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सोमवार, 12 अगस्त 2024

वहशी तुम!

 



जिस कली को तुमने रौंदा 

क्या वो देह कोई पत्थर की थी?

थी चाँदनी  वह इक आँगन की , 

 इज्जत किसी  घर की थी |


वहशी! कुकृत्य क्या सोच किया?

अंधे होकर ऐयाशी में ! 

नोंच-खसोट ली देह कोमल

वासना की क्षणिक उबासी में! 

तुमने कुचला निर्ममता से

वह पंखुड़ी  केसर की थी !!



हुआ पिता का दिल  टुकड़े-टुकड़े 

 देख लाडली  को बदहाल में ! 

 समझ  ना पाया कैसे जा फँसी 

मेरी चिड़िया वहशियों  के जाल में ! 

 सुध -बुध खो बैठी होगी  माँ , 

 जिसकी वो  परी अम्बर की थी !!


 दुष्टों के संहार को 

 बहुत लिए अवतार तुमने ! 

 फिर मौन रहकर क्यों सुने , 

 मासूम के चीत्कार तुमने ? 

 महिमा तो  रखते  तनिक  , 

 चौखट तेरे मंदिर की थी !!


साबित  कर ही  देते 

हो सचमुच के भगवान् तुम ,

 कहीं से  आते बन उस दिन -

 निर्बल के बल -राम तुम ! 

पापी का सीना  चाक  करते , 

बात बस पल भर की थी !!!!!!!!!!!

18 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद मार्मिक भाव विह्वल कर देने वाली रचना सखी। एक-एक शब्द दृश्य के समान घटनाक्रम को चित्रित कर रहा है सादर

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    1. जी अभिलाषा जी, एक बेटी के साथ हुई इस दरिंदगी ने सबको झाझकोर दिया! ये नियति क्यों एक देवभूमि भारतवर्ष में पैदा होने वाली नारी की?? 🙏

      हटाएं
  2. मार्मिक। शब्दों में पीड़ा और आक्रोश दोनो है। घटना की बरबर्ता का चित्रण है।
    एक आशावादी होने के नाते फिर से आशा करता हूँ इस कलम की आग सबतक पहुँचे और मानवता आवश्यकता से ज्यादा आये।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी दी... आपकी मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के बाद क्या कहें निःशब्द हैं हम🙏
    कलम का ओज बना रहे।
    सस्नेह. प्रणाम दी।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता रचना के लिए तुम्हारा सहयोग और अनेक पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास अतुलनीय है 🙏

      हटाएं
  4. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति
    पढ़ने के बाद क्या कहें
    कहने को कुछ बाकी नहीं
    निःशब्द हैं हम
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से मैं निशब्द हूँ भैया 🙏🙏😞

      हटाएं
  5. रेणुबाला, ऐसी मार्मिक कविताओं की रचना के लिए आगे भी तैयार रहना.
    हमारे देश में दुर्योधनों की और दुश्शासनों की, भरमार है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Gopesh Mohan Jaswal जी आदरणीय गोपेश जी, मन बहुत विकल है! इस तरह की घटना झझकोर देती है! इन दुशासनों और दुर्योधनों पर नकेल डालना कठिन है पर नारी से दुर्गा बनी बेटियाँ जरूर इन दरिंदों को ठिकाने लगा सकती हैं अपनी आत्मरक्षा की प्रवृत्ति को अपनाकर ! आपकी इस मार्मिक प्रति किया के लिए हार्दिक आभार 🙏

      हटाएं
  6. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय मार्मिक रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. साबित कर ही देते

    हो सचमुच के भगवान् तुम ,

    कहीं से आते बन उस दिन -

    निर्बल के बल -राम तुम !

    पापी का सीना चाक करते ,

    बात बस पल भर की थी !
    ऐसा जो करते भगवान तो धरती स्वर्ग ना हो जाती ।
    हृदयविदारक घटना का मार्मिक शब्दचित्रण..बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी मर्म को छूती प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय सुधा जी!

      हटाएं
  8. दिल को अंदर तक झकझोर गई सखी आपकी मार्मिक रचना ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ शुभा जी🙏

      हटाएं

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