जाने ये कौन चितेरा है
जो सजा लाया नया सवेरा है ,
नभ की कोरी चादर पर जिसने
हर रंग भरपूर बिखेरा है ?
ये कौन तूलिका है ऐसी
जो ज़रा नजर नहीं आई है ?
पर पल भर में ही देखो
अम्बर सतरंगी कर लाई है !
धरा कर को हरित वसना
पथ में बिछाया रंग सुनहरा है ,
जाने ये कौन चितेरा है ?
ये विस्तार सौंदर्य का
अनुपम और अद्भुत है ये बेला ,
सपनों में रंग भरता है देखो !
नील गगन का सतरंगी झूला ,
मौन दिशाओं में स्पन्दन
रचा ये देव -धनुष का घेरा है
जाने ये कौन चितेरा है ?
जाने ये कौन चितेरा है ?
वर्षा में नहाया खूब खिला
ये तन सृष्टि का धुला- धुला ;
ईश्वर की प्रतिछाया सा
हुआ निर्मल अम्बर खुला - खुला ;
आँखमिचौली करता किरणों से
ये मलय पवन का लहरा है
जाने ये कौन चितेरा है !!
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धन्यवाद शब्दनगरी ----
रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (इन्द्रधनुष कविता -- ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
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बेहतरीन संरचना लिए अनूठी रचना...
जवाब देंहटाएंनील गगन का सतरंगी झूला
मौन दिशाओं में जगा गया स्पन्दन -
रच ये देव -धनुष का घेरा है -
जाने ये कौन चितेरा है ?
प्रकृति की रमणीक छटा और स्पंदन जगाती सौन्दर्य का अद्भुत वर्णन। सादर बधाई रेणु जी।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- मेरी रचना यात्रा में आपका उत्साहवर्धन मेरा मनोबल ऊँचा करता है आपकी हमेशा आभारी रहूंगी !!!!!!!!!
हटाएंवाह.. अद्वितीय
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुधा जी -- सस्नेह आभार आपका --
हटाएंनभ की कोरी चादर पर जिसने
हटाएंहर रंग खूब बिखेरा है....
बहुत ही सुन्दरता से खूबसूरत इन्द्रधनुष सजाया है आपने....
वाह!!!!
आदरणीय सुधा जी -- सादर आभार |
हटाएंसृष्टि के रचयिता की तूलिका में जाने कितने रंग है कोई नहीं जानता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सादर आभार आदरणीय कविता जी --
हटाएंमनभावन रचना!!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी -- सादर आभार |
हटाएंबहुत शानदार रचना
जवाब देंहटाएंमन को छूते अशआर
आदरणीय लोकेश जी -- आपके प्रेरक शब्दों के लिए सादर आभार |
हटाएंवाह !!! बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार
प्रिय नीतू जी -- आभारी हूँ आपकी |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता जी -- आपके सहयोग के लिए सादर आभार --
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
प्रिय ध्रुव -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत ही संवेदनशील रचना है
जवाब देंहटाएंप्रिय रिंकी सस्नेह आभार --
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सरिता जी |
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
सादर
आदरणीय सर -आपके प्रेरक शब्दों के लिए आपकी आभारी हूँ |
हटाएंसात रंगों के विस्तार को नया आकाश दे दिया है इन शब्दों द्वारा ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- उत्साहवर्धन से भरे आपके शब्द अनमोल हैं | सादर आभार |
हटाएंप्रकृति के सौंदर्य को निश्चित ही ईश्वर का प्रतिबिंब कहा जा सकता है, क्योंकि हमारे सभी देवी-देवता मनमोहक हैं एवं उनकी कलाओं में प्रकृति का यह रूप ही समाहित है।
जवाब देंहटाएंआपकी ऐसी रचनाएँँ मानव हृदय को आनंदित करने वाली होती हैं रेणु दी।
सस्नेह आभार शशि भाई |
हटाएंवाह!प्रिय सखी ,रेनू ..मन आनंदित हो गया ,आपकी इतनी खूबसूरत रचना को पढकर ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सखी शुभा जी | आपके आनंद में मेरा भी आनंद है | सस्नेह --
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना प्रिय रेनू जी👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी अनुराधा जी |
हटाएंसपनो में रंग भरता है ये -
जवाब देंहटाएंनील गगन का सतरंगी झूला
मौन दिशाओं में स्पन्दन -
रचा ये देव -धनुष का घेरा है -
जाने ये कौन चितेरा है ?
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, रेणु दी।
हार्दिक आभार ज्योति जी | हर रचना पर आपकी उपस्थिति मेरा सौभाग्य है |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-02-2020) को "मन का मैल मिटाओ"(चर्चा अंक -3618) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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अनीता लागुरी "अनु"
सस्नेह आभार प्रिय अनु और चर्चा मंच |
हटाएंवर्षा में नहाया खूब खिला -
जवाब देंहटाएंये तन सृष्टि का धुला- धुला ;
ईश्वर की प्रतिछाया सा -
हुआ निर्मल अम्बर खुला - खुला ;
वाह !! बहुत सुंदर ,सच ,इंद्रधनुष को देख यही प्रतीत होता हैं जैसे परमात्मा हमसे खुश हो अपने आशीर्वाद को सतरंगी किरणों के रूप में हम पर बरसा रहें हैं।
लाजबाब सृजन सखी
हार्दिक आभार प्रिय कामिनी | हर रचना पर तुम्हारा आना मेरे लिए गर का विषय है | सस्नेह -
हटाएंबहुत सुंदर सृजन रेणु बहन अद्वेत और द्वेत का अनुठा संयोग बहुत सुंदर और सरस सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत अभिनव ।
प्रिय कुसुम बहन आपके स्नेह और प्रोत्साहन की सदैव आभारी हूँ | हार्दिक स्नेह के साथ --
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार और अभिनंदन आलोक जी🙏🙏 💐💐
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