रूप में लिखी गई थी।एक बार फिर से आपका आभार ।सादर 🙏
हटाएंदूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जवाब देंहटाएंजब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
उम्दा लेखन
प्रिय दीदी, आपकी स्नेहिल उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 🙏
हटाएंमेरे संग मेरे सखा तुम्हीं
जवाब देंहटाएंमन की पीड़ा की दवा तुम्हीं
बसे रोम रोम तुम ही प्रियवर
रही शब्द शब्द सँवार तुम्हें
दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
... प्रेम पर जीवन दर्शन का सुंदर प्रतिबिंब । निःस्वार्थ भाव से लिखी गई प्रेम पर सुंदर रचना ।
प्रिय जिज्ञासा , आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंमेरी हर प्रार्थना में तुम हो,
जवाब देंहटाएंनिर्मल अभ्यर्थना में तुम हो!
तुम्हें समर्पित हर प्रण मेरा,
माना जीवन आधार तुम्हें!
इस समर्पण से बेहतर और क्या उपहार होता प्रिय रेणु ! किसी विशेष अवसर पर लिखी गई है शायद यह रचना.....
प्रिय मीना, आपकी ब्लॉग पर वापसी और इस रचना पर प्रतिक्रिया से बहुत खुशी हुई।ये रचना अमृता जी की रचना पर काव्यात्मक प्रतिक्रिया स्वरूप लिखी गई थी सस्नेह!
हटाएंदूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जवाब देंहटाएंजब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
अप्रतिम समर्पण भाव से सृजित सुन्दर कृति !!
आभार और अभिनन्दन प्रिय मीना जी |
हटाएंवाह अप्रतिम रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका प्रिय भारती जी |
हटाएंप्रिय रेणु दी, क्या दू उपहार तुम्हें?
जवाब देंहटाएंजब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें?
कितने कम शब्दों में पूर्ण समर्पण का एहसास करवाया है आपने। बहुत सुंदर।
हमेशा की तरह उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार प्रिय ज्योति जी 🙏
हटाएंअप्रतिम सृजन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय मनोज 🌺🌺
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंएक हु तों सों गयो श्याम संग
कोन अराधे ईश।
इस अलौकिक भावको प्रतिध्वनित करती अनूठी रचना।
हार्दिक आभार आपका आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏
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