देखते -देखते ब्लॉग -लेखन को आठ साल हो चले!
इस अवसर पर अपने स्नेही पाठकों के प्रति आभार प्रकट करना चाहती हूँ !सभी साथी रचनाकारों के अतुलनीय सहयोग और मार्गदर्शन के बिना कुछ भी संभव ना था! सभी का हार्दिक अभिनन्दन और आभार 🙏
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शिशु- सी होती जाती माँ!
अब हर बात समझ न पाती माँ!
कुछ भूली कुछ याद रही
जो याद है कह ना पाती माँ!
स्मृति लोक हुए धुंधले,
ना भटकती बीते लम्हों में !
जो आज है वो सबसे बेहतर
ये सोच के खुश हो जाती माँ !
साथ ना देती जर्ज़र काया
हुआ सफर जीवन का दूभर अब
पर चलती जाती अपनी धुन में
तनिक भी ना घबराती माँ!
पाने की ख़ुशी ना खोने का गम
हर तृष्णा छोड़ बढ़ी आगे
ना कोई समझाइश देती अब
विरक्त सी होती जाती माँ!
गिला रहा ना कोई शिकवा
भीतर दुआ बस शेष यही
हर बात में दे आशीष हरदम
मंद- मंद मुस्काती माँ!
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