
इंसान हूँ मेहनतकश मैं
नहीं लाचार या बेबस मैं !
किस्मत हाथ की रेखा मेरी
रखता मुट्ठी में कस मैं !
किस्मत हाथ की रेखा मेरी
रखता मुट्ठी में कस मैं !
बड़े गर्व से खींचता
जीवन का ठेला ,
संतोषी मन देख रहा
अजब दुनिया का खेला !
गाँधी सा सरल चिंतन ,
मैले कपडे उजला मन !
श्रम ही स्वाभिमान मेरा ,
हर लेता पैरों का कम्पन !
भीतर मेरे गाँव बसा
है कर्मभूमि नगर मेरी !
हौंसले कम नहीं हैं
कठिन भले ही डगर मेरी !
चित्र --- गूगल से साभार
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