जब हम तुमसे ना मिले थे ,
कब मन के बसंत खिले थे ?
चाँद ना था चमकीला इतना ?
कब महके मन के वीराने थे ?
पल प्रतीक्षा के भी साथी
कहाँ इतने सुहाने थे ?
रुके थे निर्झर पलकों में ,
ना मधुर अश्कों में ढले थे
जब हम तुमसे न मिले थे !!
जो ख़ुशी मिली तुमसे
उसे किधर ढूंढने जाते ?
ले अधूरी हसरतें यूँ ही -
दुनिया से चले जाते ,
खुशियों से तो इस दिल के
मीलों के फासले थे
जब हम तुमसे ना मिले थे !!
सब कुछ था पास मेरे
फिर भी कुछ ख्वाब अधूरे थे ,
जो तुम संग बाँटे,
मन के संवाद अधूरे थे ;
जीवन से ओझल साथी
ये उमंगों के सिलसिले थे
जब हम तुमसे ना मिले थे !!!!!!!
सब कुछ था पास मेरे
फिर भी कुछ ख्वाब अधूरे थे ,
जो तुम संग बाँटे,
मन के संवाद अधूरे थे ;
जीवन से ओझल साथी
ये उमंगों के सिलसिले थे
जब हम तुमसे ना मिले थे !!!!!!!
चित्र -- गूगल से साभार |
सब कुछ था पास हमारे --
जवाब देंहटाएंफिर भी कुछ ख्वाब अधूरे थे ,
तुम बिन ना सुन पाता कोई -
वो मन के संवाद अधूरे थे ;
जीवन से ओझल साथी -
ये उमंगों के सिलसिले थे
जब हम तुमसे ना मिले थे !!
प्रेम में आकंठ आसक्त मन का खूबसूरत एहहास लिए मनोरमपप्रेम कविता.... बधाई आदरणीय रेणु जी।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपका प्रोत्साहन किसी भी आभार से परे है | सादर नमन --
हटाएंप्रेम होने के बाद ही मौसम ऋतुएं चाँद सूरज होने का सुखद अहसास होता है, यह सुखद अहसास जीवन की स्मृतियों का एक हिस्सा होता है.
जवाब देंहटाएंयह रचना इसी हिस्से की अनुभूति का अहसास कराती है
बसंत और प्रेम की सुंदर प्रस्तुति
सादर
आदरणीय सर -- आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं | सादर नमन --
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीपाली जी --मेरे ब्लॉग पर सादर अभिनन्दन आपका | रचना को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंमधुर अनुभूति की मोहक अभिव्यक्ति :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रतिभा जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी -- निरंतर सहयोग और प्रोत्साहन के लिए आपकी आभारी हूँ |
हटाएंप्रिय श्री राम जी -- स्वागत है मेरे ब्लॉग पर आपका | रचना पसंद करने के लिए आभारी हूँ आपकी |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ९फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता बहन -आपके अतुलनीय सहयोग की आभारी हूँ |
हटाएंखुशियों से तो इस दिल के -
जवाब देंहटाएंमीलों के फासले थे ;
जब हम तुमसे ना मिले थे !!
वाह!!!
बहुत लाजवाब रचना....
सादर आभार -आदरणीय सुधा जी --
हटाएंबेहद सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू जी -सस्नेह आभार --
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय गगन जी सादर आभार आपका |
हटाएंबचपन फिर ना लौटेगा
जवाब देंहटाएंवो बचपन की किलकारियां
ना कोई दुश्मन ना यारियां
सर पे ना कोई ज़िम्मेदारियाँ
वो मासूम सी होशियारियाँ,
वो बचपन फिर ना लौटेगा !
वो धूप में नंगे पाँव दौड़ना
कभी कीचड़ में लौटना
ना हारना ना कभी थकना
कभी बे वजह मुस्कुराना,
वो बचपन फिर ना लौटेगा !
गली गली बेवजह दौड़ना
खिलोने पटक कर तोड़ना
टूटे खिलोने फिर से जोड़ना
छोटी छोटी बात पर रूठना,
वो बचपन फिर ना लौटेगा !
कभी मिटटी के घर बनाना
घरों को फिर मिटटी से सजाना
कभी दिन भर माँ को सताना
फिर माँ की छाती से लिपट सो जाना,
वो बचपन फिर ना लौटेगा
हाँ !! वो बचपन फिर ना लौटेगा
https://deshwali.blogspot.com
प्रिय देशवाली जी -- आपका सरस सरल लेखन बहुत हृदयस्पर्शी है ? सचमुच वो मासूम बचपन फिर से कहाँ ले लौट पाता है ? सस्नेह ______
हटाएंबहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति रेणु जी मेरी भी एक कविता कुछ इन्ही भावो से भरी है, पढियेगा छोटी बड़ी बात पर "जब हम न मिले थे"
जवाब देंहटाएंप्रिय दीपाली जी -- एक बार फिर स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ | मैं जरुर आपके ब्लॉग पर जल्द ही आऊँगी | सस्नेह -
हटाएंगहरे अहसास में डूब कर लिखी गयी एक बहुत सुन्दर कविता ... बधाई रेनू जी
जवाब देंहटाएंआदरणीय वंदना जी -- आपकी सराहना अनमोल है |सादर आभार --
हटाएंबहुत प्यारी सी रचना है रेनू दी
जवाब देंहटाएंप्रिय शकु-- सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत सरल और सुंदर !
जवाब देंहटाएंआदरणीय हर्ष जी ------ सादर आभार |
हटाएंगहरा अहसास सुंदर अल्फाज़
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना दीदी जी
लाजवाब 👌
प्रिय आँचल -- आपका ब्लॉग पर स्वागत है |रचना आपको पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ | मेरा प्यार |
हटाएंगहरा अहसास सुंदर अल्फाज़
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना दीदी जी
लाजवाब 👌
बहुत खूबसूरत रचना प्रिय रेनु जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंवाह बहुत खूबसूरत रचना रेणू बहन मन के सारे कोमल भाव मुखरित हो गये बस जैसे ही चाहत के फूल खिल गये लगता कि जैसे पारस को छू कर लो आ कुंदन बन गया।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अभिराम।
वाह बहुत खूबसूरत रचना रेणू बहन मन के सारे कोमल भाव मुखरित हो गये बस जैसे ही चाहत के फूल खिल गये लगता कि जैसे पारस को छू कर लो आ कुंदन बन गया।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अभिराम।
प्रिय कुसुम बहन--- आपके शब्द मेरे लेखन को सार्थक कर मुझे आनन्दविभोर कर देते हैं | आभार कहूं तो इस स्नेह की महिमा घट जायेगी | बस मेरा प्यार |
हटाएंरेणु,प्रेम से परिपूर्ण बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति बहन -- आपको रचना पसंद आई मन को आनन्द हुआ | सस्नेह आपका आपका |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु रचना बहुत ही प्यारी लगी। उत्तम सृजन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय दीपा जी -- आपका हार्दिक आभार |
हटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना रेनु मैम
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय निधि।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ।।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजकमल जी -- स्वागत है आपका ब्लॉग पर | आभारी हूँ कि आपने रचना पढ़ी और अपनी राय दी |
हटाएंमधुरिम अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय सर 🙏🙏
हटाएंजो खुशी मिली तुमसे
जवाब देंहटाएंकिधर ढूंढने जाते?
वाह सखी रेणु जी! बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।लाजवाब
हार्दिक आभार और शुक्रिया सखी 🙏🙏
हटाएंसमर्पित भावों से सजी हृदय को सुकून देती बहुत सुन्दर और लाजवाब
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति रेणु जी । सस्नेह आभार इतनी सुन्दर रचना लेखन के
लिए ।
प्रिय मीना जी , हार्दिक आभार आपका , इस स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया के लिए 🙏🙏
हटाएंलाजवाब।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार है आपका सुशील जी 🙏🙏
हटाएंब्लॉग अनुसरणकर्ता गैजेट लगाएं।
जवाब देंहटाएंअनुसरणकर्ता गैजेट लगा हुआ है सुशील जी। आप हैं उस लिस्ट में मैंने देख लिया है।, शायद किसी तकनीकी वजह से नहीं दिखता । आप जरूर बताएं कि अब दिखा रहा है कि नहीं (🙏🙏
हटाएंवाह बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार है अनुराधा जी 🙏🙏
हटाएंखूबसूरत शब्दों शब्दों के माध्यम से भावों को प्रदर्शित करनेे की कला में आप दक्ष हैं, बेहतरीन सृजन!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय उर्मिला जी | आपकी सराहना मेरे लिए किसी उपहार से कम नहीं |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-02-2021) को "विश्व प्रणय सप्ताह" (चर्चा अंक- 3970) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
"विश्व प्रणय सप्ताह" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आदरणीय सर, सादर आभार, प्रस्तुति विशेष में मेरी रचना को शामिल करने के लिए 🙏🙏
हटाएंजब हम तुमसे ना मिले थे ,
जवाब देंहटाएंकब मन के बसंत खिले थे ?
सुंदर नवगीत..🌹🙏🌹
सुस्वागतम और हार्दिक आभार प्रिय शरद जी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंसब कुछ था पास मेरे --
जवाब देंहटाएंफिर भी कुछ ख्वाब अधूरे थे ,
तुम बिन ना सुनता कोई -
मन के संवाद अधूरे थे ;
प्रेम रस में डूबी अति सुंदर सृजन सखी
सखी तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मनको अपार हर्ष हुआ। सस्नेह आभार सखी ❤❤🙏🌹🌹
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंशानदार
जबरदस्त
ब्लॉग से जुड़ने के लिए आपका सस्नेह आभार प्रिय सतीश जी। आपकी उत्साह भरी प्रतिक्रिया अनमोल है💐💐🙏💐💐
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